अगर मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (SP) ने वर्ष 2014 में गठबंधन कर लिया होता, तो वे उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 41 जीत सकते थे, और अब अप्रैल-मई में होने जा रहे चुनाव में वे 54 सीटों तक का आंकड़ा छू सकते हैं. दूसरी ओर, पिछले चुनाव ने 71 सीटें (सहयोगी 'अपना दल' सहित 73) जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी (BJP) 23 सीटों तक सिमटकर रह सकती है.
अब अगर BJP के प्रति झुकाव सिर्फ पांच फीसदी भी बढ़ा, तो उनका आंकड़ा 23 से 60 तक पहुंच सकता है, और SP-BSP गठबंधन सिर्फ 18 सीटों पर सिमटकर रह जाएगा.
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और दूसरी तरफ, अगर कांग्रेस को SP-BSP गठबंधन का हिस्सा बना लिया जाता है, तो अंतर ज़्यादा हो जाएगा. ऐसे हालात में अगर झुकाव BJP से विपरीत दिशा में सिर्फ पांच फीसदी बदलता है, तो वे सिर्फ आठ सीटों तक सिमट सकते हैं, और SP-BSP-कांग्रेस गठबंधन 72 सीटें जीतकर शानदार प्रदर्शन कर सकते हैं.
अगर विपक्ष एकजुट हो जाता है, और झुकाव उसके बाद BJP के पक्ष में जाता है, तो BJP को 46 सीटें हासिल हो सकती हैं, और गठबंधन को 34 सीटें मिल पाएंगी.
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वैसे, इस वक्त कांग्रेस को मायावती-अखिलेश गठबंधन से दूर रखा गया है, और वह उत्तर प्रदेश की अधिकतर सीटों पर अकेले ही लड़ रही है.
SP-BSP गठबंधन का नुस्खा पिछले साल राज्य की फूलपुर, गोरखपुर और कैराना लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में कारगर साबित हुआ था, और तीनों सीटों पर गठबंधन ने BJP को पटखनी दे डाली थी. गठबंधन को फूलपुर और गोरखपुर सीटों पर 10 फीसदी ज़्यादा वोट हासिल हुए थे, और कैराना में भी गठबंधन के पक्ष में चार प्रतिशत का उछाल देखा गया.
इस कामयाबी ने दोनों दलों को अपनी दशकों पुरानी प्रतिद्वंद्विता को भुलाकर एक साथ आने के लिए मजबूर कर दिया, ताकि लोकसभा चुनाव में BJP से मुकाबला किया जा सके.
हालांकि कहा जा सकता है कि उपचुनाव को हमेशा संकेतक नहीं माना जा सकता, लेकिन कांग्रेस का दावा है कि जनता अब आम चुनाव को पहले की तुलना में कहीं ज़्यादा गंभीरता से लेने लगी है, इसलिए वे अपना वोट बेहद सोच-समझकर डालेंगे.
कांग्रेस नेता प्रनोद तिवारी ने NDTV से कहा, "जिन लोगों ने यह सोचकर मतदान नहीं किया था कि वह उपचुनाव था, वे भी बाहर निकलकर वोट डालेंगे... और जिन लोगों ने अपनी मर्ज़ी से वोट डाला था, वे अब पहले से ज़्यादा जोश-ओ-खरोश के साथ और ज़्यादा खुले दिमाग से वोट डालेंगे..."