
- उत्तरकाशी के भटवाड़ी ब्लॉक में स्थित दयारा बुग्याल में पारंपरिक बटर फेस्टिवल उत्सव धूमधाम से मनाया गया.
- पर्व में स्थानीय ग्रामीणों ने सोमेश्वर देवता की डोली की पूजा कर प्रकृति और पशुधन की समृद्धि की कामना की.
- इस वर्ष धराली आपदा के कारण उत्सव को भाद्रपद संक्रांति की बजाय सितंबर में सादगी से आयोजित किया गया.
उत्तरकाशी के भटवाड़ी ब्लॉक स्थित विश्वविख्यात दयारा बुग्याल में शुक्रवार को पारंपरिक और धार्मिक बटर फेस्टिवल (अंढूड़ी उत्सव) का आयोजन हर्षोल्लास के साथ किया गया. करीब 11 हजार फीट की ऊंचाई पर फैले 28 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वाले इस मनमोहक बुग्याल में स्थानीय ग्रामीणों के साथ-साथ देश-विदेश से आए पर्यटकों ने दूध, मट्ठा और मक्खन की होली खेलकर पर्व की परंपरा को जीवंत किया.
इस दौरान पंचगई पट्टी के गांव रैथल, क्यार्क, बन्दरणी, नटिन और भटवाड़ी से आए ग्रामीणों ने अपने ईष्ट भगवान सोमेश्वर देवता की डोली की पूजा-अर्चना कर प्रकृति और पशुधन की समृद्धि की कामना की. पर्व के दौरान ग्रामीणों और पर्यटकों ने एक-दूसरे पर दूध, मट्ठा और मक्खन लगाकर खुशियां साझा कीं.

आपदा के बीच सादगी से मनाया पर्व
इस वर्ष धराली आपदा और प्रदेश के कई हिस्सों में आई प्राकृतिक आपदाओं को देखते हुए पर्व को अपेक्षाकृत सादगी से मनाया गया. पहले यह पर्व भाद्रपद संक्रांति (अगस्त मध्य) को होना था, लेकिन आपदा के चलते तिथि आगे बढ़ाकर अब सितंबर में आयोजित किया गया.
दयारा पर्यटन उत्सव समिति के अध्यक्ष मनोज राणा ने बताया कि यह उत्सव हमारी लोक संस्कृति, परंपरा और धार्मिक आस्था का प्रतीक है. आपदा के बावजूद परंपरा को बनाए रखने के लिए एक माह बाद पर्व का आयोजन किया गया. उन्होंने यह भी कहा कि दयारा बुग्याल पर्यटन की असीम संभावनाओं से भरा हुआ है और सरकार से यहां ग्रीष्मकालीन एवं शीतकालीन पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु आधारभूत सुविधाएं विकसित करने की मांग की जाएगी.

लोहे के परसे पर चलने की परंपरा
पर्व का सबसे आकर्षक क्षण रहा जब पंचगई पट्टी के ईष्ट देवता सोमेश्वर देव ने डांगरी (लोहे के फरसे) पर नृत्य कर ग्रामीणों और श्रद्धालुओं को सुख, समृद्धि और खुशहाली का आशीर्वाद दिया. करीब 50 मीटर तक देवता का पसुवा लोहे के परसे पर 100 बार चला और भक्तों को आशीर्वाद प्रदान किया.
स्थानीय मान्यता है कि सोमेश्वर देवता इंद्र देव को प्रसन्न करने से जुड़े हैं. सूखे के समय ग्रामीण उनसे वर्षा कराने और अधिक वर्षा होने पर उसे रोकने की मन्नत मांगते हैं. इस बार भी देवता की डोली के दयारा आने और लौटने तक बारिश न होने पर ग्रामीणों ने देवता का आभार जताया.

हर साल आते हैं देशी-विदेशी पर्यटक
पारंपरिक मान्यता के अनुसार, ग्रीष्मकाल में ग्रामीण अपने पशुधन को इन हरे-भरे बुग्यालों (घास के मैदानों) में चराने लाते हैं. यहां रहने से पशुओं की सेहत और दूध उत्पादन में वृद्धि होती है. दूध, मक्खन और मट्ठा की इसी समृद्धि के प्रति आभार प्रकट करने के लिए ग्रामीण यह पर्व मनाते हैं।
अंढूड़ी उत्सव या बटर फेस्टिवल पूरी दुनिया में अपनी तरह का अनूठा पर्व है, जहां दूध, मक्खन और मट्ठा की होली खेली जाती है. बीते दो दशकों से दयारा पर्यटन उत्सव समिति ग्रामीणों के साथ मिलकर इसका भव्य आयोजन करती आ रही है. अपने अनोखेपन के कारण यह उत्सव न सिर्फ स्थानीय संस्कृति का प्रतीक बन गया है, बल्कि हर साल हजारों देशी-विदेशी पर्यटक इसे देखने के लिए रैथल और दयारा बुग्याल पहुंचते हैं.
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