इंटरनेट ऑफ थिंग्स Internet of Things (IOT) का क्या है, इसका मतलब क्या है अकसर तकनीक में रुचि रखने वाले लोग इस बारे में बात करते हैं. यह शब्द बहुत पुराना नहीं है, लेकिन अभी आम जीवन में नहीं आया है. आने वाले कुछ सालों में लोग इसके बारे में जानेंगे ही नहीं बल्कि प्रयोग कर रहे होंगे. कहीं यह पहले आ जाएगा, कहीं आने में कुछ और साल लग जाएंगे. लेकिन, यह तय है कि सभी लोग इससे परिचित होंगे. युग तकनीक का है और तकनीक के आधार पर जीवन को आसान बनाने की सतत प्रक्रिया जारी है. इस प्रक्रिया के तहत इस तकनीक का नाम आया जिसे हम इंटरनेट ऑफ थिंग्स Internet of Things (IOT) कह रहे हैं.
आज हम कंप्यूटर जानते हैं और इंटरनेट का प्रयोग कर रहे हैं. भारत के गांव-गांव में मोबाइल के जरिए लोग इसका प्रयोग कर रहे हैं और भविष्य में IOT भी इसी तरह गांव-गांव तक पांव पसार लेगा. यह भविष्य है.
इंटरनेट ऑफ थिंग्स का सबसे पहले प्रयोग केविन एशटन ने किया था. 1999 में ब्रिटिश प्रौद्योगिकी अग्रणी केविन एश्टन, एमआईटीऑफ़साइट लिंक पर ऑटो-आईडी प्रयोगशाला के सह-संस्थापक, ने एक प्रणाली का वर्णन करने के लिए "द इंटरनेट ऑफ थिंग्सऑफसाइट लिंक" शब्द का आविष्कार किया, जहां इंटरनेट सर्वव्यापी सेंसर के माध्यम से भौतिक दुनिया से जुड़ा हुआ है, जिसमें आरएफआईडी (रेडियो-फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन ऑफसाइट लिंक) भी शामिल है. आसान शब्दों में कहें तो घर के तमाम समाम गैजेट इंटरनेट के माध्यम से एक दूसरे से जुड़े होंगे. एआई AI (Artificial Intelligence) के जरिए ये सब भी काम कर रहे होंगे. और इस तरह से सब जरूरत के हिसाब से तारतम्य में काम करेंगे और यहां तक संभव है कि आपकी गैरमौजूदगी में एआई के जरिए निर्णय भी लेने में स्वतंत्र होंगे या फिर आप दूर से आदेशों के जरिए पूरे गैजेट नियंत्रित कर रहे होंगे.
इसका एक दूरगामी परिणाम यह भी संभव है कि तकनीक के सुदृढ़ होने के स्थिति में यह भी संभव है वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में भी काफी बदलाव आएं और कुछ को दिक्कत हो और कुछ लोगों के लिए यह वरदान साबित हो.
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