चुनाव आयोग के फैसले के बाद जश्न मनाते अखिलेश समर्थक
- मुलायम ने ठीक से नहीं किया होमवर्क
- अपने समर्थकों की चिट्ठी चुनाव आयोग को नहीं दी
- अखिलेश के 'फर्जी' समर्थकों का नाम भी नहीं बताया
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नई दिल्ली:
अखिलेश यादव को पार्टी का चुनाव चिह्न साइकिल मिलने के बाद उनके समर्थकों ने जमकर जश्न मनाया, लेकिन क्या इस जश्न में अखिलेश खेमे की मेहनत के अलावा मुलायम सिंह यादव की चुनाव आयोग के सामने ढिलाई भी जिम्मेदार है?
चुनाव आयोग के 42 पेज के आदेश को पढ़ने से साफ पता चलता है कि मुलायम सिंह यादव के पक्ष ने अपना होमवर्क ठीक से नहीं किया और आयोग के सामने पूरे दस्तावेज़ नहीं दिये. जानकार ये ये कह रहे थे कि अगर चुनाव आयोग को दोनों पक्षों की दलीलों में दम लगता तो वह साइकिल चुनाव निशान को फिलहाल ज़ब्त कर सकता था और अपना फैसला बाद के लिये सुरक्षित कर सकता था.
लेकिन चुनाव आयोग ने अपने फैसले में साफ लिखा है कि आयोग की ओर से बार-बार मांगे जाने के बावजूद मुलायम खेमे ने अपने समर्थन में विधायकों या सांसदों की चिट्ठी नहीं दी. यही नहीं, उन्होंने उन लोगों के नाम भी नहीं बताए, जिनके शपथपत्र अखिलेश ने अपने समर्थन में दिए थे और जिन पर मुलायम को शक था कि वो फर्जी हैं.
(पढ़ें : रामगोपाल यादव ने कहा-कांग्रेस के साथ गठबंधन संभव)
आयोग ने जो फैसला सुनाया है, उसके पैरा 36 में विस्तार से लिखा है कि अखिलेश यादव के खेमे ने 228 में से 205 विधायकों, 68 में से 56 एमएलसी और 24 में से 15 सांसदों के समर्थन की चिट्ठी दी. इसके अलावा अखिलेश की ओर से 46 में से 28 नेशनल एक्ज़ीक्यूटिव सदस्यों और 5731 में से 4400 राष्ट्रीय प्रतिनिधियों के हलफनामे सौंपे गए, जिसमें कहा गया था कि वह अखिलेश के खेमे के साथ हैं.
निर्वाचन आयोग ने सिम्बल ऑर्डर के पैरा 15 का ज़िक्र करते हुये कहा है कि जिसके पक्ष में विधायी और सांगठनिक ताकत है, उसे ही असली दावेदार माना जाता है. अखिलेश की ओर से दिए गए इन शपथपत्रों से उनका दावा मजबूत हुआ. लेकिन इसके उलट मुलायम सिंह यादव खेमे की ओर से सिर्फ यही कहा जाता रहा कि पार्टी पर अब भी नेताजी (मुलायम) की पकड़ है.
चुनाव आयोग ने अपने ऑर्डर के पैरा 37, 38 और 39 में साफ लिखा है कि मुलायम सिंह यादव की ओर से अपने समर्थन में कोई दस्तावेज़ नहीं दिये गये, जबकि आयोग ने उन्हें 9 जनवरी तक का वक्त दिया था. ऐसे में मुलायम का पक्ष कमजोर हुआ और अखिलेश के वकीलों ने 13 जनवरी को चुनाव आयोग में बहस के दौरान इसको मुद्दा बनाया.
आयोग ने यह भी कहा है कि मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव की ओर से जमा किये गये शपथपत्रों की सत्यता पर तो सवाल उठाये लेकिन आयोग को अपनी आपत्ति को लेकर कभी संतुष्ट नहीं किया. आयोग ने अपने आदेश के पैरा 39 में लिखा है कि बार-बार अवसर दिये जाने के बावजूद न तो मुलायम सिंह यादव ने कोई हलफनामा दिया और न ही किसी सांसद या विधायक का नाम बताया, जिसके शपथपत्र को वह फर्ज़ी मानते हों. आयोग के मुताबिक मुलायम यही कहते रहे कि पार्टी में कोई विघटन नहीं हुआ है और वही पार्टी के सर्वेसर्वा हैं. जाहिर है सिर्फ ये दलील काफी नहीं थी और चुनाव चिह्न अखिलेश को दे दिया गया.
चुनाव आयोग के 42 पेज के आदेश को पढ़ने से साफ पता चलता है कि मुलायम सिंह यादव के पक्ष ने अपना होमवर्क ठीक से नहीं किया और आयोग के सामने पूरे दस्तावेज़ नहीं दिये. जानकार ये ये कह रहे थे कि अगर चुनाव आयोग को दोनों पक्षों की दलीलों में दम लगता तो वह साइकिल चुनाव निशान को फिलहाल ज़ब्त कर सकता था और अपना फैसला बाद के लिये सुरक्षित कर सकता था.
लेकिन चुनाव आयोग ने अपने फैसले में साफ लिखा है कि आयोग की ओर से बार-बार मांगे जाने के बावजूद मुलायम खेमे ने अपने समर्थन में विधायकों या सांसदों की चिट्ठी नहीं दी. यही नहीं, उन्होंने उन लोगों के नाम भी नहीं बताए, जिनके शपथपत्र अखिलेश ने अपने समर्थन में दिए थे और जिन पर मुलायम को शक था कि वो फर्जी हैं.
(पढ़ें : रामगोपाल यादव ने कहा-कांग्रेस के साथ गठबंधन संभव)
आयोग ने जो फैसला सुनाया है, उसके पैरा 36 में विस्तार से लिखा है कि अखिलेश यादव के खेमे ने 228 में से 205 विधायकों, 68 में से 56 एमएलसी और 24 में से 15 सांसदों के समर्थन की चिट्ठी दी. इसके अलावा अखिलेश की ओर से 46 में से 28 नेशनल एक्ज़ीक्यूटिव सदस्यों और 5731 में से 4400 राष्ट्रीय प्रतिनिधियों के हलफनामे सौंपे गए, जिसमें कहा गया था कि वह अखिलेश के खेमे के साथ हैं.
निर्वाचन आयोग ने सिम्बल ऑर्डर के पैरा 15 का ज़िक्र करते हुये कहा है कि जिसके पक्ष में विधायी और सांगठनिक ताकत है, उसे ही असली दावेदार माना जाता है. अखिलेश की ओर से दिए गए इन शपथपत्रों से उनका दावा मजबूत हुआ. लेकिन इसके उलट मुलायम सिंह यादव खेमे की ओर से सिर्फ यही कहा जाता रहा कि पार्टी पर अब भी नेताजी (मुलायम) की पकड़ है.
चुनाव आयोग ने अपने ऑर्डर के पैरा 37, 38 और 39 में साफ लिखा है कि मुलायम सिंह यादव की ओर से अपने समर्थन में कोई दस्तावेज़ नहीं दिये गये, जबकि आयोग ने उन्हें 9 जनवरी तक का वक्त दिया था. ऐसे में मुलायम का पक्ष कमजोर हुआ और अखिलेश के वकीलों ने 13 जनवरी को चुनाव आयोग में बहस के दौरान इसको मुद्दा बनाया.
आयोग ने यह भी कहा है कि मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव की ओर से जमा किये गये शपथपत्रों की सत्यता पर तो सवाल उठाये लेकिन आयोग को अपनी आपत्ति को लेकर कभी संतुष्ट नहीं किया. आयोग ने अपने आदेश के पैरा 39 में लिखा है कि बार-बार अवसर दिये जाने के बावजूद न तो मुलायम सिंह यादव ने कोई हलफनामा दिया और न ही किसी सांसद या विधायक का नाम बताया, जिसके शपथपत्र को वह फर्ज़ी मानते हों. आयोग के मुताबिक मुलायम यही कहते रहे कि पार्टी में कोई विघटन नहीं हुआ है और वही पार्टी के सर्वेसर्वा हैं. जाहिर है सिर्फ ये दलील काफी नहीं थी और चुनाव चिह्न अखिलेश को दे दिया गया.
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