अजय राय: विरोधियों के सामने गढ़ तोड़ने की चुनौती

अजय राय: विरोधियों के सामने गढ़ तोड़ने की चुनौती

नई दिल्‍ली:

उत्तर प्रदेश में वाराणसी संसदीय सीट की पिंडरा विधानसभा सीट से वर्तमान विधायक अजय राय भी पूर्वाचल के बाहुबलियों में ही शुमार किए जाते हैं. जिले की यह एकलौती विधानसभा है, जिसका इतिहास काफी रोचक रहा है. कभी कोलअसला के नाम से बहुचर्चित यह सीट कम्युनिस्टों का गढ़ हुआ करती थी, लेकिन सीपीआई नेता उदल के इस किले में अजय राय ने ऐसी सेंध लगाई कि पिछले 20 वर्षो से उन्हें हराने में यहां कोई कामयाब नहीं हो पाया.

दरअसल, वर्ष 2012 में हुए नए परिसीमन में कोलअसला का नाम बदलकर पिंडरा रख दिया गया. यह सीट भी वाराणसी संसदीय सीट के अंतर्गत ही आती है. कुर्मी बहुल इस इलाके में वर्ष 1957 में हुए चुनाव में सीपीआई नेता उदल ने पहली बार इस सीट से चुनाव लड़ा था. तब उदल ने कांग्रेस के नेता लाल बहादुर सिंह को नजदीकी मुकाबले में हराया था. उस चुनाव में उदल को 22089 मत मिले थे, जबकि कांग्रेसी उम्मीदवार को 19823 वोट मिले थे.

उदल का सियासी सफर एक बार जब 1957 में शुरू हुआ तो वह फिर लगातार 1967 तक चला. उन्होंने लगातार तीन चुनावों में विजय हासिल की. इसके बाद 1967 में हुए चुनाव में उदल को कांग्रेस के अमरनाथ दूबे ने लगभग दो हजार मतों से परास्त कर दिया. ऐसा लगा कि उदल का गढ़ टूट गया. इसके बाद 1974 में हुए चुनाव में उदल ने एक बार फिर वापसी की और भारतीय क्रांति दल के वीरेंद्र प्रताप सिंह को दोगुने से ज्यादा मतों से पराजित किया. इस चुनाव में उदल को जहां 36823 मत मिले, वहीं वीरेंद्र को महज 17986 मतों से संतोष करना पड़ा.

इसके बाद उदल 1980 तक लगातार जीतते रहे. इसके बाद 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में उदल को एक बार फिर कांग्रेस के रमाकांत पटेल ने धूल चटा दी. लेकिन अगले ही चुनाव में उदल ने फिर रमाकांत से अपना बदला ले लिया और 1990 में हुए चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार को हराकर वापसी की. उदल ने इसके बाद फिर लगातार तीन विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की. वर्ष 1993 में उन्होंने बसपा के उम्मीदवार गुलाब सिंह को हराकर जीत हासिल की थी. इसके बाद से ही उदल का गढ़ टूट गया. वर्ष 1996 के विधानसभा चुनाव में अजय राय ने भाजपा के उम्मीदवार के रूप में उदल को नजदीकी मुकाबले में हरा दिया.

वर्ष 1996 के बाद से ही अजय राय ने इस विधानसभा सीट को एक सुरक्षित किले के रूप में तब्दील कर लिया. इसके बाद वर्ष 2002, 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में वह भाजपा के उम्मीदवार के तौर पर जीते. इसके बाद 2009 में इस सीट पर हुए उपचुनाव में वह निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीते. पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने बसपा के उम्मीदवार जय प्रकाश को हरा दिया. पिछले चुनाव में अजय राय को 52863 मत मिले थे, जबकि जयप्रकाश को लगभग 43 हजार वोट मिले.
पिंडरा विधानसभा इलाके के 40 वर्षीय किशोरी लाल पटेल ने आईएएनएस से कहा, "यह सीट उदल के नाम से ही जानी जाती थी, लेकिन अजय राय ने पिछले पांच चुनावों में इस सीट से जीत हासिल की है. राय ने यहां के हर वर्ग के लिए काम किया है. समाज का हर वर्ग उन्हें पसंद करता है."

इस बार के चुनाव को लेकर हालांकि उन्होंने कहा कि मतदाताओं में इस बार पिछली बार की अपेक्षा खामोशी दिखाई दे रही है. वजह यह है कि कोई अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं है. वर्तमान विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस गठबंधन के तौर पर एक बार फिर अजय राय अपनी उम्मीदवारी पेश कर रहे हैं. राय ने आईएएनएस से कहा, "बाहुबली की छवि तो मीडिया की देन है. मैं बाहुबली नहीं हूं. लेकिन हां, गरीबों, शोषितों और वंचितों की आवाज उठाने को यदि लोग दूसरी नजर से देखते हैं तो हमें उसकी परवाह नहीं है." उन्होंने कहा, "अखिलेश का काम वाकई में बोलता है. राहुल-अखिलेश की जोड़ी ही नरेंद्र मोदी के घमंड को चूर करेगी."

इधर, विरोधी भी अजय राय के तरीके पर सवाल उठाते हैं. पिंडरा विधानसभा सीट से बसपा के उम्मीदवार बाबूलाल पटेल कहते हैं, "अजय राय यहां से पिछले पांच चुनावों से जीतते आ रहे हैं, लेकिन यहां विकास आज भी नहीं पहुंचा है. कई गावों में आज भी विकास का आभाव साफ तौर पर दिखाई देता है." भाजपा ने इस बार पिंडरा से अवधेश सिंह को टिकट दिया है. इलाके के लोग बताते हैं कि यदि अवधेश सिंह ने अजय राय के वोटबैंक में सेंध लगाई, तो इसका फायदा बसपा के उम्मीदवार को मिल सकता है. हालांकि अवधेश सिंह पहले भी अजय राय के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं. जिला निर्वाचन कार्यालय के मुताबिक, क्षेत्र में साढ़े तीन लाख से ज्यादा मतदाता हैं, जो 8 मार्च को अंतिम चरण में अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे.

न्‍यूज एजेंसी आईएएनएस से इनुपट
 


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