
क्या वाकई अपनी धरती से बाहर भी जीवन है? इंसानों के इतिहास में एलियंस को लेकर यह सवाल बहुत पुराना है. जवाब खोजा जा रहा है और एक के बाद एक स्टडी की जा रही है. एक ऐसी ही स्टडी सामने आई है. इसमें कहा गया है कि मरे हुए तारों, जिसे व्हाइट ड्वार्फ (White dwarf) कहते हैं, भले खुद में खत्म हो रहे हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनके आसपास जीवन न हों. यह निष्कर्ष फ्लोरिडा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के रिसर्चर कैल्डन व्हाईट ने अपनी स्टडी में निकाला है.
कैल्डन व्हाईट ने स्टडी में क्या पाया?
स्पेस डॉट कॉम की रिपोर्ट के अनुसार अब तक, वैज्ञानिकों ने आम तौर पर सोचा था कि White dwarf का चक्कर काटने वालों ग्रहों पर जीवन नहीं हो सकता क्योंकि जैसे-जैसे तारे मरते हैं, उनके तापमान में धीरे-धीरे कमी से उनका वातावरण बहुत अस्थिर हो जाता है. लेकिन अब कैल्डन व्हाईट और उनके सहकर्मियों ने एक मॉडल विकसित किया है जो यह आकलन करने में सक्षम है कि क्या White dwarf के चारों ओर मौजूद कक्षाओं में एक रेंज ऐसा भी हो सकता है जहां तापमान ऐसा हो जो तरल पानी का अस्तित्व होने के लिए पर्याप्त हो.
तारों के आसपास के इस रेंज को रहने योग्य क्षेत्र या गोल्डीलॉक्स क्षेत्र के रूप में जाना जाता है. इस रेंज में आने वाले ग्रह न तो बहुत गर्म हैं और न ही बहुत ठंडे. कैल्डन व्हाईट की टीम द्वारा विकसित इस मॉडल में पाया गया कि White dwarf एक साथ इन दोनों प्रक्रियाओं के अनुकूल स्थिति दे सकते हैं, जिससे इनके आसपास पृथ्वी जैसे ग्रह संभव हो सकते हैं.
यह खोज ब्रह्मांड में कहीं और जीवन की हमारी खोज का ध्यान बढ़ाने में मदद कर सकती है. यह स्टडी सुझाव देती है कि एलियंस की खोज में जिन सिस्टम को पहले ही नजरअंदाज कर दिया गया था, उन्हें फिर से देखने की जरूरत है.
इस मॉडल ने एक White dwarf का चक्कर काट रहे पृथ्वी जैसे ग्रह का सिमुलेशन तैयार किया. इससे टीम यह माप सकी कि उस ग्रह को White dwarf के ठंडा होने और रहने योग्य क्षेत्र में कितनी ऊर्जा प्राप्त हुई. आश्चर्यजनक रूप से, इससे पता चला कि, सात अरब वर्षों में, इस ग्रह को प्रकाश संश्लेषण और यूवी-संचालित जीवोत्पत्ति दोनों को बनाए रखने के लिए पर्याप्त ऊर्जा प्राप्त हुई.
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