- महाराष्ट्र की 29 महानगरपालिकाओं के चुनाव को लेकर पार्टियों में तैयारियां तेज हो गई हैं. सियासी हलचल तेज है.
- अजित पवार भाजपा-शिवसेना शिंदे गुट से गठबंधन छोड़कर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं.
- अजित पवार की रणनीति 2029 की बड़ी योजना का हिस्सा है जिसमें वे पार्टी की स्वतंत्र ताकत का आंकलन करना चाहते हैं.
महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों तेजी से हलचल बढ़ रही है. एक ओर राज्य की 29 महानगरपालिकाओं के चुनावी बिगुल के बीच तैयारियां तेज हैं, तो दूसरी ओर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के दोनों गुट शरद पवार और अजित पवार के बीच बढ़ती नजदीकियों ने महायुति और महाविकास अघाड़ी (MVA) को असहज कर दिया है.
अजित पवार की रणनीति: गठबंधन से दूरी या स्वतंत्र रास्ते की तैयारी?
सियासी हलकों में यह चर्चा तेज है कि महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार भाजपा-शिवसेना (शिंदे गुट) के साथ जारी गठबंधन की बजाय अब स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं.
सोची समझी साजिश है भाजपा से ये दूरी
सूत्रों के अनुसार यह कोई तात्कालिक फैसला नहीं, बल्कि ‘मिशन 2029' की बड़ी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. अजित पवार अपनी पार्टी की स्वतंत्र ताकत और जनाधार का आंकलन करना चाहते हैं. बीजेपी और शिंदे सेना के बीच सीटों के तालमेल ने NCP (अजित गुट) की गुंजाइश कम कर दी है, जिससे कार्यकर्ताओं में नाराजगी बढ़ी है.
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अजित-रोहित मुलाकात और अनिल पाटिल के बयान ने बढ़ाई अटकलें
पुणे में गुरुवार देर रात अजित पवार और रोहित पवार के बीच हुई मुलाकात पहले ही सुर्खियों में थी. इसी बीच जालना से NCP नेता अनिल पाटिल ने बयान दिया कि शरद पवार गुट को अपनी 'घड़ी' वाले मूल चुनाव चिन्ह पर लौट आना चाहिए. इस टिप्पणी ने उन अटकलों को और हवा दे दी है कि क्या दोनों गुट पर्दे के पीछे किसी संभावित ‘वापसी फॉर्मूले' पर चर्चा कर रहे हैं?
NCP की तैयारी: बड़े शहरों में अकेले उतरने का संकेत
जानकारी के मुताबिक, अजित पवार का गुट मुंबई, पुणे, ठाणे, नासिक और पिंपरी–चिंचवड़ जैसे प्रमुख शहरी क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है. वहीं दूसरी तरफ भाजपा और शिंदे गुट पहले ही मुंबई में 150 से अधिक सीटों पर आपसी समझौता कर चुके हैं, जिससे NCP के लिए सीमित जगह बचती दिखाई दे रही है. भाजपा चाहती है कि NCP स्वतंत्र चुनाव लड़े, लेकिन कांग्रेस से दूरी बनाए रखे.
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उधर, शरद पवार गुट को भी MVA में सीटों पर सहमति बनाना आसान नहीं लग रहा. ऐसे में यदि बात नहीं बनती, तो वे अन्य छोटे दलों या फिर ‘पुणे मॉडल' के आधार पर अजित पवार गुट से समझौता भी कर सकते हैं.
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