प्रोडुनोवा पर परफॉर्म कर दीपा ने रियो ओलिंपिक में हर किसी का दिल जीत लिया (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
रियो ओलिंपिक में मामूली अंतर से पदक से चूकने के बावजूद इतिहास रचने वाली दीपा कर्मकार ने भारत में गुमनाम से इस खेल को कुछ यादगार पल दिए जबकि बाकी पूरे साल उल्लेख करने लायक किसी का प्रदर्शन नहीं रहा. त्रिपुरा के छोटे से गांव की 23 बरस की दीपा क्रिकेट के दीवाने देश की नूरे-नजर बन गई जब वह रियो ओलिंपिक में चौथे स्थान पर रही. पदक नहीं जीत पाने के बावजूद उसने करोड़ों देशवासियों का दिल जीता और प्रोडुनोवा जैसे खतरनाक इवेंट को अंजाम दिया जिसका जोखिम रूस और अमेरिका के जिम्नास्ट भी नहीं उठाते.
आशीष कुमार ने अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में कई पदक जीतने के बावजूद वह लोकप्रियता हासिल नहीं की होगी जो दीपा को रियो में चौथे स्थान पर रहकर मिली. पदकों और रिकॉर्ड से ही प्रदर्शन का आकलन करने वाले भारतीयों ने दीपा की नाकामी पर दुख नहीं मनाया बल्कि ऐसे खेल में चौथे स्थान पर रहने का जश्न मनाया जिसमें भारतीयों का फाइनल में प्रवेश भी सपने सरीखा माना जाता रहा है. ओलिंपिक फाइनल में पहुंचने वाली वह पहली भारतीय जिम्नास्ट बनी. भारत के लिए ओलिंपिक की व्यक्तिगत स्पर्धा का स्वर्ण जीतने वाले एकमात्र खिलाड़ी अभिनव बिंद्रा ने भी उसे हीरो करार दिया.
रियो के बाद दीपा पर सम्मान की झड़ी लग गई जिसमें राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार शामिल है. दीपा से पहले आशीष ने राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में पदक जीता था. अब 2020 के टोक्यो ओलिंपिक में दीपा पर देशवासियों की उम्मीदों का भार होगा. दीपा के कोच बिश्वेश्वर नंदी ने कहा,‘दीपा ने अकेले भारतीय जिम्नास्टिक को विश्व मानचित्र पर ला दिया. कुछ लोगों को पता भी नहीं था कि त्रिपुरा कहां है लेकिन उसने प्रदेश और देश का नाम रोशन किया.’
उन्होंने कहा कि दीपा को अभी लंबा सफर तय करना है और अगला लक्ष्य अक्टूबर 2017 में होने वाली वर्ल्ड चैम्पियनशिप है. वह टोक्यो में भी पदक की उम्मीद होगी हालांकि वोल्ट काफी जोखिमभरा है और चोट कभी भी लग सकती है. हम अपनी ओर से सर्वश्रेष्ठ तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने कहा,‘रियो में उसने दिन में दो बार चार चार घंटे अभ्यास किया. अब वह ढाई-ढाई घंटे अभ्यास कर रही हैं. उसके प्रयासों में कोई कमी नहीं है.’
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
आशीष कुमार ने अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में कई पदक जीतने के बावजूद वह लोकप्रियता हासिल नहीं की होगी जो दीपा को रियो में चौथे स्थान पर रहकर मिली. पदकों और रिकॉर्ड से ही प्रदर्शन का आकलन करने वाले भारतीयों ने दीपा की नाकामी पर दुख नहीं मनाया बल्कि ऐसे खेल में चौथे स्थान पर रहने का जश्न मनाया जिसमें भारतीयों का फाइनल में प्रवेश भी सपने सरीखा माना जाता रहा है. ओलिंपिक फाइनल में पहुंचने वाली वह पहली भारतीय जिम्नास्ट बनी. भारत के लिए ओलिंपिक की व्यक्तिगत स्पर्धा का स्वर्ण जीतने वाले एकमात्र खिलाड़ी अभिनव बिंद्रा ने भी उसे हीरो करार दिया.
रियो के बाद दीपा पर सम्मान की झड़ी लग गई जिसमें राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार शामिल है. दीपा से पहले आशीष ने राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में पदक जीता था. अब 2020 के टोक्यो ओलिंपिक में दीपा पर देशवासियों की उम्मीदों का भार होगा. दीपा के कोच बिश्वेश्वर नंदी ने कहा,‘दीपा ने अकेले भारतीय जिम्नास्टिक को विश्व मानचित्र पर ला दिया. कुछ लोगों को पता भी नहीं था कि त्रिपुरा कहां है लेकिन उसने प्रदेश और देश का नाम रोशन किया.’
उन्होंने कहा कि दीपा को अभी लंबा सफर तय करना है और अगला लक्ष्य अक्टूबर 2017 में होने वाली वर्ल्ड चैम्पियनशिप है. वह टोक्यो में भी पदक की उम्मीद होगी हालांकि वोल्ट काफी जोखिमभरा है और चोट कभी भी लग सकती है. हम अपनी ओर से सर्वश्रेष्ठ तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने कहा,‘रियो में उसने दिन में दो बार चार चार घंटे अभ्यास किया. अब वह ढाई-ढाई घंटे अभ्यास कर रही हैं. उसके प्रयासों में कोई कमी नहीं है.’
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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