कानपुर:
उत्तर प्रदेश के कानपुर में बरबस ही आंखों को नम करने और दिल को पिघला देने वाली तस्वीरें सामने आई हैं, जिनमें सुनील कुमार अपने 12-वर्षीय बेटे अंश को कंधे पर लादे बाल स्वास्थ्य केंद्र की ओर भागे जा रहे हैं, क्योंकि सरकारी अस्पताल से उन्हें वापस भेज दिया गया.
सुनील कुमार का आरोप है कि अंश की मौत शुक्रवार को उसके कंधे पर ही हुई, जब वह एक से दूसरे अस्पताल के चक्कर काट रहे थे.
सुनील कुमार बताते हैं, "वह छठी कक्षा में पढ़ता था, और बहुत होशियार था... मैं सिर्फ नौ मिनट में उसे लेकर स्थानीय अस्पताल पहुंच गया था, जहां से मुझे सरकारी अस्पताल में जाने के लिए कहा गया..." दरअसल रविवार रात से ही अंश को बहुत तेज़ बुखार था.
सुनील कुमार को आरोप है कि सरकार द्वारा संचालित शहर के सबसे बड़े हैलेट अस्पताल में उनसे अंश को बाल स्वास्थ्य केंद्र में ले जाने के लिए कहा गया. आरोप है कि उन्हें स्ट्रेचर देने के लिए भी मना कर दिया गया था, सो, वह पैदल ही अंश को कंधे पर लादे बाल स्वास्थ्य केंद्र की ओर ले गए, जहां उन्हें बताया गया कि बच्चे की मौत हो चुकी है, और अगर कुछ मिनट पहले भी ले आया गया होता, तो उसे बचाया जा सकता था.
इसके बाद सुनील कुमार अपने बेटे के शव को घर ले गए.
हैलेट अस्पताल का दावा है कि बच्चे की मौत उससे पहले हो चुकी थी, जब उसके पिता उसे लेकर उनके पास पहुंचे थे. अस्पताल के मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ आरसी गुप्ता ने कहा, "हमने उसे दाखिल किया था... हमने पाया, दिल की धड़कन नदारद थी... नब्ज़ नदारद थी... आंखों की पुतलियां फिरी हुई थीं, और फैल चुकी थीं... हमें उसकी हालत देखकर ही पता चल रहा था कि उसकी मौत हमारे पास लाए जाने से दो-तीन घंटे पहले ही हो चुकी थी..."
इस घटना से देश में स्वास्थ्य सेवाओं की खराब हालत की पोल एक बार फिर खुली है. अभी हाल ही में ओडिशा में भी एक व्यक्ति को अपनी पत्नी के शव को कंधे पर उठाए कई किलोमीटर पैदल चलने के लिए मजबूर होना पड़ा था, क्योंकि उसे शववाहन की सुविधा प्रदान नहीं की गई थी.
सुनील कुमार का आरोप है कि अंश की मौत शुक्रवार को उसके कंधे पर ही हुई, जब वह एक से दूसरे अस्पताल के चक्कर काट रहे थे.
सुनील कुमार बताते हैं, "वह छठी कक्षा में पढ़ता था, और बहुत होशियार था... मैं सिर्फ नौ मिनट में उसे लेकर स्थानीय अस्पताल पहुंच गया था, जहां से मुझे सरकारी अस्पताल में जाने के लिए कहा गया..." दरअसल रविवार रात से ही अंश को बहुत तेज़ बुखार था.
सुनील कुमार को आरोप है कि सरकार द्वारा संचालित शहर के सबसे बड़े हैलेट अस्पताल में उनसे अंश को बाल स्वास्थ्य केंद्र में ले जाने के लिए कहा गया. आरोप है कि उन्हें स्ट्रेचर देने के लिए भी मना कर दिया गया था, सो, वह पैदल ही अंश को कंधे पर लादे बाल स्वास्थ्य केंद्र की ओर ले गए, जहां उन्हें बताया गया कि बच्चे की मौत हो चुकी है, और अगर कुछ मिनट पहले भी ले आया गया होता, तो उसे बचाया जा सकता था.
इसके बाद सुनील कुमार अपने बेटे के शव को घर ले गए.
हैलेट अस्पताल का दावा है कि बच्चे की मौत उससे पहले हो चुकी थी, जब उसके पिता उसे लेकर उनके पास पहुंचे थे. अस्पताल के मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ आरसी गुप्ता ने कहा, "हमने उसे दाखिल किया था... हमने पाया, दिल की धड़कन नदारद थी... नब्ज़ नदारद थी... आंखों की पुतलियां फिरी हुई थीं, और फैल चुकी थीं... हमें उसकी हालत देखकर ही पता चल रहा था कि उसकी मौत हमारे पास लाए जाने से दो-तीन घंटे पहले ही हो चुकी थी..."
इस घटना से देश में स्वास्थ्य सेवाओं की खराब हालत की पोल एक बार फिर खुली है. अभी हाल ही में ओडिशा में भी एक व्यक्ति को अपनी पत्नी के शव को कंधे पर उठाए कई किलोमीटर पैदल चलने के लिए मजबूर होना पड़ा था, क्योंकि उसे शववाहन की सुविधा प्रदान नहीं की गई थी.
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