मध्यप्रदेश के दमोह से 93 साल की महिला ने 40 साल बाद अपने घर विदर्भ का सफर तय किया. मुस्लिम बहुल गांव कोटा तला के लिये पंचू बाई इस दौरान मौसी बन गई. लॉकडाउन में गूगल ने उन्हें ढूंढ निकाला, परिजन आए वापस ले गये. अपनी मौसी के लिये पूरा गांव फूट फूट कर रोया. पंचू बाई 40 साल पहले अपने परिवार से बिछड़ कर दमोह के कोटा तला पहुंच गई थी. उस दौरान मधुमक्खियों के हमले से परेशान भटक रही पंचू बाई को नूर खान अपने गांव ले आए थे.
3 मई की दोपहर लॉकडाउन में अपनी मौसी के पास बैठे इसरार ने फिर पूछा वो कहां की हैं तो पंचू ने फिर कुछ कहा- खंजामा नगर, पथरोट. इसरार ने गूगल पर नाम डाला तो खंजामा नगर तो नहीं मिला पथरोट दिख गया. गूगल पर ही पथरोट गांव के किसी शख्स का नंबर मिला, व्हाट्सऐप से तस्वीरें भेजी गईं. डेढ़ घंटे में 40 साल से बिछड़ा परिवार मिल गया. गांव के कई बच्चों ने आंखें खोला तो पंचू बाई को ही देखा, अब जब उनका पोता नागपुर से लेने आया तो सारी आंखें नम थीं.
इसरार के पिता नूर की 2007 में मौत हो गई लेकिन पंचू बाई की सेवा पूरा परिवार करता रहा. वो कहते हैं दुख है, सारे गांव वाले मना कर रहे हैं लेकिन अब उनके परिवार को पता लग गया है तो वो भी चाहते हैं कि दादी की सेवा कर लें अच्छा है वो परिवार से मिल लें.
नागपुर से दमोह आए पंचू बाई के पोते पृथ्वी कुमार शिंगले गांव वालों का प्यार देखकर हैरान थे. उन्होंने कहा कोटातालाब के गांववालों का शुक्रिया कहना चाहूंगा, 40 साल तक हमारी दादी की सेवा की है मुझे दुख तो हो रहा है कि दादी को यहां से लेकर जा रहा हूं, लेकिन खुशी है कि इन्होंने देखभाल की अब ये मौका मुझे मिलेगा.
गांव में किसी ने अपनी मौसी को नई साड़ी में तैयार किया, किसी ने गले लगाया. कोई हाथ चूम रहा था. किसी ने माला पहनाई तो किसी ने दुआ ली. मौसी कुछ कह रही थीं, सबकी आंखें नम थीं.
(( दमोह से आज़म खान के इनपुट के साथ ))
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं