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MRP का खेल खत्म! अब नहीं चलेगा महंगे टैग का जाल, सरकार ला रही है नया फॉर्मूला, सस्ता होगा सामान?

MRP Rules Change: कुछ कंपनियों ने चिंता जताई है कि अगर कीमतों को लागत से जोड़ दिया गया तो कुछ प्रोडक्ट बाजार से हट सकते हैं. लेकिन सरकार का कहना है कि उसका इरादा कीमतें कंट्रोल करना नहीं बल्कि पारदर्शिता लाना है.

MRP का खेल खत्म! अब नहीं चलेगा महंगे टैग का जाल, सरकार ला रही है नया फॉर्मूला, सस्ता होगा सामान?
New MRP Formula: सरकार का मानना है कि खासकर रोजमर्रा की चीजों और जरूरी सामानों के लिए MRP तय करने को लेकर कोई स्पष्ट गाइडलाइन होनी चाहिए, जिससे ग्राहकों के साथ धोखा न हो.
नई दिल्ली:

क्या आपने कभी किसी सामान पर 5000 रुपये का MRP देखा है, लेकिन वह आपको 50% छूट यानी डिस्काउंट में 2500 रुपये में मिल जाता है? इसके बाद आप सोच में पड़ जाते हैं कि जब 2500 में भी उस प्रोडक्ट को बेच रही कंपनी को मुनाफा हो रहा है तो इसके ऊपर प्राइस टैग 5000 का क्यों लिखा गया था? यह सवाल अक्सर हमारे मन में आ ही जाता है कि क्या इस महंगे प्राइस टैग पर डिस्कॉउंट ऑफर्स कस्टमर को लुभाने भर के लिए दिया जाता है?  

Livemint की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अब सरकार MRP यानी अधिकतम खुदरा मूल्य (Maximum Retail Price) से जुड़े नुयमों में बदलाव की बड़ी प्लानिंग कर रही है. 

बदलेगा MRP तय करने का तरीका

उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय चाहता है कि कंपनियां सिर्फ एक मनमाना दाम ना छापें, बल्कि MRP को प्रोडक्ट की असल लागत और उस पर तय मुनाफे से जोड़ें. मतलब, अगर कोई चीज 100 रुपये में बन रही है तो उस पर कितने का मुनाफा जोड़ा गया और क्यों, इसका एक आधार हो.

16 मई को उपभोक्ता मामलों की सचिव निधि खरे की अगुवाई में मंत्रालय ने उद्योग संगठनों, उपभोक्ता समूहों और टैक्स अधिकारियों के साथ एक बड़ी बैठक की. बैठक में MRP की मौजूदा सिस्टम पर सवाल उठाए गए, खासकर तब जब प्रोडक्ट एक जगह कम और दूसरी जगह ज्यादा दाम पर बिकता है, यानी डिफरेंशियल प्राइसिंग का मामला हो.

अभी दुकानदार प्रोडक्ट पर छपे अधिकतम मूल्य तक की कोई भी कीमत वसूल सकते हैं और कंपनियों को यह नहीं बताना होता कि उन्होंने वो कीमत कैसे तय की. यही वजह है कि कई बार आपको किसी खास प्रोडक्ट पर मिलने वाला 50% डिस्काउंट जैसे ऑफर भी सिर्फ मार्केटिंग स्ट्रैटजी बनकर रह जाते हैं.

फिलहाल कीमत तय करने का फॉर्मूला नहीं

2009 का लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट पैकेजिंग, वजन और माप को रेगुलेट करता है लेकिन यह ये नहीं बताता कि कीमत कैसे तय की जाए. ऐसे में सरकार अब सोच रही है कि खासकर रोजमर्रा की चीजों और जरूरी सामानों के लिए कोई स्पष्ट गाइडलाइन होनी चाहिए, जिससे ग्राहकों के साथ धोखा न हो.

उपभोक्ताओं को राहत की उम्मीद

जहां उपभोक्ता संगठन इस बदलाव को समर्थन दे रहे हैं, वहीं कुछ कंपनियों ने चिंता जताई है कि अगर कीमतों को लागत से जोड़ दिया गया तो कुछ प्रोडक्ट बाजार से हट सकते हैं. लेकिन सरकार का कहना है कि उसका इरादा कीमतें कंट्रोल करना नहीं बल्कि पारदर्शिता लाना है.

GST के साथ तालमेल जरूरी

इस बदलाव को लागू करने के लिए वित्त मंत्रालय के साथ तालमेल भी जरूरी होगा, क्योंकि GST मौजूदा समय में ट्रांजैक्शन वैल्यू पर लगता है, ना कि MRP पर. पहले के मुकाबले अब कंपनियों को ज्यादा आजादी मिल गई है, जिससे वे MRP मनमर्जी से तय कर रही हैं.

कंपनियों की मुनाफाखोरी पर लगाम की तैयारी

उपभोक्ता अधिकार संगठन 'कंज्यूमर वॉयस' का कहना है कि GST लागू होने से पहले MRP पर ही टैक्स लगता था, जिससे कंपनियां दाम बढ़ाने में सतर्क रहती थीं. लेकिन अब छूट और ऑफर्स के नाम पर कई बार ग्राहकों को भ्रमित किया जाता है. ऐसे में अगर सरकार MRP को लागत और सीमित मुनाफे से जोड़ती है, तो आम आदमी को असली फायदा मिल सकता है.

हालांकि ये योजना अभी शुरुआती चरण में है और अगली बैठक की तारीख तय नहीं हुई है. लेकिन अगर ये बदलाव लागू हुआ, तो भारत की रिटेल प्राइस सिस्टम में एक बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा.

अब छूट की आड़ में नहीं चलेगा महंगे टैग का खेल!

सरकार का फोकस इस बार कीमतों को कंट्रोल करने पर नहीं, बल्कि उन्हें वाजिब और पारदर्शी बनाने पर है. अगर कंपनियों को MRP तय करने से पहले लागत और मुनाफे का बैलेंस रखना पड़े, तो ग्राहक को असली छूट और सही कीमत का भरोसा मिल सकेगा. आने वाले समय में आपका बिल कैसा दिखेगा, ये इसी बदलाव पर निर्भर करेगा.

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