
- शर्म-अल-शेख को हमास और इजरायल के सीजफायर के बाद कूटनीति के महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में देखा जा रहा है.
- भारत के पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने 2009 में तत्कालीन पाक पीएम यूसुफ रजा गिलानी से यहीं अहम वार्ता की थी.
- उस वार्ता में आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी, लेकिन पाकिस्तान ने उस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया.
इजिप्ट का शर्म-अल-शेख शहर सोमवार को एक बार फिर से दुनियाभर की मीडिया में छाने वाला है. हमास और इजरायल के बीच हुए सीजफायर के बाद सबकी नजरें हमेशा से ही अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है. ऐतिहासिक तौर पर यह जगह कई देशों के नेताओं के लिए महत्वपूर्ण वार्ता स्थल के रूप में उभरी है. साल 2009 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने यहीं अपने पाकिस्तानी समकक्ष यूसुफ रजा गिलानी से मुलाकात की थी. अब सोमवार को यह जगह एक बार फिर चर्चा में रहेगी. यह बात और है कि न तो 16 साल पहले पाकिस्तान अपने शब्दों पर टिक सका था और न ही अब हमास अपने वादे पर कायम होता हुआ नजर आ रहा है. हमास ने ट्रंप के प्रस्ताव को 'नॉनसेंस' बताते हुए समझौते से दूरी बनाने का ऐलान कर दिया है. यह बात और है कि उसने अब बंधकों को रिहा करना शुरू कर दिया है लेकिन उसने समझौते के बाकी प्वाइंट्स को मानने से इनकार कर दिया है.
लाल सागर के किनारे 'क्राइसिस सेंटर'
राजधानी काइरो में लाल सागर के तट पर स्थित शर्म-अल-शेख अपने सुंदर समुद्री तटों, शानदार रिजॉर्ट्स और डाइविंग स्पॉट्स के लिए जाना जाता है. यहां के रिजॉर्ट्स अक्सर ही दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करते हैं. साथ ही कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन और मीटिंग्स के लिए सुविधाजनक माहौल प्रदान करते हैं. लेकिन जब-जब दो देशों के बीच कोई बड़ा संकट आता है तो यह जगह डिप्लोमैसी सेंटर बनकर खबरों में आ जाती है.
मनमोहन और गिलानी की वह मीटिंग
जुलाई 2009 में जब शर्म-अल-शेख का मौसम थोड़ा सा उमस भरा था तो उसी समय भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष युसूफ रजा गिलानी के साथ मुलाकात की. इसके बाद एक ज्वॉइन्ट स्टेटमेंट जारी किया गया जिसमें पाकिस्तान से लगातार बातचीत करने का जिक्र था. इस स्टेटमेंट में पहली बार बलूचिस्तान का भी जिक्र हुआ और यह पहली बार था जब भारत-पाकिस्तान की तरफ से जारी किसी साझा बयान में बलूचिस्तान भी शामिल हुआ था.
नहीं सुधरा पाकिस्तान
भारत ने इसमें पाकिस्तान से आतंकवाद के खिलाफ एक्शन लेने की मांग की थी. यह मुलाकात 26/11 मुंबई हमलों के बाद हो रही थी और ऐसे में पड़ोसी से उम्मीदें काफी बढ़ गई थीं. लेकिन नतीजा वही 'ढाक के तीन पात,' और आज भी पाकिस्तान बखूबी आतंकवाद को अपनी धरती पर पालने-पोसने में लगा हुआ है. 2009 के बाद से कई ऐसे आतंकी हमले हुए जिसमें उसकी भूमिका साफ नजर आई लेकिन हर बार उसने कोई एक्शन लेने के बजाय खुद को ही आतंकवाद का पीड़ित करार दिया. आज भी उस भारत-पाक वार्ता को शर्म-अल-शेख पैक्ट के तौर पर जाना जाता है.
हमास का भी वही राग
अब आते हैं 16 साल बाद के घटनाक्रम पर यानी बात हमास की. इजरायल के साथ पिछले दिनों जो सीजफायर समझौता हमास ने साइन किया है, वह शुक्रवार से लागू हो चुका है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की वजह से दोनों देश गाजा पीस प्लान पर राजी हुए.72 घंटों की समयसीमा आज खत्म हुई और 20 बंधकों में से आज सात बंधक पहले बैच के तहत रिहा हो गए हैं. ये वो बंधक हैं जिन्हें सात अक्टूबर 2023 के हमले में हमास ने बंदी बना लिया था. ट्रंप ने कहा था कि सोमवार या मंगलवार को बंधकों को रिहा किया जा सकता है. वहीं हमास की तरफ से समझौते की साइनिंग सेरेमनी से खुद को अलग रखने का फैसला किया गया है. हमास ने ट्रंप के प्रस्ताव को पूरी तरह से 'नॉनसेंस' बता दिया है.
ट्रंप का प्लान 'नॉनसेंस'
न्यूज एजेंसी एएफपी ने हमास के पॉलिटिकल ब्यूरो के सदस्य होसम बदरान के हवाले से लिखा है, 'ऑफिशियल साइनिंग में हम शामिल नहीं होंगे.' उन्होंने आगे कहा कि इजिप्ट में युद्धविराम वार्ता के दौरान हमास ने 'मुख्य तौर पर कतर और मिस्र के मध्यस्थों के जरिये' काम किया. हमास ने इजरायल की निरस्त्रीकरण की शर्त को मानने से साफ इनकार कर दिया है. यह ट्रंप के गाजा पीस प्लान का दूसरा चरण है और हमास का कहना है कि उसके लिए लिए हथियार आत्मरक्षा का मामला है.
बदरान ने हमास सदस्यों को गाजा पट्टी छोड़ने के लिए ट्रंप की शांति योजना को 'नॉनसेंस' कहा. उन्होंने कहा कि अगर इजरायल की तरफ से दुश्मनी फिर से आगे बढ़ाई गई तो समूह उसकी आक्रामकता को कमजोर करेगा. उनके शब्दों में, 'फिलिस्तीनियों को, चाहे वो हमास के सदस्य हों या नहीं, उनकी जमीन से खदेड़ने की बात बेतुकी और नॉनसेंस है.' ऐसे में शर्म-अल-शेख में इस बार हमास का वादा सच होगा या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा.
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