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This Article is From Apr 09, 2018

अरुणाचल प्रदेश : इस साल 3 बार चीनी सेना ने की घुसपैठ, 2012 तक पूरे होने वाले काम अब तक क्यों नहीं हुए?

चीन के मुकाबले भारतीय सेना का बुनियादी ढांचा थोड़ा कमजोर है लेकिन भारत 1962 के मुकाबले काफी आगे जा चुका है.

अरुणाचल प्रदेश : इस साल 3 बार चीनी सेना ने की घुसपैठ, 2012 तक पूरे होने वाले काम अब तक क्यों नहीं हुए?
अरुणाचल प्रदेश से सटी भारत-चीन सीमा पर तैनात भारतीय सैनिकों के जज्बे में कोई कमी नहीं है
नई दिल्ली: इंडो-तिब्बन बॉर्डर पुलिस यानी आईटीबीपी की रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने अरुणाचल प्रदेश के उत्तरी पैंगोंग झील के पास गाड़ियों के जरिये 28 फ़रवरी, 7 मार्च और 12 मार्च 2018 को घुसपैठ की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पैंगोंग झील के पास 3 जगहों पर चीनी सेना ने घुसपैठ की जिसमें वे लगभग 6 किलोमीटर तक अंदर घुस आए थे. आईटीबीपी जवानों के विरोध के बाद चीनी सैनिक वापस लौट गए. डोकलाम के बाद अब चीनी सेना अरुणाचल प्रदेश से सटी सीमा पर तनाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. उसने भारतीय सैनिकों के गश्त पर भी आपत्ति जताई है.  रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि चीन के मुकाबले भारतीय सेना का बुनियादी ढांचा थोड़ा कमजोर है लेकिन भारत 1962 के मुकाबले काफी आगे जा चुका है. वहीं सरहद की रखवाली करने में जवानों के जोश और जज्बे में कोई कमी नहीं है. 

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चीन ने बना रखी है पक्की सड़क और हेलीपैड
अरुणाचल प्रदेश के किबितू इलाके से सटी सीमा चीन का टाटू कैंप और न्यू टाटू कैंप है. यहां पर चीनी सेना ने कंक्रीट की मजबूत की बिल्डिंग, फायरिंग रेंज और हेलीपैड साफ नजर आते हैं. यहां तक चीन ने पक्की सड़क भी बनाई हुई है. इधर भारत के अंदर चीन की तुलना में बुनियादी ढांचा अभी इतना मज़बूत नहीं हुआ है. ना तो सड़क पक्की है और ना ही पुख्ता संचार तंत्र. इसके बावजूद यहां तैनात भारतीय जवानों के जोश और उत्साह में कोई कमी नहीं है. सहरद पर तैनात जवान पुष्प सिंह ने कहा, 'हम हर वक्त तैयार रहते हैं जवाब देने के लिए हमारे हौसले काफी बुलंद हैं.' वहीं सूबेदार नेत्र सिंह ने बताया कि जो टास्क दिया जाता है उसे पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. कठिन पहाड़ी इलाके, घने जंगलों और मौसम की मार के बीच वो हर लिहाज़ से मुस्तैद हैं. हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि यहां मौसम हमेशा खराब हो जाता है जिससे खाना गीला हो जाता है. 

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ये तो काफी पहले पूरा हो जाना चाहिए था
आपको बता दें कि चीन से लगी सीमा पर भारतीय जवानों की पेट्रोलिंग जारी है. हालांकि सूत्रों के मुताबिक पिछले ही महीने चीन ने यहां रणनीतिक लिहाज़ से संवेदनशील असाफ़िला इलाके में भारतीय पेट्रोलिंग पर सवाल उठाए हैं. चीन ने अपने इलाके में अतिक्रमण का आरोप लगाया जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया. उलटे भारत का आरोप है कि चीन इस इलाके में कई बार सीमा का अतिक्रमण कर चुका है. चीन की हरक़तों को देखते हुए ही भारत ने सरहदी इलाकों में बुनियादी ढांचा पक्का करने में तेज़ी लाई है. क़रीब साढ़े तीन हज़ार करोड़ रुपए की लागत से चीन से लगी सीमाओं पर सड़क निर्माण का काम तेज़ी से चल रहा है. ऐसे 73 प्रोजेक्ट्स में से 18 पूरे हो चुके हैं. बाकी प्रोजेक्ट 2020 तक पूरे किए जाने का लक्ष्य है.

वीडियो : जब चीनी सेना को भारतीय सैनिकों को खदेड़ा

सरकारी मशीनरी की ढिलाई बड़ा रोड़ा
इसमें कोई दो राय नहीं कि पहले की तुलना में चीन से लगी सरहद पर हमारा बुनियादी ढांचा मज़बूत हुआ है. लेकिन अब भी चीन की तैयारियों के मुक़ाबले हम काफ़ी पीछे हैं. भौगोलिक कठिनाइयां इसका एक कारण हैं लेकिन सरकारी मशीनरी की ढिलाई भी कम बड़ी वजह नही है. यहां सड़क निर्माण के जो प्रोजेक्ट 2012 तक पूरे होने थे, उम्मीद है 2020 तक पूरे हो ही जाएंगे. लेकिन सवाल यही है  कि देश की सुरक्षा से जुड़े कामों में इतनी देरी क्यों?
 

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