
राजस्थान में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति एक गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है. नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट (2016-22) ने राज्य की हेल्थकेयर इंन्फ्रास्ट्रक्चर और प्रबंधन में कई महत्वपूर्ण कमियों को उजागर किया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि मेडिकल सेवाओं में हर लेवल पर राज्य स्टाफ की भारी कमी से जूझ रहा है.
रिपोर्ट के मुताबिक, पहले डॉक्टरों की कमी की बात करें तो राजस्थान में 35.5% तक डॉक्टर्स की कमी है. वहीं, नर्स की 18.5% और पैरामेडिकल स्टाफ में 55.8% कमी है. प्राथिमक स्वास्थ्य सेवा में और भी ज्यादा स्थिति खराब है. यहां प्राइमरी हेल्थ सेंटर में पैरामेडिक्स स्टाफ 63% की कमी से जूझ रहा है.
रेतीले इलाकों में स्थिति और भी भयानक है. वहां नर्सिंग स्टाफ की भारी कमी है. जून 2022 के आंकड़ों के मुताबिक, बाड़मेर में 32.32%, जोधपुर में 33.97% और बीकानेर में 29.57% नर्सिंग स्टाफ की कमी है. इसके अलावा क्लिनिकल स्टाफ जैसे लैब टेक्निशियन, फॉर्मासिस्ट में 48% की कमी है.
सरकारी चिकित्सा संस्थानों में बुनियादी सेवाओं का अभाव
सरकारी चिकित्सा संस्थानों में आवश्यक सेवाओं और सहायक सुविधाओं की कमी के कारण मरीजों को इमरजेंसी और जरूरी देखभाल प्राप्त करने में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. या तो इसमें देरी होती है या आम आदमी को सेवाओं से महरूम रहना पड़ता है.
फिलहाल, जनरल सर्जरी, बाल रोग, हड्डी रोग (Orthopedics), ट्रॉमा, आपातकालीन सेवाएं (Emergency), आईसीयू और इलाज प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली सहायक सेवाओं जैसे रेडियोलॉजी (Radiology), पैथोलॉजी (Pathology) , आहार सेवाएँ (Dietary Services), एम्बुलेंस (Ambulances), शवगृह (Mortuaries) की कमी है. इससे आम आदमी तक सही समय पर सेवाएं नहीं पहुंच पाती हैं. जनवरी 2024 के डेटा के मुताबिक, स्पेशलिस्ट-डॉक्टर्स के 18,026 स्वीकृत पदों में से सिर्फ 14,033 ही भरे जा सके हैं.
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