![BMC चुनाव : धर्म नहीं, भाषा और क्षेत्र के आधार पर बंट गए मुंबई के वोटर BMC चुनाव : धर्म नहीं, भाषा और क्षेत्र के आधार पर बंट गए मुंबई के वोटर](https://i.ndtvimg.com/i/2017-02/bmc-polls_650x400_51487648890.jpg?downsize=773:435)
मुंबई में बीएमसी चुनाव के नतीजे भाषा और क्षेत्र आधारित ध्रुवीकरण के संकेत दे रहे हैं.
मुंबई:
चुनावों में मतों का ध्रुवीकरण विचारधारा या धर्म केंद्रित ही नहीं होता यह भाषाई आधार पर भी हो सकता है. बृहन्मुंबई महानगरपालिका चुनाव के परिणाम यही संकेत दे रहे हैं. ध्रुवीकरण को आम तौर पर दक्षिणपंथी धर्म आधारित राजनीति से जोड़ा जाता है. बीएमसी चुनाव में भगवा दल शिवसेना और भाजपा आमने-सामने थे. इसके नतीजों से पता चलता है कि दोनों दलों के मतदाताओं के बीच भाषा के आधार पर ध्रुवीकरण हुआ है. इस चुनाव में 227 सीटों में से शिवसेना ने 84 और भाजपा ने 82 जीती हैं.
मतदान के पैटर्न को देखने पर लगता है कि निकाय चुनाव अलग-अलग लड़ने वाले दोनों सहयोगी दलों ने क्षेत्रीय या भाषाई आधार पर मतदाताओं को बांट दिया. भाजपा के मीडिया प्रकोष्ठ के सह संयोजक सौमेन मुखर्जी के मुताबिक मतदान के पैटर्न से पता चलता है कि मराठी भाषी लोगों में ज्यादातर निम्न-मध्यम वर्ग और कामकाजी वर्ग ने शिवसेना को वोट दिया जबकि उच्च-मध्यम वर्ग, गुजराती भाषी और उत्तर भारतीय लोगों की बड़ी आबादी वाले क्षेत्रों में भाजपा को ज्यादा वोट मिले.
संकेत मिले कि पुराने मुंबई शहर में शिवसेना को अच्छा समर्थन मिला है. बीजेपी को उपनगरीय इलाकों, खासकर पश्चिमी उपनगरीय इलाकों में ज्यादा फायदा हुआ. मुखर्जी ने कहा कि‘‘ध्रुवीकरण ने भाषाई आधार की जगह ले ली. गैर मराठी भाषी मतदाताओं ने अधिकतर भाजपा के लिए मतदान किया. दूसरी तरफ पुराने शहर के इलाकों में शिवसेना के पक्ष में वोट डाले गए क्योंकि पिछले कई सालों में वहां पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अपना मजबूत नेटवर्क तैयार किया है.
राज्य चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार बांद्रा से दहिसर के बीच पश्चिमी उपनगरीय इलाकों की 114 सीटों में से भाजपा को 51 जबकि शिवसेना को 38 सीटें मिलीं. इन इलाकों में उत्तर भारतीयों एवं गुजराती भाषी लोगों की बड़ी आबादी है.
इस पैटर्न में बांद्रा पूर्व अपवाद रही जहां शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे रहते हैं. भाजपा को यहां एक भी सीट नहीं मिली जबकि शिवसेना ने पांच और एआईएमआईएम ने बची हुई एक सीट जीती.
इन परिणामों से मतों के ध्रुवीकरण में क्षेत्रीयता और भाषा के प्रभावी होने का आभाष होता है. इससे यह स्पष्ट हो रहा है कि जब समान विचारधारा के राजनीतिक दलों के बीच चुनावी भिड़ंत होगी तो इस तरह के कारक अपना असर दिखाएंगे.
(इनपुट एजेंसी से)
मतदान के पैटर्न को देखने पर लगता है कि निकाय चुनाव अलग-अलग लड़ने वाले दोनों सहयोगी दलों ने क्षेत्रीय या भाषाई आधार पर मतदाताओं को बांट दिया. भाजपा के मीडिया प्रकोष्ठ के सह संयोजक सौमेन मुखर्जी के मुताबिक मतदान के पैटर्न से पता चलता है कि मराठी भाषी लोगों में ज्यादातर निम्न-मध्यम वर्ग और कामकाजी वर्ग ने शिवसेना को वोट दिया जबकि उच्च-मध्यम वर्ग, गुजराती भाषी और उत्तर भारतीय लोगों की बड़ी आबादी वाले क्षेत्रों में भाजपा को ज्यादा वोट मिले.
संकेत मिले कि पुराने मुंबई शहर में शिवसेना को अच्छा समर्थन मिला है. बीजेपी को उपनगरीय इलाकों, खासकर पश्चिमी उपनगरीय इलाकों में ज्यादा फायदा हुआ. मुखर्जी ने कहा कि‘‘ध्रुवीकरण ने भाषाई आधार की जगह ले ली. गैर मराठी भाषी मतदाताओं ने अधिकतर भाजपा के लिए मतदान किया. दूसरी तरफ पुराने शहर के इलाकों में शिवसेना के पक्ष में वोट डाले गए क्योंकि पिछले कई सालों में वहां पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अपना मजबूत नेटवर्क तैयार किया है.
राज्य चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार बांद्रा से दहिसर के बीच पश्चिमी उपनगरीय इलाकों की 114 सीटों में से भाजपा को 51 जबकि शिवसेना को 38 सीटें मिलीं. इन इलाकों में उत्तर भारतीयों एवं गुजराती भाषी लोगों की बड़ी आबादी है.
इस पैटर्न में बांद्रा पूर्व अपवाद रही जहां शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे रहते हैं. भाजपा को यहां एक भी सीट नहीं मिली जबकि शिवसेना ने पांच और एआईएमआईएम ने बची हुई एक सीट जीती.
इन परिणामों से मतों के ध्रुवीकरण में क्षेत्रीयता और भाषा के प्रभावी होने का आभाष होता है. इससे यह स्पष्ट हो रहा है कि जब समान विचारधारा के राजनीतिक दलों के बीच चुनावी भिड़ंत होगी तो इस तरह के कारक अपना असर दिखाएंगे.
(इनपुट एजेंसी से)
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