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कोई मारता है जूते तो कोई निकालता है परेड, होली पर 'लाट साहब' की ये परंपरा आप भी जान लीजिए

लाट साहब के जुलूस में एक व्यक्ति को लाट साहब बनाकर भैंसा गाड़ी पर बिठाया जाता है और लाट साहब को जूते मारते हुए पूरे शहर में घुमाया जाता है.

कोई मारता है जूते तो कोई निकालता है परेड, होली पर 'लाट साहब' की ये परंपरा आप भी जान लीजिए
होली पर लाट साहब की परेड निकालने की परंपरा.

शहर की सड़कों पर लोगों का हुजूम, बीच रास्ते से निकलती एक भैंसागाड़ी, जिसपर सवार लाट साहब पर जूतों की बरसात... होली पर यह नजारा यूपी के शाहजहांपुर से देखने को सामने आता है. होली पर लाट साहब के जुलूस की यह परंपरा शाहजहांपुर में सालों से चली आ रही है. जिसमें पूरा शहर शामिल होता है. इस बार भी होली को लेकर शाहजहांपुर में लाट साहब के जुलूस (Laat Sahab Parade) की मुकम्मल तैयारी कर ली गई है. 

होली पर शाहजहांपुर की यह परंपरा पूरे देश में मशहूर है. लाट साहब के जुलूस में एक व्यक्ति को लाट साहब बनाकर भैंसा गाड़ी पर बिठाया जाता है और लाट साहब को जूते मारते हुए पूरे शहर में घुमाया जाता है. फिर महानगर के बाबा विश्वनाथ मंदिर में लाट साहब से पूजा-अर्चना करवाई जाती है. 

महानगर में निकलने वाले बड़े और छोटे लाट साहब के इन प्रमुख दो जुलूसों के लिए जिला और पुलिस प्रशासन दो माह पहले से ही तैयारी शुरू कर देता है. 

होली पर लाट साहब के परेड की कैसे हुई शुरुआत

शाहजहांपुर के पुराने लोग बताते हैं कि शहर की स्थापना करने वाले नवाब बहादुर खान वंश के आखिरी शासक नवाब अब्दुल्ला खान के घर 1729 में हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्म के लोग होली खेलने गए थे. नवाब ने उनके साथ होली खेली थी. बाद में नवाब को ऊंट पर बिठाकर पूरे शहर में घुमाया गया था, तब से यह परंपरा शाहजहांपुर में चली आ रही है. 

फोटो कैप्शन- पुलिस-प्रशासन की भारी तैनाती के बीच लाट साहब की परेड. (तस्वीर पिछड़े साल की)

फोटो कैप्शन- पुलिस-प्रशासन की भारी तैनाती के बीच लाट साहब की परेड. (तस्वीर पिछड़े साल की)

अंग्रेजों के समय में लाट साहब के परेड में आया बदलाव

आजादी के बाद इस जुलूस का नाम लाट साहब का जुलूस रख दिया गया. ब्रिटिश शासन में गवर्नर को लाट साहब कहा जाता था. उस समय अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के कारण भारतीय उनसे नफरत करते थे. नफरत की इसी आग ने होली की इस परपंरा को नया रूप दे दिया. 

एक व्यक्ति को लाट साहब मानकर भैंसागाड़ी पर बैठाकर उसको जूते और चप्पल मारने की परंपरा शुरू की गई. आजादी के बाद से ये परंपरा बदस्तूर जारी है.

कोतवाली के अंदर दी जाती है सलामी

चौक से निकलने वाले लाट साहब के जुलूस को कोतवाली के अंदर सलामी दी जाती है, उसके बाद नवाब यानी लाट साहब कोतवाली पहुंचते हैं जहां पूरे वर्ष का लेखा-जोखा कोतवाल से मांगा जाता है. इस दौरान कोतवाल द्वारा लाट साहब को नजराना पेश किया जाता है. 

शांतिपूर्ण होली के लिए 3500 जवान तैनात

वर्तमान में होली पर चौक से बड़े लाट साहब तथा सरायकाईयाँ से छोटे लाट साहब के जुलूस सहित, अजीजगंज और बहादुरगंज में भी जुलूस निकाले जाते है. कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के साथ जिले के सभी जुलूसों को सकुशल संपन्न कराने के लिए पुलिस एवं जिला प्रशासन द्वारा PAC/RAF के साथ साथ लगभग 3500 पुलिस बल के जवानों को तैनात किया जा रहा है. 

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लाट साहब के परेड की विशेष तैयारी

लाट साहब के जुलूस के लिए जिला प्रशासन की ओर से भारी भरकम तामझाम और व्यवस्थाएं की जाती हैं. लाट साहब का जुलूस जिन मार्गों से होकर गुजरता है, उन मार्गों पर बल्ली और तारों वाला जाल लगाकर गलियों को बंद कर दिया जाता है. जिससे कि लाट साहब के जुलूस में मौजूद लोग किसी गली में ना घुसें और शहर में अमन चैन कायम रहे. 

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कई मस्जिद ढके गए

इसके अतिरिक्त लाट साहब के रूट पर पड़ने वाले सभी धर्म स्थलों को बड़े-बड़े तिरपालों से ढक दिया जाता है, और हर धर्म स्थल पर पुलिस के जवानों को मुस्तैदी से तैनात किया जाता है. इसके साथ-साथ लाट साहब के जुलूस के साथ कई थानों की फोर्स, पीएसी, रैपिड एक्शन फोर्स को भी तैनात किया जाता है. 

सेक्टर के हिसाब से मजिस्ट्रेट तैनात

शाहजहांपुर के एसपी राजेश एस ने बताया कि चप्पे-चप्पे पर कैमरों और ड्रोन के माध्यम से निगरानी की जाती है, जिससे कि शरारती तत्वों की पहचान की जा सके और शहर में अमन चैन कायम रहे. महानगर को सेक्टर के हिसाब से विभाजित कर स्टेटिक मजिस्ट्रेट की तैनाती की जाती है. 

(शाहजहांपुर से रोहित पांडेय की रिपोर्ट)

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