राजस्थान के चूरू में एक शिक्षक ने 70 हज़ार पौधे लगाकर हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है. चूरू जिले के रहने वाले निहाल सिंह लाम्बा वृक्ष मित्र के नाम से भी जाने जाते हैं. स्वतंत्रता सेनानी के बेटे लाम्बा ने अपने पिता से प्रेरित होकर राजस्थान जैसे मरुस्थल वाले इलाके में पौधे लगाने का काम शुरू किया था, जो आज भी जारी है.
राजस्थान जैसे रेगिस्तानी इलाके में जहां पानी की गंभीर समस्या है उस क्षेत्र में पौधारोपण करना और इन पेड़ों को पूरी तरह से विकसित कर वृक्ष में बदल देना एक बहुत बड़ी चुनौती है, लेकिन 57 साल के निहाल सिंह लाम्बा की पोस्टिंग जहां भी होती है वह वहीं पौधे लगाना शुरू कर देते हैं. निहाल सिंह लांबा की पोस्टिंग पिछले 2 सालों से जिलाशिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) चूरू में है, यहां पर भी लाम्बा 200 प्रकार की विभिन्न किस्मों के 5 हजार से ज्यादा पौधे लगा चुके हैं.
स्वतंत्रता सेनानी रहे पिता से मिली पर्यावरण बचाने की प्रेरणा
पर्यावरण प्रेमी निहाल सिंह लाम्बा अपने दिवंगत पिता स्वतंत्रता सेनानी नारायण सिंह लाम्बा की पेड़-पौधों के प्रति रुचि देखकर इतने प्रभावित हुए कि युवावस्था में आते-आते निहाल सिंह लांबा पर भी पेड़ लगाने का जुनून सवार हो गया. उनकी पेड़-पौधे लगाने की रुचि ऐसी है कि ना वह दिन देखते हैं ना रात. अब तक निहाल सिंह लांबा ने 70 हजार से ज्यादा पेड़-पौधे लगाए हैं. निहाल सिंह लाम्बा बताते हैं कि “पिता को पेड़ लगाने का जुनून था और वही जुनून हम पर सवार हो गया, मैं अब तक 70 हजार पेड़ लगा चुका हूं. स्कूलों में, सार्वजनिक स्थानों पर, श्मशान भूमि में, जहां भी जगह मिलती है मैं वहां पर पेड़ लगाने की कोशिश करता हूं. 2026 में मैं राजकीय सेवा से सेवानिवृत्त हो जाऊंगा उसके बाद पूरा जीवन मेरा पर्यावरण को ही समर्पित रहेगा.”
2 सालों में जिलाशिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) में लगाए कई पौधे
शिक्षक निहाल सिंह लाम्बा हर जगह पर्यावरण बचाने का संदेश देते हैं. पिछले 2 सालों से लाम्बा की पोस्टिंग जिलाशिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान डाइट चूरू में है. यहां आने के बाद लाम्बा ने यहां की कायापलट कर दी. यहां पहले बंजर ज़मीन हुआ करती थी लेकिन लाम्बा ने यहां पौधे लगाकर इस जगह को हरा-भरा ब ना दिया है. करीब 200 प्रकार के 5000 से ज्यादा पेड़-पौधे लाम्बा यहां लगा चुके हैं. इसके साथ ही यहां पर आने वाले छात्र-छात्राओं को भी लाम्बा पर्यावरण बचाने की सीख देते हुए दिखाई देते हैं.
जिलाशिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) के प्रधानाचार्य गोविंद राठौड़ ने बताया कि पर्यावरण शिक्षा से जुड़ा हुआ बिंदु है, शिक्षा पर्यावरण के माध्यम से चलती है. पर्यावरण यदि हरा-भरा होगा तो निश्चित रूप से ऑक्सीजन बढ़ेगी और आम जनता के लिए फायदेमंद रहेगी. हमने भी डाइट को हरा-भरा बनाने का बीड़ा उठाया था. इसके लिए निहाल लांबा वृक्ष मित्र के रूप में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं तो मैंने उनकी सेवाएं ली उनके द्वारा अब चूरू डाइट को भी हरा-भरा किया जा रहा है.
वहीं, डाइट में पढ़ने वाली छात्रा उर्मिला ने बताया कि जब पहले हम यहां आए थे तब इतनी हरियाली नहीं थी लेकिन धीरे-धीरे यहां का नक्शा ही बदल गया और अब यहां पर चारों और हरियाली ही हरियाली है. यहां पर तरह-तरह के औषधीय पौधे हैं इन सभी पेड़ों को वृक्ष मित्र के नाम से निहाल सिंह लाम्बा अपने बच्चों की तरह पालते हैं.
लांबा की जहां भी हुई पोस्टिंग वहां की बदल दी तस्वीर
57 बसंत देख चुके निहाल सिंह लाम्बा की जहां भी पोस्टिंग होती है, लाम्बा वहीं पर पौधे लगाना शुरू कर देते हैं और वहां की कायापलट कर देते हैं. अब तक लांबा चूरू के तारानगर तहसील के गांव करणपुर, भालेरी, सोमासी, सरदारशहर तहसील के गांव साड़ासर, गिड़गिचिया, चूरू के गाजसर, झारिया, पार्क बालिका, बागला राजकीय विद्यालय, कस्तूरबा गांधी सहित विभिन्न गांव के राजकीय विद्यालयों में अपनी सेवाएं देकर वहां की तस्वीर बदल चुके हैं. इसके अलावा लाम्बा ने डिओ ऑफिस, जेडीए ऑफिस सहित श्मशान भूमि और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर भी पौधे लगाए हैं.
शिक्षाविद विजय पोटलिया ने बताया कि पौधारोपण एक इवेंट नहीं है, यह एक पूरा प्रोसेस है जिसमें पौधा लगाने से लेकर उसके बड़े हो जाने तक उसकी देखभाल करनी होती है. राजस्थान के रेगिस्तान वाले इलाके में पौधारोपण करना या इसके विषय में कल्पना करना भी एक बहुत बड़ी चुनौती है. ऐसे में निहाल सिंह लांबा द्वारा किया जा रहा पर्यावरण बचाने का प्रयास सराहनीय है. पेड़ों में हमें फिर से जीवंत करने की शक्ति है. एक पेड़ के नीचे हरी घास पर समय बिताना तनाव को काफी कम कर सकता है. पेड़ों की शाखाओं पर बैठे पक्षियों की आवाज़, तेज़ हवाओं से पत्तियों का हिलना और पेड़ों पर पत्तियों और फूलों की गंध, इन सबसे मन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और तनाव को कम करने में मदद मिलती है. शोधकर्ताओं का यह भी दावा है कि पेड़ को गले लगाने से भी तनाव को कम करने में मदद मिल सकती है.
इंसान हो या पशु-पक्षी आक्सीजन की जरूरत सब को है. बिना आक्सीजन के व्यक्ति एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकता है, इसलिए आक्सीजन बनाने के लिए पौधों का होना अत्यंत आवश्यक है. इसकी महत्ता को हर किसी को समझना होगा. जब तक हर व्यक्ति के अंदर पेड़-पौधों का आदर नहीं होगा तब तक पर्यावरण प्रदूषित होता रहेगा और इंसान के लिए खतरे की घंटी तेज होती जाएगी. ऐसे में निहाल सिंह लाम्बा जैसे लोगों द्वारा किया जा रहा यह प्रयास सराहनीय है.
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