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This Article is From May 22, 2019

Election Results 2019: जरूरत पड़ने पर क्या नवीन पटनायक केंद्र में एनडीए को समर्थन देंगे?

Election 2019: भारतीय जनता पार्टी के अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में ही हुआ था बीजू जनता दल का जन्म, बीजेपी और बीजेडी के रिश्ते हैं पुराने

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Election Results 2019: जरूरत पड़ने पर क्या नवीन पटनायक केंद्र में एनडीए को समर्थन देंगे?
पीएम नरेंद्र मोदी के साथ ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक (फाइल फोटो).
नई दिल्ली:

यह 1997 की बात है, ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक का अचानक हार्ट अटैक की वजह से देहांत हो गया. बीजू पटनायक जनता दल के एक लोकप्रिय नेता थे. बीजू पटनायक की मौत के बाद पार्टी को कौन आगे ले जाएगा, इसे लेकर कई सवाल खड़े किए जा रहे थे. बीजू पटनायक के बेटे नवीन पटनायक की राजनीति में कोई ज्यादा दिलचस्पी नहीं था.नवीन पटनायक की पढ़ाई ओडिशा के बाहर हुई. ओडिशी भाषा बोलने में भी उन्हें काफी दिक्कतें थीं. ऐसे में पार्टी कौन संभालेगा यह बहुत बड़ी सवाल था. अचानक नवीन पटनायक को राजनीति में आने के लिए मनाया गया और नवीन राजनीति में अपना करियर शुरू करने के लिए मान भी गए.

बीजू पटनायक की मौत के बाद नवीन आस्का से लोकसभा का उपचुनाव लड़े और जीत हासिल की. बीजू पटनायक की मौत के बाद यह सीट खाली पड़ी थी. नवीन पटनायक अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री भी रहे. 6 दिसंबर 1997 को बीजू जनता दल का गठन हुआ. इसके पीछे अटल बिहारी बाजपेयी का दिमाग माना जाता है.  बाजपेयी और बीजू पटनायक के बीच अच्छे रिश्ते थे. दोनों जेपी आंदोलन के समय से एक-दूसरे को अच्छी तरह से जानते थे.

बीजेडी का गठन कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ
एक समय कांग्रेस ओडिशा में काफी ताक़तवर पार्टी मानी जाती थी. 1997 में जब बीजू जनता दल का गठन हुआ तब ओडिशा में कांग्रेस का शासन  था. बीजू जनता दल के भविष्य को लेकर कई सवाल उठाए जा रहे थे. ओडिशा की राजनीति में यह पार्टी टिक पाएगी या नहीं यह बड़ा सवाल था. नवीन पटनायक खुद भी पूरी तरह पार्टी को आश्वस्त नहीं थे.  इसलिए नवीन ने 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा.  इस चुनाव में बीजेपी को सात सीटें मिली थीं जबकि बीजू जनता दल को 9 सीटें मिलीं. पांच सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. 1999 में लोकसभा चुनाव के लिए भी दोनों दलों के बीच गठबंधन हुआ.  इस चुनाव में बीजेपी ने आठ लोकसभा सीटों पर विजय हासिल की थी जबकि बीजू जनता दल 11 सीटों पर जीती थी. कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं.

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विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन
साल 2000 में ओडिशा में विधानसभा चुनाव हुए. यहां नवीन पटनायक के लिए असली परीक्षा थी. बीजू जनता दल पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रही थी. ऐसे में अकेले चुनाव लड़ना नवीन के लिए खतरे से खाली नहीं था. नवीन पटनायक ने विधानसभा चुनाव के लिए भी भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन किया. सन 2000 के विधानसभा चुनाव में 147 सीटों में से बीजद ने 68 सीटें जीतीं और नवीन पटनायक ओडिशा के मुख्यमंत्री बने. सन 2004 में भी बीजद और बीजेपी के बीच लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए गठबंधन हुआ. एक बार फिर गठबंधन को बहुमत मिला और नवीन मुख्यमंत्री बने. इस चुनाव में बीजद को 61 विधानसभा सीटें मिलीं, जबकि बीजेपी के खाते में 32 सीटें गईं. लोकसभा सीटों की बात करें तो 21 में से 11 सीटों पर बीजद ने कब्ज़ा जमाया, जबकि सात सीटें बीजेपी को मिलीं.

साल 2009 में बीजेपी से अलग हुआ बीजेडी
सन 2009 तक नवीन पटनायक अपने पैर जमा चुके थे. एक राजनेता के रूप में नवीन पटनायक की लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी. सन 2008 में नवीन कई ऐसी स्कीमें लाए जो गरीबों के हित के लिए थीं. जिसमें से एक रुपये में एक किलो चावल काफी लोकप्रिय था. आज भी यह स्कीम ओडिशा में है जिसकी वजह से नवीन का अपनी एक अलग इमेज है. साल 2009 में नवीन ने अपने लिए ग्राउंड बना लिया था. उन्हें यह लग गया था कि वे अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ सकते हैं. अगर बीजेपी के साथ चुनाव लड़ेंगे तो बीजेपी को जो भी सीट मिलेगी वह नवीन पटनायक की लोकप्रियता की वजह से मिलेगी. इसीलिए वे अपनी सीटें बीजेपी को देना नहीं चाहते थे. धीरे-धीरे कांग्रेस ओडिशा में कमजोर हो रही थी लेकिन बीजेपी अपने पैर जमा रही थी. नवीन पटनायक के सामने यह भी एक चुनौती थी कि कहीं बीजेपी आगे जाकर नवीन के लिए रास्ते का रोड़ा न बन जाए. नवीन पटनायक ने बीजेपी से अपना रिश्ता तोड़ा और अलग से चुनाव लड़ा.

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बीजू जनता दल का शानदार प्रदर्शन
इस चुनाव में बीजद ने शानदार प्रदर्शन किया. 147 विधानसभा सीटों में से 103 पर जीत हासिल की. जबकि बीजेपी सिर्फ 6 विधानसभा सीटों पर सिमट गई. वहीं लोकसभा में बीजद को 14 सीटें मिलीं,  जबकि बीजेपी को कोई भी सीट नहीं मिल पाई. कांग्रेस ने 6 सीटों पर जीत हासिल की. इससे साबित हो गया कि नवीन ने सही निर्णय लिया था. सन 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खाते में एक सीट न जाना बड़ी बात थी, जबकि 2000 में बीजेपी को 8 सीटें मिलीं थीं और 2004 में 7 सीटें. इस चुनाव में यह साबित हो गया कि ओडिशा में बीजेपी का अपना कोई प्रभाव नहीं था बल्कि जो सीटें बीजेपी जीत रही थी वे गठबंधन की वजह से थीं. इस चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी ओडिशा में संघर्ष करती चली गई. साल 2014 में भी बीजू जनता दल अकेले चुनाव लड़ा. इस चुनाव बीजेडी ने 117 सीटों पर जीत हासिल की यानी 2009 से भी ज्यादा सीटें. बीजेपी को सिर्फ 10 सीटें मिलीं. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजू जनता दल ने 21 में से 20 सीटों पर जीत हासिल की जबकि बीजेपी को एक सीट मिली.

2009 के बाद बीजद के वोट प्रतिशत में लगातार बढ़ोतरी
साल 2009 से बीजद का वोट प्रतिशत लगातार बढ़ता जा रहा है. साल 2004 में बीजद को 27.5 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि बीजेपी को 17.11 प्रतिशत वोट मिले थे. अगर सिर्फ चुनाव लड़ने वाले क्षेत्र की बात की जाए तो बीजद को 47.44 फीसदी वोट मिले थे जबकि बीजेपी को 40.43 प्रतिशत वोट मिले थे. सन 2009 में बीजद और बीजेपी अलग होकर चुनाव लड़े थे और यह आंकड़े बदल गए. 2009 में बीजद का वोट प्रतिशत 27.5 से बढ़कर 38.86 हो गया. साल 2014 में बीजद का वोट प्रतिशत 38.86 से बढ़कर 43.35 हो गया. बीजेपी को 18 प्रतिशत के करीब वोट मिले थे. 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजद को 30 प्रतिशत के करीब वोट मिले थे जबकि बीजेपी को 19 प्रतिशत वोट मिले थे. साल 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजद को 37.23 प्रतिशत वोट मिले थे और 2014 में यह बढ़कर 44.1 हुए. सन 2009 में बीजेपी को 17 प्रतिशत के करीब वोट मिले थे जबकि 2014 में यह बढ़कर 22 प्रतिशत के करीब हो गए.

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क्या जरूरत पड़ने पर नवीन पटनायक केंद्र में बीजेपी की समर्थन करेंगे
मौजूदा चुनाव का सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या एनडीए अपने दम पर सरकार बना पाएगी. एग्जिट पोल में एनडीए को बहुमत मिला है लेकिन यह एग्जिट पोल है, गलत भी साबित हो सकता है. सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर एनडीए को बहुमत नहीं मिलता है तो क्या बीजू जनता दल एनडीए का समर्थन करेगी? चुनाव के दौरान नवीन के साथ-साथ बीजू जनता दल के कई बड़े नेता कह चुके हैं जो ओडिशा के लिए जो सोचेगा बीजेडी उसको समर्थन देगा. नवीन पटनायक चाहते हैं कि ओडिशा को विशेष राज्य का दर्जा मिले. तो सवाल यह है कि अगर नरेंद्र मोदी विशेष राज्य का दर्जा देने का वादा करते हैं तो क्या नवीन एनडीए को समर्थन देंगे? नवीन के सामने एक और समस्या है..इस बार ओडिशा में बीजू जनता दल की लड़ाई कांग्रेस के खिलाफ नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ है. सन 2017 में हुए पंचायत चुनाव में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया था और सीटें जीतने के मामले में दूसरी स्थान पर थी. जबकि कांग्रेस तीसरी स्थान पर. तो सवाल यह है कि अगर नवीन की सरकार बनती है और बीजेपी ओडिशा विधान सभा में विपक्ष में बैठती है तो क्या फिर भी नवीन केंद्र में एनडीए को समर्थन देंगे?

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अगर ओडिशा में त्रिशंकु असेम्बली होती है, बीजू जनता दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है, तो फिर क्या होगा? ऐसे में यह भी हो सकता है कि बीजेपी को पावर से दूर रखने के लिए कांग्रेस बीजू जनता दल को बाहर से समर्थन दे दे. ऐसे में कांग्रेस यह नहीं चाहेगी कि बीजू जनता दल एनडीए को समर्थन दे. दूसरी बात यह भी है कि जय पंडा और विजय महापात्र जैसे बीजेपी नेताओं के साथ नवीन के रिश्ते बहुत खराब हो चुके हैं. जब तक यह दोनों नेता बीजेपी में रहेंगे नवीन को समझाने में थोड़ी दिक्कत होगी. इस बार पांडा ने नवीन पर खुलकर हमला किया है. बिजेडी के कई नेता इस बार चुनाव से पहले बीजेपी में चल गए थे. इससे नवीन खुश नहीं हैं लेकिन यह भी ध्यान में रखना पड़ेगा कि अपने फायदे के लिए नवीन कुछ भी कर सकते हैं.

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