
- मुंबई के शिवाजी पार्क में बाल ठाकरे की पत्नी मीनाताई की प्रतिमा पर रंग डालने की घटना हुई.
- इससे पहले मीनाताई, छत्रपति शिवाजी, आंबेडकर की मूर्तियों को लेकर बवाल हो चुके हैं.
- अक्सर चुनावों से पहले ऐसी घटनाएं होती हैं. इनके पीछे कई बार राजनीतिक स्वार्थ भी छिपे होते हैं.
मुंबई के शिवाजी पार्क इलाके में बुधवार को उस वक्त तनाव फैल गया, जब वहां शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे की पत्नी मीनाताई ठाकरे की प्रतिमा पर किसी ने रंग डाल दिया. मीनाताई को शिव सैनिक “मां साहेब” कहते हैं. उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे समेत समेत उनकी पार्टी के तमाम बड़े नेता वहां पहुंचे और इस हरकत की निंदा की. राज ठाकरे ने पुलिस को अल्टीमेटम दे दिया कि 24 घंटे के भीतर ऐसी हरकत करने वाले को हथकड़ी लगाई जाए. चंद घंटे बाद ही पुलिस ने उसी इलाके के एक शख्स को दबोच लिया. पता चला कि ये शख्स उद्धव ठाकरे की शिवसेना के एक कार्यकर्ता का चचेरा भाई था. उसने परिवार के संपत्ति विवाद में ठाकरे के कथित हस्तक्षेप से नाराज होकर यह वारदात की थी.
पुलिस की सक्रियता के कारण इस मामले में बात ज्यादा नहीं बढ़ी और मामले ने राजनीतिक रंग नहीं लिया, लेकिन मुंबई के इतिहास को देखें तो प्रतिमाओं के कारण खून-खराबा तक हो चुका है. दिलचस्प ये है कि जब भी महाराष्ट्र में किसी तरह के चुनाव होने वाले होते हैं तो मूर्तियों को नुकसान पहुंचाने या छेड़छाड़ की खबरें आने लगती हैं. कई बार ऐसे मामले सियासी संग्राम का रूप ले चुके हैं.
2006: मीनाताई की मूर्ति
मीनाताई ठाकरे की इसी प्रतिमा को लेकर 9 जुलाई 2006 को बड़ा बवाल हुआ था. उस सुबह मॉर्निंग वॉक के लिए शिवाजी पार्क आए लोगों ने देखा कि मैदान के मुहाने पर लगी प्रतिमा पर किसी ने कालिख पोत दी है. खबर फैलते ही बड़ी संख्या में शिव सैनिक वहां जमा हो गये और कुछ ही देर में हिंसा शुरू हो गयी. भीड़ ने मैदान के पास से गुजर रही एक लग्जरी बस को फूंक दिया. बेकाबू लोगों को खदेड़ने के लिये पुलिस को लाठियां भांजनी पड़ीं और आंसू गैस के गोले दागने पड़े. ये सब कुछ मुंबई महानगरपालिका चुनाव के कुछ महीनों पहले हुआ था.
1997: आंबेडकर की प्रतिमा
बुत को लेकर एक बार हिंसा जुलाई 1997 में भी हुई थी. 11 जुलाई को मुंबई के उत्तर-पूर्वी उपनगर की एक झुग्गी बस्ती रमाबाई नगर में लगी डॉ. बाबासाहब आंबेडकर की प्रतिमा पर किसी ने चप्पलों की माला डाल दी. खबर फैलते ही गुस्साये लोग ईस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे पर आ गये, जो मुंबई शहर को ठाणे और नासिक से जोड़ता है. रास्ता रोको से शुरु हुआ विरोध आगजनी में बदल गया. इस पर स्टेट रिजर्व पुलिस की टीम ने भीड़ पर गोलियां चला दीं. 10 लोग मारे गये और 26 घायल हुए. मारे गये कई लोग ऐसे भी थे जो दंगे में शामिल नहीं थे. रमाबाई कांड एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया. इसके चंद महीनों बाद ही फरवरी 1998 में लोक सभा के चुनाव थे.
1999: छत्रपति शिवाजी की मूर्ति
इसके दो साल बाद, 1999 में एक बार फिर से इसी रमाबाई नगर में हिंसा हुई. बस्ती में लगी छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा को किसी ने नुकसान पहुंचाया था. उसके बाद नारायण राणे, जो उस वक्त शिव सेना में थे, वहां पहुंचे. उनके निकलने के बाद शिव सैनिकों और रिपब्लिकन पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच पथराव हो गया. हिंसा रोकने के लिये पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा. घटना के चंद महीने बाद ही महाराष्ट्र विधानसभा और लोकसभा के चुनाव थे.
2024: सिंधुदुर्ग में छत्रपति शिवाजी प्रतिमा
प्रतिमा को लेकर महाराष्ट्र में सबसे हालिया सियासी विवाद 2024 में हुआ. सिंधुदुर्ग जिले के राजकोट किले में लगी छत्रपति शिवाजी की 35 फुट ऊंची प्रतिमा मौसम की मार से गिर पड़ी और क्षतिग्रस्त हो गयी. इसके बाद बड़ा सियासी बवाल मचा. ये प्रतिमा नौसेना की ओर से लगाई गयी थी. विपक्षी पार्टियों ने इस घटना के बाद केंद्र और राज्य सरकार पर निशाना साधा. ये हादसा नवंबर 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के पहले हुआ था.
चुनाव से पहले ही बवाल क्यों?
राजनीतिक गलियारों में अक्सर ये बात दबी जुबान से कही जाती है कि चुनाव से पहले किसी की प्रतिमा के साथ छेड़छाड़ या नुकसान पहुंचाने की घटना जानबूझकर होती है. जिनकी प्रतिमाओं के साथ ऐसा किया जाता है, उनसे लोगों की भावनाएं जुड़ी होती हैं. शरारती तत्व अक्सर राजनीतिक स्वार्थ के लिये ऐसी हरकतें करते हैं ताकि ध्रुवीकरण किया जा सके. ये अलग बात है कि राज्य में जगह-जगह लगी महापुरुषों की कई प्रतिमाओं की हालत खराब है और उनका पर्याप्त रखरखाव तक नहीं होता.
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