कांग्रेस विधायक नर्मदा प्रसाद प्रजापति मंगलवार को मध्यप्रदेश की 15वीं विधानसभा के अध्यक्ष चुने गए. विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए अपनी पार्टी के उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव पेश न करने को लेकर मुख्य विपक्षी दल बीजेपी ने संदन से वॉकआउट कर दिया. बीजेपी के सारे विधायक पैदल मार्च करते हुए राजभवन गए, इस मांग के साथ कि अध्यक्ष का निर्वाचन दुबारा हो. पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया.
मध्यप्रदेश की 15वीं विधानसभा का अध्यक्ष चुनने मंगलवार को संसदीय कार्य मंत्री डॉ गोविन्द सिंह ने कांग्रेस विधायक नर्मदा प्रसाद प्रजापति को अध्यक्ष बनाने के लिए प्रस्ताव पेश किया. इसके बाद चार और विधायकों ने इसका समर्थन किया.
इसके बाद बीजेपी ने पार्टी विधायक कुंवर विजय शाह का नाम अध्यक्ष पद के लिए पेश करने की अनुमति मांगी, लेकिन प्रोटेम स्पीकर ने साफ कह दिया कि पहले प्रस्ताव का निराकरण होने के बाद इजाजत मिलेगी. बस सदन में हंगामा शुरू हो गया. बीजेपी के सदस्यों ने इसे लोकतंत्र की हत्या बताया. सदन की कार्यवाही दो बार 10-10 मिनट के लिए स्थगित हुई.
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तीसरी बार सदन शुरू होते ही पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसे सदन का, आदिवासी का अपमान बताया और अपने साथियों के साथ सदन से बाहर चले गए. बीजेपी के तमाम विधायक पैदल मार्च करते हुए विधानसभा से राजभवन पहुंचे. वे मांग कर रहे थे कि अध्यक्ष दुबारा चुना जाए. शिवराज सिंह चौहान ने कहा 'हम आहत हैं इसलिए सड़क पर हैं, ये लोकतंत्र की हत्या है. हमें अपना प्रस्ताव तक नहीं रखने दिया. हम चाहते हैं राज्यपाल इसे निरस्त करें.'
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उधर इस हंगामे के बीच सदन में 120 विधायकों ने एनपी प्रजापति के नाम पर मुहर लगा दी. उधर कांग्रेस ने इस जीत के बाद गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि बीजेपी ने उनके विधायकों को खरीदने की पुरजोर कोशिश की. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा कि शिवराज सिंह को माफी मांगना चाहिए. राज्यपाल से उन्होंने बहुमत की सरकार को अल्पमत के रूप में कहा है. महामहिम राज्यपाल की अवमानना की है. उसके बाद उन्होंने हमलावर अंदाज में बताया कि वैजनाथ कुशवाहा को 10 किलोमीटर दूर एक ढाबे पर ले जाया गया. बीजेपी के नेताओं ने बोला 100 करोड़ ले लो चार्टड प्लेन तैयार है मंत्री बनो.
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हालांकि कुछ जानकार यह भी कह रहे हैं कि कांग्रेस अपनी संख्या को लेकर आश्वास्त नहीं थी इसलिए बीजेपी के प्रस्ताव को पहले नामांकन के साथ नहीं रखा गया. बहरहाल इस चुनाव के साथ मध्यप्रदेश विधानसभा में 52 साल बाद अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ. अब कांग्रेस के कुछ नेताओं की राय है कि विपक्ष को उपाध्यक्ष पद देने की परंपरा पर पार्टी को विराम लगाना चाहिए.
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