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This Article is From Jun 12, 2021

मध्य प्रदेश सरकार ने माना- कोरोना की दूसरी लहर में जब लोग मर रहे थे, तब 204 वेंटिलेटर डिब्बों में बंद थे

एक और मामले में मध्य प्रदेश सरकार (Madhya Pradesh Govt) ने हाईकोर्ट में माना है कि COVID-19 की दूसरी लहर के दौरान कई वेंटिलेटर पैक करके ही रखे रहे.

मध्य प्रदेश सरकार ने माना- कोरोना की दूसरी लहर में जब लोग मर रहे थे, तब 204 वेंटिलेटर डिब्बों में बंद थे
राज्य सरकार ने हलफनामा देकर यह बात स्वीकारी. (फाइल फोटो)
Quick Take
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
MP में ब्लैक फंगस का बढ़ता खतरा
अब तक 135 मरीजों की हुई मौत
ब्लैक फंगस के 1791 एक्टिव मरीज
भोपाल:

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में 200 से अधिक म्यूकोर्मिकोसिस या ब्लैक फंगस (Black Fungus) रोगियों को पिछले कुछ दिनों में प्रतिकूल प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा है, क्योंकि इस बीमारी के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा का एक सस्ता विकल्प कथित तौर पर तीन प्रमुख अस्पतालों को दिया गया था. जिससे मरीजों में बुखार, उल्टी और रक्तचाप में उतार-चढ़ाव जैसे लक्षण दिखाई दिए. उधर सरकार ने कहा है कि सस्ते इंजेक्शन में कोई गड़बड़ी नहीं है. एक और मामले में सरकार ने कोर्ट में माना है कि दूसरी लहर के दौरान कई वेंटिलेटर पैक करके ही रखे रहे.

कुछ दिनों पहले जबलपुर के सरकारी अस्पताल में मरीजों को ब्लैक फंगस के इंजेक्शन लगते ही, कंपकपी शुरू हो गई, बुखार आ गया और वहां अफरातफरी मच गई. यही हाल इंदौर और सागर के बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में भी था. डॉक्टरों ने कहा 5 जून से लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन-बी के बजाए, लियोफिलाइज्ड एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन दिया जा रहा था. जिससे मरीजों की तबियत बिगड़ी और फिर उसका प्रयोग बंद किया गया.

ब्लैक फंगस का इंजेक्शन लगाते ही 27 मरीजों की हालत बिगड़ी, बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में मचा हड़कंप

बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज (बीएमसी) सागर के डॉक्टर उमेश पटेल ने कहा, '40 मरीज इलाजरत हैं. 27 मरीजों को एंफोटेरिसिन इंजेक्शन लगाया था, जिन्हें एडवर्स रिएक्शन होने पर इसे रोका गया.' 

डॉक्टरों ने कहा कि ब्लैक फंगस में अब तक एम्फोटेरिसिन-बी, जिसकी कीमत 3,000 रुपये से 7,000 रुपये प्रति इंजेक्शन के बीच है, का उपयोग होता था, मगर सरकार ने सरकारी अस्पतालों में लियोफिलाइज्ड एम्फोटेरिसिन-बी भेजे, जिनकी कीमत 300 रुपये से 700 रुपये के बीच है. हालांकि जानकार डॉक्टर मान रहे हैं कि सस्ते इंजेक्शन में गड़बड़ी होने की वजह उसके प्रोटोकॉल का ठीक से पालन करना नहीं है.

ब्लैक फंगस टास्क फोर्स के सदस्य डॉक्टर एस पी दुबे ने कहा, 'लाइफोलाइजिड में टॉक्सीन ज्यादा है, लंबे वक्त तक देना होता है. 3 तरह की ड्रग आती है. लाइपोसोमे, फैट इमल्शन, सबसे प्लेन 300 में आता है, डोज कम देना है. पहले पेशेंट को हाइड्रेट करना चाहिए. इंफ्यूजन पंप द्वारा 6-8 घंटे में देना चाहिए.'

बताते चलें कि राज्य में फिलहाल 1791 ब्लैक फंगस से ग्रसित मरीज हैं. 135 मरीजों की मौत हुई है. पिछले 10 दिनों में ही 87 मरीजों की मौत हुई है. राज्य के सरकारी अस्पतालों में ब्लैक फंगस के मरीजों को नि:शुल्क इंजेक्शन दिए जा रहे हैं. सस्ते इंजेक्शन से चार शहरों के 200 से ज्यादा मरीजों की हालत बिगड़ी और इनका प्रयोग बंद किया गया.

चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा, 'किसी भी तरह कमी से दूसरा इंजेक्शन लगाया, ऐसी बात नहीं है. जो गाइडलाइन है, इसके हिसाब से इंजेक्शन दे रहे हैं. क्यों दिक्कत आई जानकारी ली जाएगी. स्टॉक में दिक्कत थी, ब्रांड में दिक्कत थी, ये जांच के बाद पता लगेगा.' जानकार कहते हैं कि सरकार के पास पर्याप्त इंजेक्शन नहीं हैं. वरिष्ठ वकील नमन नागरथ ने कहा, '34800 एंफोटेरेसिन मिले हैं, पॉस्कोनोजॉल 23000 आ चुके हैं, 1000 से ऊपर मरीज इलाजरत हैं. उनको देखते हुए ये दवा कम है. हाईकोर्ट में आवेदन लगाया है.'

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वहीं दूसरी ओर 11 मई को एनडीटीवी ने बताया था कि कैसे खुद सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों ने खत लिखकर कहा था कि पीएम केयर से मिले वेंटिलेटर से इलाज मुश्किल है. राज्य के अलग-अलग संभागों में कैसे वेंटिलेटर धूल खा रहे हैं. अब हाईकोर्ट में सरकार ने हलफनामा देकर माना है कि दूसरी लहर में जब लोग मर रहे थे, तब प्रदेशभर के मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में 204 वेंटिलेटर डिब्बों में बंद थे.

नमन नागरथ ने कहा, '204 से अधिक वेंटिलेटर स्टोर रूम में रखे हैं, जिसको सरकार कहती है कि बैकअप में रखे हैं. पीएम केयर के 42 भोपाल में पड़े हैं. 20 इंदौर में, जिनको कोरोना की सेकेंड वेव में इस्तेमाल नहीं किया गया. भोपाल में 77 वेंटिलेटर, 35 जिला अस्पतालों में 42 पीएम केयर के या तो इंस्टॉल नहीं हुए या चलाने के लिए स्टाफ नहीं है. वैसे पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ब्लैक फंगस के सस्ते इंजेक्शनों को लेकर जांच की मांग की है तो वहीं हाईकोर्ट की डिविजन बेंच ने सरकार से ये पूछ लिया है कि क्यों न प्रदेश के निजी अस्पतालों का ऑडिट किया जाए. अगली सुनवाई 21 जून को है और हम भी लगातार आपदा में अवसर के खेल को सामने लाने में जुटे हैं.

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