- मॉस्को में जनरल फानिल सर्वरोव की हत्या ने रूस की आंतरिक सुरक्षा और खुफिया तंत्र की कमजोरियों को उजागर किया है.
- लगातार हो रहे हाई-प्रोफाइल हमले पुतिन के इनर सर्कल और सत्ता तंत्र पर बढ़ते दबाव का संकेत देते हैं.
- यूक्रेन युद्ध के बीच रूस में बढ़ती आंतरिक अस्थिरता बताती है कि खतरा देश की सीमाओं के अंदर तक पहुंच चुका है.
मास्को में लेफ्टिनेंट जनरल फानिल सर्वरोव की कार बम धमाके में मौत ने देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को लेकर गहरी चिंताएं पैदा कर दी हैं. उनकी कार के नीचे विस्फोटक डिवाइस लगाया गया था जिसके फटने से उनकी मौत हुई है. 56 वर्षीय सर्वरोव सशस्त्र बलों के ऑपरेशनल ट्रेनिंग डिपार्टमेंट के प्रमुख थे. पिछले एक साल में रूसी राजधानी में बम हमलों से मारे जाने वाले वे तीसरे सैन्य अधिकारी हैं. जिस तरह से एलीट सैन्य अधिकारियों को निशाना बनाया जा रहा है, उससे साफ संकेत मिलते हैं कि रूस का सुरक्षित माने जाने वाला तंत्र अब गंभीर दबाव में है. राजधानी मॉस्को समेत कई अहम इलाकों में सुरक्षा एजेंसियों की सतर्कता बढ़ा दी गई है, लेकिन बार-बार हो रही ऐसी घटनाएं खुफिया नाकामी और सुरक्षा में सेंध की ओर इशारा कर रही हैं.
हाल के महीनों में हुए हाई-प्रोफाइल हमलों ने रूस की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. जिन इलाकों को अब तक अभेद्य माना जाता था, वहीं एलीट सैन्य अधिकारियों और रणनीतिक रूप से अहम शख्सियतों को निशाना बनाया जाना न सिर्फ सुरक्षा एजेंसियों के लिए झटका है, बल्कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सत्ता तंत्र के लिए भी एक बड़ी चेतावनी बनकर उभरा है. यूक्रेन युद्ध के बीच रूस के अंदर बढ़ती यह अस्थिरता बताती है कि खतरा अब केवल सीमाओं तक सीमित नहीं रहा.
हाई प्रोफाइल हमले
फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमला करने के बाद से रूस की राजधानी मॉस्को में कई सैन्य अधिकारियों और जानी-मानी हस्तियों को निशाना बनाया गया है.
- 2022 में पुतिन के करीबी सहयोगी की 29 की बेटी डारिया डुगिना की एक कार बम धमाके में मौत हो गई थी.
- अप्रैल 2023 में सेंट पीटर्सबर्ग के एक कैफे में मूर्ति में ब्लास्ट से रूस के एक सैन्य ब्लॉगर मैक्सिम फोमिन की मौत हो गई थी.
- अप्रैल 2024 में जनरल यारोस्लाव मोस्कालिक कार बम हमले में मारे गए थे.
- रूसी रेडियोलॉजिकल, रासायनिक और जैविक रक्षा बलों के प्रमुख जनरल इगोर किरलोव की एक स्कूटर ब्लास्ट में दिसंबर 2024 में मौत हो गई थी. स्कूटर में छिपाए गए डिवाइस को रिमोट से ब्लास्ट किया गया था.
‘सुरक्षित रूस' की छवि को गहरा झटका
लंबे समय तक रूस की पहचान एक ऐसे देश के रूप में रही है, जहां फेडरल सिक्युरिटी सर्विस (एफएसबी), सेना और वहां के गृह मंत्रालय जैसी सुरक्षा एजेंसियों की मजबूत पकड़ मानी जाती थी. मॉस्को जैसे शहरों को तो लगभग अभेद्य समझा जाता था. लेकिन हालिया घटनाओं ने इस धारणा को तोड़ दिया है. जब देश के भीतर ही हाई-प्रोफाइल सैन्य अफसरों को टारगेट किया जा रहा हो, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि सुरक्षा में चूक कहां हो रही है.
विशेषज्ञों का मानना है कि ये हमले सिर्फ व्यक्तिगत नहीं हैं, बल्कि रूस की सुरक्षा व्यवस्था की कमजोर कड़ियों को उजागर करने की रणनीति का हिस्सा हैं. इससे यह संदेश जाता है कि देश का सबसे सुरक्षित तंत्र भी अब पूरी तरह सुरक्षित नहीं रहा.
रूस की राजधानी मॉस्को में सोमवार, 22 दिसंबर को एक कार में हुए बम धमाके में एक रूसी जनरल की मौत हो गई है#Russia | #Moscow pic.twitter.com/T4w6qj3xHi
— NDTV India (@ndtvindia) December 22, 2025
एलीट सैन्य अधिकारियों को क्यों बनाया जा रहा है निशाना?
रूस में हालिया हमलों की सबसे अहम बात यह है कि इनमें आम नागरिक या प्रतीकात्मक ठिकानों की बजाय *शीर्ष सैन्य और रणनीतिक पदों पर बैठे अधिकारियों* को निशाना बनाया गया. यह किसी सामान्य आतंकी घटना से अलग पैटर्न दिखाता है.
राजनीतिक और सैन्य विश्लेषकों के अनुसार, इसके पीछे तीन बड़े मकसद हो सकते हैं-
1. सैन्य नेतृत्व का मनोबल तोड़ना- जब शीर्ष स्तर के अफसर खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करते, तो इसका असर पूरी कमांड चेन पर पड़ता है.
2. पुतिन के इनर सर्कल को संदेश- ये हमले सीधे तौर पर यह संकेत देते हैं कि सत्ता के सबसे करीबी घेरे तक भी पहुंच संभव है.
3. यूक्रेन युद्ध का दबाव बढ़ाना- रूस पर यह मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना कि युद्ध का असर अब देश के भीतर भी महसूस किया जा सकता है.
यूक्रेन युद्ध और आंतरिक सुरक्षा का सीधा कनेक्शन
यूक्रेन के साथ चल रहे लंबे युद्ध ने रूस की सुरक्षा प्राथमिकताओं को बदल दिया है. सीमाओं पर भारी सैन्य तैनाती, संसाधनों का बड़े पैमाने पर उपयोग और खुफिया एजेंसियों का फोकस बाहरी खतरे पर ज्यादा रहा है. ऐसे में आंतरिक सुरक्षा में कुछ स्तरों पर ढील पड़ना स्वाभाविक माना जा रहा है. कई विश्लेषकों का कहना है कि युद्ध ने रूस को ओवर-स्ट्रेच कर दिया है- यानी एक साथ बहुत सारे मोर्चे पर वह लड़ रहा है. यही वजह है कि देश के भीतर छिपे नेटवर्क या दुश्मन ताकतों को मौके मिल रहे हैं.
खुफिया तंत्र पर उठते सवाल
रूस की खुफिया एजेंसियां दुनिया की सबसे ताकतवर एजेंसियों में गिनी जाती रही हैं. लेकिन हालिया घटनाओं के बाद कुछ सवाल उठने लगे हैं.
क्या जमीनी स्तर पर खुफिया सूचनाएं समय पर नहीं पहुंच रहीं?
क्या एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी है?
या फिर सुरक्षा तंत्र के भीतर ही कोई कमजोर कड़ी मौजूद है?
इन सवालों के जवाब फिलहाल मौजूद नहीं हैं, लेकिन इतना जरूर स्पष्ट है कि इन हमलों ने फेडरल सिक्युरिटी समेत अन्य एजेंसियों की कार्यप्रणाली को कटघरे में ला खड़ा किया है.
पुतिन की सत्ता पर बढ़ता दबाव
बेशक ऐसी किसी भी घटना के बाद मॉस्को और अन्य प्रमुख शहरों में सुरक्षा व्यवस्था सख्त कर दी जाती है, वहीं यहां भी किया गया है. प्रमुख सरकारी इमारतों, सैन्य ठिकानों और अधिकारियों की आवाजाही पर अतिरिक्त निगरानी रखी जा रही है. CCTV नेटवर्क को मजबूत किया जा रहा है और चेकिंग बढ़ा दी गई है. लेकिन सवाल ये है कि क्या केवल सतर्कता बढ़ा देना पर्याप्त होगा? क्योंकि जब हमले अंदर से हो रहे हों तब सुरक्षा रणनीति को नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत होती है.
पुतिन की सत्ता की सबसे बड़ी ताकत हमेशा से सुरक्षा और स्थिरता ही रही है, लेकिन ऐसे हाई-प्रोफाइल हमले उनकी उस छवि को कमजोर करता है.
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह स्थिति पुतिन के इनर सर्कल में भी बेचैनी बढ़ा सकती है. शीर्ष अधिकारी अगर खुद को असुरक्षित महसूस करने लगें, तो सत्ता के भीतर अविश्वास और सतर्कता का माहौल बनता है.
लोगों के बीच बढ़ती असुरक्षा की भावना
इन हमलों का असर सिर्फ सत्ता या सेना तक सीमित नहीं है. आम रूसी नागरिकों के बीच भी यह सवाल उठ रहा है कि अगर शीर्ष अधिकारी सुरक्षित नहीं हैं, तो आम लोगों की सुरक्षा कितनी पुख्ता है? हालांकि रूस में सरकारी नियंत्रण और मीडिया प्रबंधन मजबूत है, फिर भी ऐसी घटनाएं जनता के मन में डर और अनिश्चितता पैदा करती हैं. यह सामाजिक स्थिरता के लिए भी एक चुनौती बन सकती है.
कई सुरक्षा विशेषज्ञ इसे ‘हाइब्रिड वॉर' का हिस्सा मानते हैं, जिसमें पारंपरिक युद्ध के साथ-साथ साइकोलॉजिकल और टारगेटेड हमले शामिल होते हैं. इस तरह के हमलों का मकसद सीधे सेना की जीत से नहीं है बल्कि इसमें दुश्मन को अंदर से कमजोर करना भी शामिल होता है.
अगर यह आकलन सही है, तो रूस को अपनी सुरक्षा रणनीति में बड़े बदलाव करने होंगे. उसे केवल सीमा पर ही नहीं बल्कि हर शहर में मौजूदा हर सिस्टम को मजबूत बनाना होगा. ये हमले उस एक चेतावनी की तरह है कि अब देश को खतरा केवल बाहर से नहीं बल्कि आंतरित स्तर पर भी है. फिलहाल ये हमले रूस की ताकत, सुरक्षा पर उसके नियंत्रण और स्थिरता की परीक्षा बन चुके हैं. यही वजह है कि रूस के भीतर सुरक्षा चिंताएं अब केवल एक चेतावनी नहीं, बल्कि एक गंभीर राष्ट्रीय चुनौती के रूप में देखी जा रही हैं.
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