इस साल विधानसभा चुनावों के बाद मायावती ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी को पार्टी से बाहर निकाल दिया था (फाइल फोटो)
- मायावती सरकार में कभी कद्दावर नेता थे नसीमुद्दीन
- नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने बनाया राष्ट्रीय बहुजन मोर्चा
- राष्ट्रीय बहुजन मोर्चा की पहली बैठक आगरा में
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नई दिल्ली:
मायावती द्वारा बहुजन समाज पार्टी से नसीमुद्दीन सिद्दीकी को बाहर का रास्ता दिखाने के बाद अब बागी तेवर में नसीमुद्दीन ने एंटी मायावती फोर्सेस का गठन किया है. इसका नाम उन्होंने राष्ट्रीय बहुजन मोर्चा रखा है और बसपा के कई बागी नेता उनके इस मोर्चे में उनके साथ हैं.
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मंगलवार को नसीमुद्दीन ने आगरा में राष्ट्रीय बहुजन मोर्चा की पहली बैठक की. इस बैठक में बसपा के कई नेता शामिल हुए. सूत्रों की मानें तो नसीमुद्दीन की पूरी कोशिश मायावती के पिछड़े और मुस्लिम वोट बैंक को तोड़ने की है.
यह भी पढ़ें: नसीमुद्दीन ने मायावती पर लगाए बड़े आरोप, बोले- मुझसे प्रॉपर्टी बेचकर 50 करोड़ देने को कहा
बसपा से निलंबित पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी ने मई महीने में राष्ट्रीय बहुजन मोर्चे के गठन का ऐलान किया था. नसीमुद्दीन ने कहा, 'मायावती ने ख़ुद बसपा को ख़त्म कर दिया है और मैं पूरे प्रदेश में लोगों से मिल कर निर्णय लूंगा कि मेरा मोर्चा चुनावी राजनीति में आएगा या नहीं.' उन्होंने दावा किया कि उनके साथ पिछड़े वर्ग के 16 दल हैं.
यह भी पढ़ें: बीएसपी से निकाले गए नसीमुद्दीन सिद्दीकी और उनके बेटे अफजल सिद्दीकी
नसीमुद्दीन इस साल हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में बसपा के मुस्लिम और पिछड़ों को साथ लाने के फ़ार्मूले के सूत्रधार थे. जानकारों की मानें तो नसीमुद्दीन के मोर्चे के मज़बूत होने से बीजेपी को उत्तर प्रदेश में सबसे ज़्यादा फ़ायदा होगा.
वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री का कहना है कि अभी की राजनीतिक पृष्टभूमी देखते हुए साफ़ लगता है कि नसीमुद्दीन को पीछे से बीजेपी का समर्थन है. जिस तरह गुजरात, त्रिपुरा में विधायक टूट रहे हैं इससे ये बात साफ़ हो जाती है. उन्होंने कहा कि मायावती के राज्यसभा से इस्तीफ़े के बाद अपने सिर्फ़ 19 विधायकों के दम पर उनका राज्यसभा में पहुंचना नामुमकिन है और 2019 लोकसभा चुनाव से पहले मायावती को संगठन को एकजुट रखना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती रहेगी.
मायावती को भले ही उत्तर प्रदेश में सिर्फ़ 19 सीटें मिली हों पर 22 फीसदी का वोट शेयर लेकर बसपा, बीजेपी के बाद दूसरे नंबर पर रही. ऐसे में नसीमुद्दीन की पूरी कोशिश है कि इस 22 फीसदी वोट बैंक में सेंधमारी कर मायावती को कमज़ोर कर दिया जाए.
VIDEO: बीएसपी से निकाले गए नसीमुद्दीन सिद्दीकी की NDTV इंडिया से खास बातचीत बता दें कि नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने 1988 ने अपना राजनीतिक सफर शुरू किया और वे बहुजन समाज पार्टी के साथ जुड़े. 1991 में पहली बार विधायक चुने गए, लेकिन 1993 में हार गए. मायावती 1995 में पहली बार मुख्यमंत्री बनीं तो नसीमुद्दीन कैबिनेट मंत्री. 1997 और 2002 में भी मंत्री रहे. 13 मई, 2007 से 7 मार्च, 2012 तक मायावती सरकार में मंत्री रहे. 10 मई, 2017 को मायावती ने पार्टी के खिलाफ काम करने के आरोप में नसीमुद्दीन और उनके बेटे अल्ताफ को पार्टी से बाहर कर दिया.
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मंगलवार को नसीमुद्दीन ने आगरा में राष्ट्रीय बहुजन मोर्चा की पहली बैठक की. इस बैठक में बसपा के कई नेता शामिल हुए. सूत्रों की मानें तो नसीमुद्दीन की पूरी कोशिश मायावती के पिछड़े और मुस्लिम वोट बैंक को तोड़ने की है.
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बसपा से निलंबित पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी ने मई महीने में राष्ट्रीय बहुजन मोर्चे के गठन का ऐलान किया था. नसीमुद्दीन ने कहा, 'मायावती ने ख़ुद बसपा को ख़त्म कर दिया है और मैं पूरे प्रदेश में लोगों से मिल कर निर्णय लूंगा कि मेरा मोर्चा चुनावी राजनीति में आएगा या नहीं.' उन्होंने दावा किया कि उनके साथ पिछड़े वर्ग के 16 दल हैं.
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नसीमुद्दीन इस साल हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में बसपा के मुस्लिम और पिछड़ों को साथ लाने के फ़ार्मूले के सूत्रधार थे. जानकारों की मानें तो नसीमुद्दीन के मोर्चे के मज़बूत होने से बीजेपी को उत्तर प्रदेश में सबसे ज़्यादा फ़ायदा होगा.
वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री का कहना है कि अभी की राजनीतिक पृष्टभूमी देखते हुए साफ़ लगता है कि नसीमुद्दीन को पीछे से बीजेपी का समर्थन है. जिस तरह गुजरात, त्रिपुरा में विधायक टूट रहे हैं इससे ये बात साफ़ हो जाती है. उन्होंने कहा कि मायावती के राज्यसभा से इस्तीफ़े के बाद अपने सिर्फ़ 19 विधायकों के दम पर उनका राज्यसभा में पहुंचना नामुमकिन है और 2019 लोकसभा चुनाव से पहले मायावती को संगठन को एकजुट रखना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती रहेगी.
मायावती को भले ही उत्तर प्रदेश में सिर्फ़ 19 सीटें मिली हों पर 22 फीसदी का वोट शेयर लेकर बसपा, बीजेपी के बाद दूसरे नंबर पर रही. ऐसे में नसीमुद्दीन की पूरी कोशिश है कि इस 22 फीसदी वोट बैंक में सेंधमारी कर मायावती को कमज़ोर कर दिया जाए.
VIDEO: बीएसपी से निकाले गए नसीमुद्दीन सिद्दीकी की NDTV इंडिया से खास बातचीत बता दें कि नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने 1988 ने अपना राजनीतिक सफर शुरू किया और वे बहुजन समाज पार्टी के साथ जुड़े. 1991 में पहली बार विधायक चुने गए, लेकिन 1993 में हार गए. मायावती 1995 में पहली बार मुख्यमंत्री बनीं तो नसीमुद्दीन कैबिनेट मंत्री. 1997 और 2002 में भी मंत्री रहे. 13 मई, 2007 से 7 मार्च, 2012 तक मायावती सरकार में मंत्री रहे. 10 मई, 2017 को मायावती ने पार्टी के खिलाफ काम करने के आरोप में नसीमुद्दीन और उनके बेटे अल्ताफ को पार्टी से बाहर कर दिया.
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