सरदार सरोवर बांध के डूब प्रभावित तीन दिनों से मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में नर्मदा भवन के सामने डटे हैं, दो रातें सड़क पर खुले आसमान के नीचे गुजार चुके हैं हालांकि अबतक सरकार ने इनकी मांगों पर कोई खास तवज्जो नहीं दी है, ना ही कोई बड़ा मंत्री-अधिकारी आंदोलनकारियों से बात करने सामने आया है. नर्मदा भवन के सामने आंदोलनकारी रात-दिन अपने हक़ को लेने की बात करते हुए गीत गा रहे हैं. डेढ़ हजार से ज्यादा प्रदर्शनकारी भोपाल में जुटे हैं, नर्मदा इनके घर-खेत खलिहान में है. ये सड़क पर सर्द रात में इस आस में सो रहे हैं कि कोई इनकी बात सुनेगा. कोई बता रहा है कि कैसे उनके मकान पानी में डूब गये तो वो बेघर हो गये, मवेशियों की मौत हो गई आजीविका छिन गई तो कोई बता रहा है घर नहीं है, खाने की व्यवस्था नहीं है जाएं तो जाएं कहां.
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शनिवार को इन आंदोलनकारी सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर के नेतृत्व में यादगारे-ए-शाहजहांनी पार्क से नर्मदा भवन के लिये कूच कर गये, नारे लगाए, पुलिस से थोड़ी झूमा-झटकी भी हुई, फिर भी डटे हुए हैं. मेधा पाटकर ने कहा, ''भांवरिया, पिपलोद में खेत तक पहुंचना संभव नहीं है, एमपीईबी के टेंडर अभी खुले हैं, एक फसल की आधी बर्बादी हो गई अगर ट्रांसफर्मर नहीं मिला तो दूसरी फसल भी चौपट हो जाएगी. कितना लड़ें हम लोग एक-एक भ्रष्टाचारी के सामने... जो झा आयोग ने कहा था कि पूरा सिस्टम ही भ्रष्ट है... आज भी एक-एक लोग अंदर बैठे हुए हैं. 115 लोगों की सूची में 60 लाख की पात्रता झूठे लोगों को देने का नाम आते हैं, हमें चाहिये संपूर्ण पुनर्वास.''
सरदार सरोवर में जलस्तर 138.68 मीटर तक भरा तो 30000 से अधिक परिवार, खेत-खलिहान, दुकान, मकान सब डूब गये क्योंकि उन्होंने उचित पुनर्वास नहीं मिला, घर के लिये ज़मीन और कुछ अनुदान मिला लेकिन आजीविका नहीं. पुनर्वास स्थलों में भ्रष्टाचार के कई मामले आए. चिखल्दा, कड़मा, खापरखेड़ा, गेहलगांव, कोठड़ा जैसे गांवों की हत्या हो गई.
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वैसे डूब प्रभावितों को लेकर सरकार कितनी गंभीर है ये नर्मदा घाटी से जुड़े मंत्री सुरेंद्र सिंह हनी बघेल को देखकर समझा जा सकता है जो विस्थापितों को छोड़ भागवत कथावाचक उत्तम स्वामी के चरणों में बैठे हैं.
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