बंबई उच्च न्यायालय का फाइल फोटो...
मुंबई:
शिंगणापुर में शनि चबूतरे पर चढ़ने के लिए संघर्ष कर रही महिलाओं को आज अदालत का भी साथ मिल गया। एक अर्जी की सुनवाई पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने दो दिन के अंदर राज्य सरकार से लिखित जवाब मांगा है और पूछा है कि शनि मन्दिर के चबूतरे पर अगर पुरुष जा सकते हैं तो महिलाएं क्यों नहीं?
सामाजिक कार्यकर्ता विद्या बाल के मुताबिक राज्य हिन्दू धार्मिक स्थलों में प्रवेश के अधिकार का कानून 1956 से अस्तित्व में है। इसके बाद भी श्री श्री रविशंकर, शंकराचार्य और मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस चर्चा के नाम पर वक्त जाया कर रहे हैं। इसलिए मजबूर होकर उन्हें अदालत से गुहार लगानी पड़ी।
शिंगणापुर में शनि मंदिर चबूतरे पर महिलाओं के जाने पर पाबंदी है। पिछले साल नवंबर में एक महिला ने चबूतरे पर चढ़कर सालों से चली आ रही उस परंपरा को तोड़ने का साहस दिखाया। उसके बाद रणरागिनी ब्रिगेड की महिलाओं ने भी मंदिर में प्रवेश करने की नाकाम कोशिश की थी।
अब अदालत के इस सवाल पर एनसीपी की विद्या चव्हाण ने ख़ुशी जाहिर करते हुए कहा है कि इससे महिलाओं को बल मिला है। जबकि शिवसेना की नीलम गोर्हे का कहना है महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने की जिम्मेदारी सरकार की है और उसे अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।
शनि शिंगणापुर के बाद राज्य के दूसरे मंदिरों और दरगाह में भी इस तरह के भेदभाव के खिलाफ आवाज उठनी शुरू हो गई है। अब सब की निगाहें राज्य सरकार के जवाब पर लगी है।
सामाजिक कार्यकर्ता विद्या बाल के मुताबिक राज्य हिन्दू धार्मिक स्थलों में प्रवेश के अधिकार का कानून 1956 से अस्तित्व में है। इसके बाद भी श्री श्री रविशंकर, शंकराचार्य और मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस चर्चा के नाम पर वक्त जाया कर रहे हैं। इसलिए मजबूर होकर उन्हें अदालत से गुहार लगानी पड़ी।
शिंगणापुर में शनि मंदिर चबूतरे पर महिलाओं के जाने पर पाबंदी है। पिछले साल नवंबर में एक महिला ने चबूतरे पर चढ़कर सालों से चली आ रही उस परंपरा को तोड़ने का साहस दिखाया। उसके बाद रणरागिनी ब्रिगेड की महिलाओं ने भी मंदिर में प्रवेश करने की नाकाम कोशिश की थी।
अब अदालत के इस सवाल पर एनसीपी की विद्या चव्हाण ने ख़ुशी जाहिर करते हुए कहा है कि इससे महिलाओं को बल मिला है। जबकि शिवसेना की नीलम गोर्हे का कहना है महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने की जिम्मेदारी सरकार की है और उसे अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।
शनि शिंगणापुर के बाद राज्य के दूसरे मंदिरों और दरगाह में भी इस तरह के भेदभाव के खिलाफ आवाज उठनी शुरू हो गई है। अब सब की निगाहें राज्य सरकार के जवाब पर लगी है।
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