धावक मोहम्मद फराह ने आगे खुद के बारे में कहा, उनके माता-पिता कभी यूके नहीं गए थे. जब फराह चार साल के थे तब उनके पिता सोमालिया में नागरिक विद्रोह में मारे गए थे और उनकी मां और दो भाई सोमालिलैंड के अलग राज्य में रहते थे. जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त नहीं है. उन्होंने इस बारे में बात की और कहा कि, सच तो यह है कि मैं वह नहीं हूं जो आप सोचते हैं कि मैं हूं, ज्यादातर लोग मुझे मो. फराह के नाम से जानते हैं, लेकिन यह मेरा नाम नहीं है या यह मेरी वास्तविकता नहीं है.
मो फराह ने खुद के ब्रिटेन आने को लेकर कहा कि, अपने साथ ब्रिटेन लाने वाली महिला ने उसे बताया कि उसे रिश्तेदारों के साथ रहने के लिए ले जाया जा रहा है और उसका नाम मोहम्मद बताया. क्योंकि उसके पास नकली यात्रा दस्तावेज थे जिसमें नाम के आगे उसकी तस्वीर दिखाई दे रही थी.
उन्होंने बीबीसी डॉक्यूमेंट्री में कहा, 'सालों तक मैं इन सभी बातों को इसे रोक रहा था, लेकिन आप इसे इतने लंबे समय तक नहीं रोक सकते हैं, अक्सर मैं बस खुद को बाथरूम में बंद कर रोता था. इससे दूर होने के लिए मैं केवल एक ही काम कर सकता था, वह था बाहर निकलना और दौड़ना था.'
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अपनी बात को आगे रखते हुए उन्होंने कहा कि, मुझे मेरी मां से अलग कर दिया था. मुझे अपनी मां से अलग करके दूसरे बच्चे की देखभाल के लिए रखा गया. मैं इन सभी बातों को इतने लंबे समय से रख रहा था, यह मुश्किल हो गया था क्योंकि आप इसका सामना नहीं करना चाहते हैं और अक्सर मेरे बच्चे सवाल पूछते हैं 'पापा, यह कैसे हुआ?' और आपके पास हमेशा हर चीज का जवाब होता है, लेकिन आप इसका जवाब नहीं देते'
ओलंपिक में गोल्डन मेडल जीतने वाले धावक ने कहा कि, मेरी कहानी का सामने आया बहुत जरूरी थी क्योंकि मुझे खुद को सामान्य करना था. बता दें कि फराह ने अपने करियर में सबसे पहले लंदन ओलंपिक में हिस्सा लिया था और वहां 2 गोल्ड मेडल जीतने में सफल रहे थे.
एथलेटिक्स ने बदली जिन्दगी
डॉक्यूमेंट्री में फराह ने कहा कि, इस डरावने बचपन की यादों से निकलने में एशलेटिक्स ने खूब मदद की. फराह के फिजिकल एजुकेशन टीचर एलन वॉटकिंसन उन्हें ट्रैक तक ले गए और उनकी प्रतिभा को पहचान दिलाई. फराह के बारे में वॉटकिंसन कहते हैं कि उसे एक ही भाषा समझ आती थी और वो थी ट्रैक की भाषा.
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