
उत्तर प्रदेश के मथुरा के वृंदावन में स्थित प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर मामले में नया मोड़ आया है. मंदिर के सेवायतों ने उत्तर प्रदेश सरकार के अध्यादेश को चुनौती दी है. कल ही राज्यपाल के आदेश से ये लागू किया गया है, जिसमें ट्रस्ट बनाने का भी फैसला हुआ है. इस अध्यादेश को ही सेवायतों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. यूपी सरकार काशी विश्वनाथ की तरह ही इस अध्यादेश के ज़रिए बांके बिहारी कॉरिडोर बनाना चाहती है. सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को इस मामले पर बहस हुई.
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वकील ने शीर्ष अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन और प्रस्तावित गलियारे के काम की देखरेख के लिए एक ट्रस्ट बनाया है. उन्होंने कहा कि अधिनियम के तहत पूरी धनराशि ट्रस्ट के पास होगी, न कि सरकार के पास.

शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार के वकील को निर्देश दिया कि वह ट्रस्ट के संबंध में पारित अध्यादेश की एक प्रति याचिकाकर्ता को दें और संबंधित प्रधान सचिव को 29 जुलाई तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया.
राज्य सरकार द्वारा मंदिर के विकास के लिए रिकॉर्ड पर रखी गई प्रस्तावित योजना के तहत न्यायालय ने कहा कि मंदिर के आसपास पांच एकड़ भूमि अधिग्रहित की जानी थी और उस पर पार्किंग स्थल, भक्तों के लिए आवास, शौचालय, सुरक्षा जांच चौकियां और अन्य सुविधाएं बनाकर उसका विकास किया जाना था.

गोस्वामी ने 19 मई को एक याचिका दायर करके कहा कि प्रस्तावित पुनर्विकास परियोजना का क्रियान्वयन व्यावहारिक रूप से अव्यावहारिक है. याचिका में दावा किया गया है कि 'इस तरह के पुनर्विकास से मंदिर और उसके आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र के आवश्यक धार्मिक और सांस्कृतिक चरित्र के बदलने का जोखिम है, जिसका गहरा ऐतिहासिक और भक्ति महत्व है.'
न्यायालय ने अपने 15 मई के फैसले के जरिये उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दायर जनहित याचिका पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आठ नवंबर, 2023 के उस आदेश को संशोधित किया था, जिसने राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना को स्वीकार कर लिया था, लेकिन उसे मंदिर के धन का उपयोग करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था.
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