
- बीजेपी ने अभी तक यूपी के नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा नहीं की है, निर्णय राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद होगा
- पार्टी लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद किसी भी जोखिम को लेकर सतर्क है
- बीजेपी को पिछड़ों और दलितों के वोट हासिल करने के लिए अपने सामाजिक समीकरण दुरुस्त करने होंगे
- भूपेन्द्र चौधरी की दोबारा नियुक्ति की संभावना कम है
यूपी में बीजेपी द्वारा अभी तक अगले प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा नहीं की गई है और इस वजह से इसे लेकर चर्चाएं तेज हैं. सूत्रों के मुताबिक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही इसका भी फैसला होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि यूपी का मामला बहुत पेचीदा हो गया है. लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी हाईकमान कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं है. इस वजह से जिसे भी प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जाएगी उसके सीएम योगी आदित्यनाथ से रिश्तों का भी ख्याल रखा जाएगा. यहां आपको बता दें कि दो साल बाद यूपी में विधानसभा के चुनाव हैं.
यूपी में बीजेपी जिस प्रदेश अध्यक्ष के साथ लोकसभा चुनाव में उतरती है, उसके साथ विेधानसभा का चुनाव नहीं लड़ते हैं. सालों से यही परंपरा रही है. इसीलिए माना जा रहा है कि वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी रिपीट नहीं होंगे. जैसे पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में महेन्द्र भट्ट को दोबारा अध्यक्ष बना दिया गया है. यूपी में इसकी संभावना दूर दूर तक नहीं है. सवाल ये है कि यूपी में चुनाव कब होगा! इतनी देरी क्यों! किस बात पर मामला फंस गया है! मतलब ये है कि यूपी बीजेपी का नया अध्यक्ष कब चुना जाएगा?
दिल्ली से लेकर लखनऊ तक के सूत्र बता रहे हैं कि पहले बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होगा और फिर यूपी के प्रदेश अध्यक्ष का फैसला होगा. मतलब ये है कि यूपी बीजेपी अध्यक्ष के चुनाव में कई सारे पेंच हैं.
- नया अध्यक्ष किस बिरादरी का हो.
- अभी तक मिली जानकारी के मुताबिक फोकस OBC पर है
- पूर्वांचल का हो या फिर पश्चिमी यूपी से
- सीएम योगी से उस नेता के रिश्ते कैसे हैं
बीजेपी नेताओं का एक गुट चाहता है कि पीएम नरेन्द्र मोदी खुद OBC हैं तो ऐसे में किसी ब्राह्मण नेता को यूपी का अध्यक्ष बनाया जाए. पर पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजों ने पार्टी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है. उस चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगी दल मिल कर 36 सीट ही जीत पाए. इनमें बीजेपी के 33, आरएलडी के 2 और अपना दल के एक सांसद हैं. साल 2019 के मुकाबले एनडीए को 28 सीटों का नुकसान हुआ. जबकि PDA के फार्मूले से समाजवादी पार्टी ने अब तक का सबसे बढ़िया प्रदर्शन किया. उसे 37 सीटें मिली. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यूपी में 41.4% वोट मिले. जबकि 2019 के चुनाव में 49.6% वोट मिले थे. मतलब बीजेपी का वोट शेयर करीब आठ फीसदी कम हो गया.
यूपी में बीएसपी लगातार कमजोर होती गई. ऐसे में अगले विधानसभा चुनाव में अधिकतर सीटों पर समाजवादी पार्टी और बीजेपी का सीधा मुक़ाबला हो सकता है. पता चला है कि अखिलेश यादव इस बार मुस्लिम यादव के बदले पिछड़ों और दलितों को अधिक टिकट देने के मूड में हैं. ऐसे में बीजेपी को भी अपना सामाजिक समीकरण फिर से सेट करना होगा.
इस हिसाब से गैर यादव OBC नेता ही अध्यक्ष के लिए सबसे बेहतर हो सकते हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में पटेल, कुर्मी, सैनी और शक्य बिरादरी का एक बड़ा तबका बीजेपी से छिटक गया था. निषाद पार्टी से गठबंधन के बाद भी इस जाति के भी एक हिस्से ने समाजवाद पार्टी को वोट किया. दूसरा मसला सीएम योगी आदित्यनाथ का है. दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक से उनके रिश्ते अच्छे नहीं है. पार्टी के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी थे साथ भी योगी का वही संबंध है. ऐसे में उस नेता को ये ज़िम्मेदारी दी जाएगी जिनके योगी से रिश्ते बेहतर हों.
- साल 2017 के विधानसभा चुनाव में केशव प्रसाद मौर्य बीजेपी के यूपी अध्यक्ष थे. तब पार्टी ने तीन सौ पार किया
- साल 2019 के लोकसभा चुनाव में ब्राह्मण कोटे से महेन्द्र नाथ पांडे इस पद पर थे
- साल 2022 के विधानसभा चुनाव में कुर्मी बिरादरी से स्वतंत्र देव सिंह यूपी के अध्यक्ष थे
- साल 2024 के चुनाव में पश्चिमी यूपी के जाट बिरादरी से भूपेन्द्र चौधरी इस पद पर थे. जातीय और क्षेत्रीय समीकरण के हिसाब से OBC नेता को यूपी में पार्टी की कमान देने की संभावना सबसे अधिक हैं
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