प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली:
यूपी में एनकाउंटरों के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. योगी सरकार ने एनकाउंटरों के खिलाफ याचिका को प्रेरित और दुर्भावनापूर्ण बताया. यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है.
सरकार ने हलफनामे में कहा है कि अपराधियों को पीड़ित बनाकर पेश किया गया. अल्पसंख्यकों का एनकाउंटर करने का आरोप गलत है. मुठभेड़ में मारे गए 48 लोगों में से 30 बहुसंख्यक समुदाय के हैं. सबकी न्यायिक जांच शुरू की गई है. सरकार ने बताया है कि मानवाधिकार आयोग को इसकी रिपोर्ट दी गई है. इस मामले में दो हफ्ते बाद सुनवाई होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टी (पीयूसीएल) से पूछा कि वह अन्तहीन जांच (रोविंग इन्क्वायरी) क्यों करवाना चाहती है और उसने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की शरण क्यों नहीं ली? इस एनजीओ ने अनुरोध किया है कि उत्तर प्रदेश में हाल में हुई मुठभेड़ों में लोगों को मारे जाने की अदालत की निगरानी में सीबीआई या एसआईटी से जांच कराई जाए. इससे पहले कोर्ट ने पीयूसीएल के अनुरोध पर उत्तर प्रदेश सरकार को औपचारिक नोटिस जारी नहीं किया था. न्यायालय ने उत्तर प्रदेश प्रशासन से उसका जवाब दाखिल करने को कहा.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर नहीं करने पर सवाल उठाते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, ‘‘32 क्यों? (शीर्ष अदालत में संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत) आपने (एनजीओ) उच्च न्यायालय से सम्पर्क क्यों नहीं किया? आप इस बारे में (मुठभेड़) रोविंग इन्क्वायरी क्यों चाहते हैं?''
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इस पीठ में न्यायमूर्ति एसके कौल एवं न्यायमूर्ति केएम जोसेफ भी शामिल हैं. बहरहाल, पीठ ने राज्य सरकार की प्रतिक्रिया पर एनजीओ को जवाब देने के लिए समय देने के मकसद से जनहित याचिका की सुनवाई टाल दी. न्यायालय ने यह भी कहा कि वह वकील प्रशांत भूषण के इस अनुरोध पर बाद में विचार करेगा कि राज्य में मुठभेड़ में हुई मौतों के बारे में लंबित जनहित याचिका की सुनवाई में उन्हें भी एक पक्ष बनाया जाए.
उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने जवाब में इन आरोपों का कड़ाई से खंडन किया कि अल्पसंख्यक समुदाय के अपराधियों को ही निशान बनाया जा रहा है. राज्य सरकार ने कहा कि एनजीओ ने चुनिंदा रूप से कुछ अपराधियों को चुना और उनका उल्लेख किया ताकि यह संकेत जा सके कि वे किसी खास धर्म से संबंधित हैं. उसने कहा, ‘‘14 मामलों को मनमाने ढंग से उठाया गया जिसमें से 13 कथित रूप से अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित हैं.''
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वकील सुरेश सिंह बघेल के जरिए दाखिल की गई रिपोर्ट में कहा गया कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने 20 मार्च 2017 से 31 मार्च 2018 के बीच तीन लाख आरोपियों को गिरफ्तार किया. कई पुलिस कार्रवाई में आरोपियों ने गिरफ्तारी का विरोध किया और पुलिस कर्मियों पर गोलीबारी की. फलस्वरूप पुलिस को आत्मरक्षा में कार्रवाई करनी पड़ी.
VIDEO : संदेह के घेरे में यूपी पुलिस
रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘ 20 मार्च 2017 से 31 मार्च 2018 के बीच कुल 3,19,141 आरोपी लोगों को गिरफ्तार किया गया जो पुलिस कार्रवाई में 48 लोगों के मारे जाने के ठीक विपरीत है. यह अपने आप में इस तथ्य की पुष्टि है कि पुलिस कर्मियों की मंशा केवल आरोपियों की गिरफ्तारी है.'' सरकार ने यह भी कहा कि पुलिस ने याचिका में उल्लेखित सभी मामलों में सभी आवश्यक कदम उठाए जिनमें प्राथमिकी दर्ज करने से लेकर मानवाधिकार आयोग को सूचित करना तक शामिल है.
(इनपुट एजेंसियों से भी)
सरकार ने हलफनामे में कहा है कि अपराधियों को पीड़ित बनाकर पेश किया गया. अल्पसंख्यकों का एनकाउंटर करने का आरोप गलत है. मुठभेड़ में मारे गए 48 लोगों में से 30 बहुसंख्यक समुदाय के हैं. सबकी न्यायिक जांच शुरू की गई है. सरकार ने बताया है कि मानवाधिकार आयोग को इसकी रिपोर्ट दी गई है. इस मामले में दो हफ्ते बाद सुनवाई होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टी (पीयूसीएल) से पूछा कि वह अन्तहीन जांच (रोविंग इन्क्वायरी) क्यों करवाना चाहती है और उसने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की शरण क्यों नहीं ली? इस एनजीओ ने अनुरोध किया है कि उत्तर प्रदेश में हाल में हुई मुठभेड़ों में लोगों को मारे जाने की अदालत की निगरानी में सीबीआई या एसआईटी से जांच कराई जाए. इससे पहले कोर्ट ने पीयूसीएल के अनुरोध पर उत्तर प्रदेश सरकार को औपचारिक नोटिस जारी नहीं किया था. न्यायालय ने उत्तर प्रदेश प्रशासन से उसका जवाब दाखिल करने को कहा.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर नहीं करने पर सवाल उठाते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, ‘‘32 क्यों? (शीर्ष अदालत में संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत) आपने (एनजीओ) उच्च न्यायालय से सम्पर्क क्यों नहीं किया? आप इस बारे में (मुठभेड़) रोविंग इन्क्वायरी क्यों चाहते हैं?''
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इस पीठ में न्यायमूर्ति एसके कौल एवं न्यायमूर्ति केएम जोसेफ भी शामिल हैं. बहरहाल, पीठ ने राज्य सरकार की प्रतिक्रिया पर एनजीओ को जवाब देने के लिए समय देने के मकसद से जनहित याचिका की सुनवाई टाल दी. न्यायालय ने यह भी कहा कि वह वकील प्रशांत भूषण के इस अनुरोध पर बाद में विचार करेगा कि राज्य में मुठभेड़ में हुई मौतों के बारे में लंबित जनहित याचिका की सुनवाई में उन्हें भी एक पक्ष बनाया जाए.
उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने जवाब में इन आरोपों का कड़ाई से खंडन किया कि अल्पसंख्यक समुदाय के अपराधियों को ही निशान बनाया जा रहा है. राज्य सरकार ने कहा कि एनजीओ ने चुनिंदा रूप से कुछ अपराधियों को चुना और उनका उल्लेख किया ताकि यह संकेत जा सके कि वे किसी खास धर्म से संबंधित हैं. उसने कहा, ‘‘14 मामलों को मनमाने ढंग से उठाया गया जिसमें से 13 कथित रूप से अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित हैं.''
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वकील सुरेश सिंह बघेल के जरिए दाखिल की गई रिपोर्ट में कहा गया कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने 20 मार्च 2017 से 31 मार्च 2018 के बीच तीन लाख आरोपियों को गिरफ्तार किया. कई पुलिस कार्रवाई में आरोपियों ने गिरफ्तारी का विरोध किया और पुलिस कर्मियों पर गोलीबारी की. फलस्वरूप पुलिस को आत्मरक्षा में कार्रवाई करनी पड़ी.
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रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘ 20 मार्च 2017 से 31 मार्च 2018 के बीच कुल 3,19,141 आरोपी लोगों को गिरफ्तार किया गया जो पुलिस कार्रवाई में 48 लोगों के मारे जाने के ठीक विपरीत है. यह अपने आप में इस तथ्य की पुष्टि है कि पुलिस कर्मियों की मंशा केवल आरोपियों की गिरफ्तारी है.'' सरकार ने यह भी कहा कि पुलिस ने याचिका में उल्लेखित सभी मामलों में सभी आवश्यक कदम उठाए जिनमें प्राथमिकी दर्ज करने से लेकर मानवाधिकार आयोग को सूचित करना तक शामिल है.
(इनपुट एजेंसियों से भी)
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