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This Article is From Apr 29, 2016

फ़र्राटा क्वीन दूती से 200 मीटर में ओलिंपिक में क्वालिफ़ाई करने की उम्मीद

फ़र्राटा क्वीन दूती से 200 मीटर में ओलिंपिक में क्वालिफ़ाई करने की उम्मीद
दूती चंद (फाइल फोटो)
दिल्ली में चल रही फ़ेडरेशन कप एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 100 मीटर की फ़र्राटा दौड़ में ओडिशा की दूतीचंद ने ओडिशा की ही रचिता मिस्त्री का 16 साल पुराना नेशनल रिकॉर्ड (11.38 सेकेंड, त्रिवेंद्रम में 2000 में) तोड़कर सबको हैरान कर दिया। हालांकि वह ओलिंपिक्स के लिए क्वालिफ़ाई करने से चूक गईं। फिर भी अभी उनके पास 200 मीटर में यह उपलब्धि हासिल करने का मौका है। दूती का रिकॉर्ड (11.33 सेकेंड) इसलिए भी बेहद ख़ास है क्योंकि उन्हें बीते वक्त में मुश्किलों के जिस दौर से गुजरना पड़ा उसके बाद ट्रैक पर वापसी कर पाना ही बड़ी बात मानी जा रही थी। इसी प्रतियोगिता में हिस्सा ले रही एक और एथलीट, पिंकी प्रामाणिक को खुद को महिला साबित करने के लिए मुश्किलों के पहाड़ से टकराना पड़ा।

100 मीटर की फ़र्राटा दौड़ में भारतीय खेलों के इतिहास में सबसे तेज़ भागने वाली ओडिशा की दूतीचंद ट्रैक की क्वीन बन गई हैं, लेकिन उन्हें अफ़सोस है कि 1 सेकेंड के सौवें हिस्से से वो (क्वालिफ़ाइंग 11.32 सेकेंड) इस प्रतियोगिता में ओलिंपिक्स के लिए क्वालिफ़ाई करने से चूक गईं।

अभी है चांस
दुती चंद कहती हैं, "मैं ओलिंपिक में यहां क्वालिफ़ाई करने से चूक गई, लेकिन मैरे पास अभी और भी मौक़ा है। मैं 200 मीटर में भी क्वालिफ़ाई करने की उम्मीद रखती हूं।"  CAS यानी कोर्ट ऑफ आरबिट्रेशन ऑफ़ स्पोर्ट्स से जेंडर टेस्ट में जीतकर लौटने के लिए 20 साल की दूती को ज़मीन आसमान एक करना पड़ा, लेकिन उनका ये सफ़र बेइंतहा मुश्किल साबित हुआ।

इसी प्रतियोगिता में पश्चिम बंगाल की पिंकी प्रामाणिक (12.33 सेकेंड) सातवें नंबर पर रहीं। ट्रैक पर अपने स्पाइक को चूमतीं पिंकी प्रामाणिक के लिए ये सफ़र और भी कांटों भरा रहा है। दोहा एशियाई खेलों की स्वर्ण पदक विजेता पिंकी 8 साल बाद ट्रैक पर लौटीं हैं। पिंकी प्रमाणिक पर उनकी साथी ने रेप का आरोप लगाया और फिर उन्हें खुद के लड़की होने का सबूत पेश करना पड़ा।

ट्रैक पर लौटने की खुशी
इस दौरान ये दोनों एथलीट ग़लत वजहों से सुर्ख़ियों में छाई रहीं और निजी ज़िन्दगी में हर लम्हा अपमान झेलती रहीं। पिंकी प्रामाणिक कहती हैं कि 8 साल बाद ट्रैक पर लौटने की खुशी तो है लेकिन वो कहती हैं, "पहले दौड़ती थी तो पहले, दूसरे या तीसरे नंबर पर ज़रूर रहती थी। इस बार पहले तीन में नहीं आने का दुख भी है।"

दूतीचंद के कोच एन रमेश कहते हैं कि दोनों ही एथलीटों के लिए ये बड़ी कामयाबी है। वह कहते हैं कि जख़्म ज़रूर भर गये हैं लेकिन इनके मन में बीती घटनाओं के निशान अब भी कायम हैं।

इन रोल मॉडल एथलीटों ने ट्रैक पर वापसी के लिए जद्दोजहद कर साबित कर दिया है कि इनसे एथलेटिक्स ट्रैक और भी बड़ी उम्मीदें की जा सकती हैं।

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