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जबलपुर हाई कोर्ट का आदेश- मध्यप्रदेश में वाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य, सख्ती से किया जाए पालन

MP High Court : याचिका को संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने कहा कि अब नियमों को सख़्ती से लागू किया जाए और संबंधित निकाय इस पर ध्यान दें ताकि वाटर हार्वेस्टिंग के नियम और कानून सिर्फ कागजी ना रह जाए, इसे मध्य प्रदेश में तत्काल प्रभाव से कठोरता से लागू किया जाना चाहिए.

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जबलपुर हाई कोर्ट का आदेश- मध्यप्रदेश में वाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य, सख्ती से किया जाए पालन

High Court Jabalpur Order : जबलपुर के वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य संघी द्वारा लगातार नीचे जा ग्राउंड वाटर लेवल (Ground Water Level) पर चिंता जताते हुए जनहित याचिका (Public interest litigation) दायर की गई थी. इस में याचिका में इस बात उल्लेख किया गया है कि संविधान की धारा-21 के तहत लोगों को राइट-टू-लाइफ (Right to Life) का अधिकार मिला है. याचिका के द्वारा कोर्ट के सामने यह रखा गया कि मानव सहित सभी जीव-जन्तु के लिए जल अत्यंत जरूरी है, इसके बिना जीवन संभव नहीं है. लेकिन भूमि का जल स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है. कोर्ट में बताया गया कि प्रदेश में भूमि का जल स्तर कुछ इलाकों में 500 मीटर नीचे तक पहुंच गया है. इतना ही नहीं प्रदेश के कई जिलों में लोगों को पानी के लिए कई किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. 

याचिकाकर्ता ने क्या कुछ कहा?

आदित्य संघी ने कोर्ट को बताया कि भूमि विकास नियम के तहत रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम (Rain Water Harvesting System) लगाने पर ही नगर निगम द्वारा मकान का नक्शा स्वीकृत किये जाने का प्रविधान है. लेकिन नियम का पालन नहीं किये जाने के कारण जबलपुर सहित मध्य प्रदेश के कई शहरों में बारिश के दौरान अरबों लीटर पानी बेकार सड़कों या नालों में बह जाता है. 

आदित्य संघी ने कोर्ट का ध्यान इस पर दिलाया कि वाटर हार्वेस्टिंग के नियम तो सरकार ने बनाए हैं, लेकिन यह सिर्फ नक्शा पास करने तक ही लागू होते हैं. जबकि वास्तविक रूप में जब मकान बनता है, तब वाटर हार्वेस्टिंग को प्रणाली को नहीं बनाया जाता.

याचिका पर कोर्ट ने क्या कहा?

इस याचिका को संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने कहा कि अब नियमों को सख़्ती से लागू किया जाए और संबंधित निकाय इस पर ध्यान दें ताकि वाटर हार्वेस्टिंग के नियम और कानून सिर्फ कागजी ना रह जाए, इसे मध्य प्रदेश में तत्काल प्रभाव से कठोरता से लागू किया जाना चाहिए.

कोर्ट के आदेश के बाद नगर निगम ने क्या कहा?

इस आदेश को लेकर जबलपुर नगर पालिका निगम (Jabalpur Municipal Corporation) के अधीक्षण यंत्री अजय शर्मा ने एनडीटीवी को बताया कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के निर्देशों का सख्ती से पालन किया जाएगा और  निरीक्षण की कार्रवाई को व्यापक बनाया जाएगा.

अजय शर्मा ने बताया कि अभी नक्शा पास करने के पूर्व न्यूनतम ₹3000 से लेकर निर्माणाधीन  प्लॉट की साइज के अनुसार वाटर हार्वेस्टिंग फीस जमा कराई जाती है, जो मकान बन जाने के बाद नगर निगम अधिकारियों के द्वारा निरीक्षण कर लेने पर वापस की जाती है. लेकिन देखने में आया है कि 40% लोग ही अपनी जमा राशि वापस लेने आते हैं, अभी भी 60% लोग वाटर हार्वेस्टिंग के लिए जमा कराई राशि वापस लेने नहीं आते. अब हम उन पर भी नजर रखेंगे जो राशि वापस लेने नहीं आये.


अधीक्षण यंत्री शर्मा ने बताया कि ऐसा नहीं है कि सभी 60% लोग नियमों का उल्लंघन करते हैं. जबलपुर में कुछ इलाके जैसे शक्ति नगर, रामपुर, नयागांव आदि में जमीन की नीचे चट्टानों और ग्रेनाइट होने से और कुछ इलाकों में वाटर लेवल अत्यधिक होने से वाटर हार्वेस्टिंग के लिए बनाए गए सिस्टम से पानी जमीन के अंदर नहीं जाता. वह बाहर ही रह जाता है, इसलिए भी कुछ लोग जो इन इलाकों में मकान बनाते हैं, वह जमा राशि वापस लेने नहीं आते. माननीय हाई कोर्ट ने जो निर्देश जारी किए हैं उनको सख़्ती से पालन करने के लिए नगर निगम जबलपुर वचनबद्ध है.

इस जनहित याचिका में केन्द्र व राज्य सरकार सहित जबलपुर और भोपाल नगर निगम को अनावेदक बनाया गया था. इस मामले में सरकार व जबलपुर और भोपाल नगर निगम की ओर से जवाब पेश किया गया है.

नगर निगम ने क्या जवाब दिया?

जवाब में बताया गया कि 1058 सरकारी भवन तथा आवास में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाये जा चुके हैं. इसके अलावा 140 वर्ग मीटर भवन के नक्शा स्वीकृति के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना अनिर्वाय है. भवन को क्षेत्रफल के आधार पर चार श्रेणियों में रखा गया है. एरिया के आधार पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम अनिर्वाय रूप से लगाने सुरक्षा राशि जमा कराई जाती है. वहीं सरकार की ओर से पेश जवाब को रिकॉर्ड में लेने के बाद इस मामले को लेकर 2019 से दायर जनहित याचिका का अब निराकरण कर दिया गया.

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