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तेजी से पिघल रहा गंगोत्री ग्लेशियर, 1935 से अबतक लगभग 2 किलोमीटर पिघला

राकेश भांबरी ने इसके पीछे का मुख्य कारण धरती का बढ़ता तापमान बताया है. ग्लेशियर की सेहत सबसे ज्यादा खराब होने की वजह मौसमी चक्र में बदलाव है.

तेजी से पिघल रहा गंगोत्री ग्लेशियर, 1935 से अबतक लगभग 2 किलोमीटर पिघला

धरती का तापमान तेजी से बढ़ रहा है और दुनिया का थर्ड पोल माने जाने वाले हिमालय के ग्लेशियर खतरे में आ गए हैं. उत्तराखंड में गंगोत्री ग्लेशियर तेजी से पिघल रहा है. हालत यह है कि साल 1935 से लेकर वर्तमान तक गंगोत्री ग्लेशियर 1.7 किलोमीटर पिघल चुका है. अब मौजूदा समय में 30 किलोमीटर लंबा ग्लेशियर रह गया है.

वादिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ राकेश भांबरी जो लंबे समय से हिमालय ग्लेशियरों पर काम कर रहे हैं. खासकर गंगोत्री ग्लेशियर पर राकेश भांबरी ने कहा कि आंकड़ों को देख तो गंगोत्री ग्लेशियर तेजी से पिघल रहा है. हिमालय के अन्य ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहे हैं. उनका यह भी कहना है कि सिर्फ ग्लेशियर तेजी से ही नहीं पिघल रहे, बल्कि उनकी लंबाई और चौड़ाई दोनों तेजी से घट रही है जो आने वाले समय के लिए बेहद ही खतरनाक संकेत है.

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राकेश भांबरी ने इसके पीछे का मुख्य कारण धरती का बढ़ता तापमान बताया है. ग्लेशियर की सेहत सबसे ज्यादा खराब होने की वजह मौसमी चक्र में बदलाव है. यानी जहां पहले बर्फ पड़ती थी. अब वहां बारिश हो रही है. यही नहीं हिमालय के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बर्फबारी नहीं हो रहा है. उन जगहों पर मूसलाधार बारिश हो रही है. बर्फबारी नहीं होगी तो उनके सेहत खराब होना लाजमी है.

5 जून को हर साल विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. पर्यावरण दिवस मनाने के पीछे का कारण पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों में जागरूकता को बढ़ाना है. मौजूदा समय में बढ़ते प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के चलते धरती का तापमान तेजी से बढ़ रहा है. धरती का तापमान बढ़ने से मौसमी चक्र में बदलाव आ गया है और कभी तेज बारिश तो कभी तेज गर्मी हो रही है. यही नहीं विश्व के कई जगहों पर बाढ़ जैसी स्थिति आ रही है या फिर तापमान बढ़ने से जंगलों में भयानक आग लग रही है. इस सबका असर पर्यावरण पर पड़ रहा है समय पर ऋतु भी अब नहीं आ पा रही है.
 

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