
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने अमिताभ बच्चन के लिए लिखा है कि - उनका दिमाग खाली है. फेसबुक पर लिखी इस पोस्ट पर काटजू ने बच्चन के लिए लिखा कि 'अमिताभ बच्चन एक ऐसे शख्स हैं जिनका दिमाग खाली है और क्योंकि ज्यादातर मीडिया वाले उनकी तारीफ करते हैं, मैं समझता हूं उन सभी के दिमाग भी खाली ही हैं.'
उनके इस पोस्ट पर काफी प्रतिक्रियाएं मिलने के बाद काटजू ने अगले पोस्ट में साफ किया कि उन्होंने बच्चन के लिए ऐसा क्यों लिखा था. काटजू लिखते हैं 'जब मैंने लिखा कि अमिताभ बच्चन के दिमाग में कुछ नहीं है, तो कई लोगों ने मुझसे कहा कि मैं अपनी बात ज़रा विस्तार में लिखूं. कार्ल मार्क्स ने कहा था कि धर्म, जनता के लिए एक अफीम है जिसे अक्सर राजा अपने जन समुदाय को शांत रखने के लिए ड्रग की तरह इस्तेमाल करता है, ताकि लोग विरोध न करें.
लेकिन भारतीय जनता को शांत रखने के लिए सिर्फ एक ड्रग काफी नहीं है, उन्हें कई तरह के नशे की जरूरत होती है. धर्म उन्हीं में से एक नशा है. दूसरे तरह के नशे जैसे फिल्में, मीडिया, क्रिकेट, ज्योतिष, बाबा, वगैरह वगैरह. जनता को शांत करने के लिए इन सभी नशों को उसी तरह मिलाकर हमारे शासक परोसते हैं जैसे किसी बीमारी को दूर करने के लिए अलग अलग दवाइयों को मिलाकर दिया जाता है.
ऐसा ही एक तगड़ा नशा फिल्मों का भी है. रोमन शासक कहते थे 'अगर आप जनता को रोटी नहीं दे सकते तो उन्हें सर्कस दीजिए.' तो हमारी ज्यादातर फिल्में किसी सर्कस से कम नहीं हैं जो हमारे शासक लोगों को इसलिए परोसते हैं क्योंकि वह उन्हें रोटी तो दे नहीं सकते (जैसे रोज़गार, स्वास्थ्य सेवाएं, अच्छा खाना, अच्छी पढ़ाई, वगैरह)
अमिताभ बच्चन की फिल्में, देव आनंद, शम्मी कपूर, राजेश खन्ना की फिल्मों की तरह ही एक नशा है, ये लोगों को एक काल्पनिक दुनिया में ले जाते हैं और इसलिए जनता को शांत रखने के लिए ये सभी हमारे शासकों के लिए बहुत काम के लोग हैं.
एक अच्छे अभिनेता होने के अलावा अमिताभ बच्चन में और क्या है? क्या देश की बड़ी बड़ी समस्याओं को सुलझाने के लिए उनके पास कोई वैज्ञानिक सुझाव है? नहीं है. समय-समय पर वह मीडिया चैनलों पर संदेश देते दिख जाते हैं और वक्त-वक्त पर उन्हें भला काम करते हुए देखा जा सकता है, लेकिन फिर जब ये सब करने के लिए आपको अच्छी खासी रकम मिले तो यह कौन नहीं करना चाहेगा?'
हर बार की तरह काटजू की यह पोस्ट भी बहस का मुद्दा बन गई. उनके इस पोस्ट पर कई लोगों ने बच्चन की प्रशंसा करते हुए लिखा कि अमिताभ बच्चन अपने क्षेत्र में बेहतरीन काम करते आए हैं और उन्हें उसी से आंका जाना चाहिए. वही दूसरे खेमे ने काटजू का समर्थन करते हुए लिखा कि बच्चन जैसे 'महान' अभिनेता को किसी राजनेता के राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए खुद को आगे नहीं करना चाहिए. इन सबके बीच काटजू का बच्चन से 'वैज्ञानिक सुझाव' की अपेक्षा करना कई लोगों को हज़म नहीं हो पाया.
उनके इस पोस्ट पर काफी प्रतिक्रियाएं मिलने के बाद काटजू ने अगले पोस्ट में साफ किया कि उन्होंने बच्चन के लिए ऐसा क्यों लिखा था. काटजू लिखते हैं 'जब मैंने लिखा कि अमिताभ बच्चन के दिमाग में कुछ नहीं है, तो कई लोगों ने मुझसे कहा कि मैं अपनी बात ज़रा विस्तार में लिखूं. कार्ल मार्क्स ने कहा था कि धर्म, जनता के लिए एक अफीम है जिसे अक्सर राजा अपने जन समुदाय को शांत रखने के लिए ड्रग की तरह इस्तेमाल करता है, ताकि लोग विरोध न करें.
लेकिन भारतीय जनता को शांत रखने के लिए सिर्फ एक ड्रग काफी नहीं है, उन्हें कई तरह के नशे की जरूरत होती है. धर्म उन्हीं में से एक नशा है. दूसरे तरह के नशे जैसे फिल्में, मीडिया, क्रिकेट, ज्योतिष, बाबा, वगैरह वगैरह. जनता को शांत करने के लिए इन सभी नशों को उसी तरह मिलाकर हमारे शासक परोसते हैं जैसे किसी बीमारी को दूर करने के लिए अलग अलग दवाइयों को मिलाकर दिया जाता है.
ऐसा ही एक तगड़ा नशा फिल्मों का भी है. रोमन शासक कहते थे 'अगर आप जनता को रोटी नहीं दे सकते तो उन्हें सर्कस दीजिए.' तो हमारी ज्यादातर फिल्में किसी सर्कस से कम नहीं हैं जो हमारे शासक लोगों को इसलिए परोसते हैं क्योंकि वह उन्हें रोटी तो दे नहीं सकते (जैसे रोज़गार, स्वास्थ्य सेवाएं, अच्छा खाना, अच्छी पढ़ाई, वगैरह)
अमिताभ बच्चन की फिल्में, देव आनंद, शम्मी कपूर, राजेश खन्ना की फिल्मों की तरह ही एक नशा है, ये लोगों को एक काल्पनिक दुनिया में ले जाते हैं और इसलिए जनता को शांत रखने के लिए ये सभी हमारे शासकों के लिए बहुत काम के लोग हैं.
एक अच्छे अभिनेता होने के अलावा अमिताभ बच्चन में और क्या है? क्या देश की बड़ी बड़ी समस्याओं को सुलझाने के लिए उनके पास कोई वैज्ञानिक सुझाव है? नहीं है. समय-समय पर वह मीडिया चैनलों पर संदेश देते दिख जाते हैं और वक्त-वक्त पर उन्हें भला काम करते हुए देखा जा सकता है, लेकिन फिर जब ये सब करने के लिए आपको अच्छी खासी रकम मिले तो यह कौन नहीं करना चाहेगा?'
हर बार की तरह काटजू की यह पोस्ट भी बहस का मुद्दा बन गई. उनके इस पोस्ट पर कई लोगों ने बच्चन की प्रशंसा करते हुए लिखा कि अमिताभ बच्चन अपने क्षेत्र में बेहतरीन काम करते आए हैं और उन्हें उसी से आंका जाना चाहिए. वही दूसरे खेमे ने काटजू का समर्थन करते हुए लिखा कि बच्चन जैसे 'महान' अभिनेता को किसी राजनेता के राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए खुद को आगे नहीं करना चाहिए. इन सबके बीच काटजू का बच्चन से 'वैज्ञानिक सुझाव' की अपेक्षा करना कई लोगों को हज़म नहीं हो पाया.
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