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This Article is From Mar 07, 2019

ग्वालियर लोकसभा सीट : सिंधिया घराने के असर वाले क्षेत्र में बदलाव लाते रहे वोटर

पिछले तीन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने हासिल की जीत, मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के सामने सीट बचाने की चुनौती

ग्वालियर लोकसभा सीट : सिंधिया घराने के असर वाले क्षेत्र में बदलाव लाते रहे वोटर
ग्वालियर लोकसभा सीट पर मौजूदा सांसद नरेंद्र सिंह तोमर के लिए जीत की राह आसान नहीं है.
Quick Reads
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
ग्वालियर में कांग्रेस से माधवराव सिंधिया पांच बार सांसद रहे
राजमाता विजयराजे सिंधिया के आश्रय में बीजेपी और संघ ने किया विस्तार
अधिकतर समय सिंधिया राजघराने के नेता रहे सांसद
नई दिल्ली:

मध्यप्रदेश में अति महत्वपूर्ण माने जाने वाले ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र का चुनाव इस बार ज्यादा अहमियत वाला चुनाव हो गया है. इसके पीछे कारण यह है कि पिछले तीन लोकसभा चुनावों में यहां बीजेपी को जीत मिली और इस दौरान प्रदेश में बीजेपी की सरकार रही है. इस बार प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और ग्वालियर क्षेत्र की आठ विधानसभा सीटों में से सात पर कांग्रेस का कब्जा है. ग्वालियर सीट पर समय-समय पर मतदाता बदलाव लाते रहे हैं. यहां कभी कांग्रेस, कभी जनसंघ, कभी भारतीय लोकदल तो कभी बीजेपी ने को लोगों ने चुना. यहां से सबसे अधिक पांच बार माधवराव सिंधिया चुने गए.

फिलहाल यहां के बीजेपी के सांसद नरेंद्र सिंह तोमर केंद्र में कैबिनेट मंत्री हैं. लेकिन दूसरी तरफ सिंधिया घराने के ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के सांसद हैं. वे भले ही गुना लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं लेकिन ग्वालियर में इस घराने का प्रभाव हमेशा से रहा है. इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया कहीं अधिक मजबूत स्थिति में हैं. राज्य में कांग्रेस की सरकार है और सिंधिया कांग्रेस के महासचिव भी हैं. यदि ग्वालियर क्षेत्र में कांग्रेस पिछले विधानसभा चुनाव की तरह प्रदर्शन करने में कामयाब रही तो यह बीजेपी के लिए समस्या खड़ी कर सकती है.      

मध्यप्रदेश के ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र वैसे तो सिंधिया राजघराने का गढ़ रहा है लेकिन यहां से बीच-बीच में आम प्रत्याशी भी फतह हासिल करते रहे हैं. ग्वालियर में राजमाता विजयराजे सिंधिया पहले कांग्रेस नेत्री थीं लेकिन बाद में उन्होंने न सिर्फ कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी का दामन थाम बल्कि चंबल घाटी में फैले इस पूरे इलाके में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विस्तार में एक मजबूत कड़ी बनीं. बाद में सिंधिया परिवार राजनीतिक रूप से बंट गया जब उनके बेटे माधवराव सिंधिया बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में चले गए. इस संसदीय सीट पर अधिकतर सिंधिया घराने का ही कब्जा रहा भले ही सांसद कभी कांग्रेस का या कभी बीजेपी का रहा.        

ग्वालियर मध्यप्रदेश की ही नहीं बल्कि देश की महत्वपूर्ण संसदीय सीटों में से एक है. इस क्षेत्र से राजमाता विजयराजे सिंधिया, अटलबिहारी वाजपेयी और माधवराव सिंधिया जैसे देश के कई दिग्गज नेता सांसद रह चुके हैं. यहां से वर्तमान में मोदी सरकार के कैबिनेट मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर सांसद हैं.

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ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र में किसी एक पार्टी का प्रभाव नहीं रहा है बल्कि सिंधिया राजघराने का असर रहा है. बीजेपी की ओर से जहां यशोदाराजे सिंधिया यहां से सांसद बन चुकी हैं तो कांग्रेस की ओर से माधवराव सिंधिया और उनकी मां विजयाराजे सिंधिया यहां से सांसद रह चुकी हैं. यहां चार बार बीजेपी जीती, दो बार जनसंघ और आठ बार कांग्रेस विजयी हुई. पिछले तीन लोकसभा चुनावों से यहां बीजेपी जीतती आ रही है.

ग्वालियर संसदीय क्षेत्र में आठ विधानसभा क्षेत्र हैं. ग्वालियर ग्रामीण, ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व, ग्वालियर दक्षिण, भितरवार, डबरा, करेरा, और पोहरी. इस लोकसभा क्षेत्र में कुल 14 लाख 87 हजार 654 मतदाता हैं. इनमें आठ लाख चीन हजार 559 पुरुष मतदाता और छह लाख 84 हजार 40 महिला मतदाता शामिल हैं. यहां की आठ विधानसभा सीटों में से सात पर कांग्रेस और एक पर बीजेपी का कब्जा है.

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ग्वालियर में पहली लोकसभा के लिए 1952 में हुए चुनाव में अखिल भारतीय हिंदू महासभा के विष्णु घनश्याम देशपांडे सांसद चुने गए थे. इसी लोकसभा के दौरान हुए उपचुनाव में इसी पार्टी के नारायण भास्कर खरे जीते. दूसरी लोकसभा के लिए 1957 में हुए चुनाव में यह सीट कांग्रेस ने हासिल कर ली. कांग्रेस के सूरज प्रसाद राधाचरण शर्मा सांसद बने. सन 1962 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में ग्वालियर की महारानी राजमाता विजयराजे सिंधिया चुनाव लड़ीं और जीत हासिल की. विजयाराजे ने जनसंघ के माणिक चंद्रा को हराया था. सन 1967 में कांग्रेस को यह सीट गंवानी पड़ी और भारतीय जनसंघ के रामअवतार शर्मा जीत गए. सन 1971 में पांचवी लोकसभा के लिए भारतीय जनसंघ के अटलबिहारी वाजपेयी चुनाव जीते. वायपेयी ने कांग्रेस के गौतम शर्मा को पराजित किया था.  

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देश में लगे आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में भारतीय लोकदल के नारायण कृष्णराव शेजवालकर जीते. सन 1980 में एक बार फिर शेजवालकर चुने गए. यह चुनाव उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर लड़ा था. सन 1984 में ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं ने एक बार फिर बदलाव किया और राजमाता सिंधिया के बेटे कांग्रेस प्रत्याशी माधवराव सिंधिया को चुना. इससे पहले राजमाता सिंधिया कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जा चुकी थीं.

साल 1984 के चुनाव के साथ ग्वालियर के महाराजा माधवराव सिंधिया का विजय रथ ऐसा दौड़ा कि उन्होंने 1989, 1991, 1996 और 1998 के कुल पांच चुनाव लगातार जीते. इनमें से 1996 का चुनाव उन्होंने मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस के टिकट पर और शेष चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीते. सन 1984 के चुनाव में माधवराव सिंधिया ने अटलबिहारी वाजपेयी को पराजित किया था.   
         
ग्वालियर सीट पर तेरहवीं लोकसभा के लिए 1999 में हुए चुनाव में सिंधिया राजघराने के प्रबल विरोधी माने जाने वाले और बीजेपी के तेजतर्रार नेता जयभान सिंह पवैया ने फतह हासिल की. हालांकि इसे बाद अगले चुनाव में 2004 में कांग्रेस के रामसेवक सिंह विजयी हुए. माधवराव सिंधिया का अचानक निधन हो गया जो कि कांग्रेस के लिए बड़ा झटका था. 2007 में यहां पर उपचुनाव हुआ और एक बार फिर सिंधिया राजघराने ने यह सीट हासिल कर ली. राजमाता सिंधिया की बेटी बीजेपी प्रत्याशी यशोधरा राजे सिंधिया ने जीत हासिल की. इसे बाद 2009 में हुए चुनाव में भी यशोधरा राजे विजयी हुईं. सन 2014 के चुनाव में बीजेपी के नरेंद्र सिंह तोमर सांसद चुने गए.    

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सन 2014 के चुनाव में नरेंद्र सिंह तोमर को 4,42,796 मत मिले जो कि 44.68 प्रतिशत थे. उनके खिलाफ लड़े कांग्रेस के अशोक सिंह को 4,13,097 यानी कि 41.68 फीसदी वोट मिले. कुल  9,90,912 यानी कि 52.80 फीसदी मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया. इससे पहले 2009 के चुनाव में  बीजेपी की यशोधरा राजे सिंधिया ने 2,52,31 (43.19 प्रतिशत) वोट हासिल किए थे. उनके प्रतिद्वंदी कांग्रेस के अशोक सिंह को 2,25,723 (38.64 फीसदी) वोट मिले थे. कुल 5,84,196 (41.12 प्रतिशत) वोट डाले गए थे.    सन 2007 के चुनाव में यशोधरा राजे सिंधिया को 37.43 प्रतिशत और कांग्रेस के अशोक सिंह को 31.04 प्रतिशत वोट मिले थे. मतदान 41.38 फीसदी हुआ था.

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