उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और मायावती (Mayawati) की बहुजन समाज पार्टी के बीच लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2019) को लेकर हुए गठबंधन के बाद अब दोनों ही दल सात अप्रैल को एक बड़ी रैली करने जा रहे हैं. इस रैली में दोनों ही पार्टियां शक्ति प्रदर्शन करेंगी. खास बात यह है कि उन्होंने इस रैली के लिए सहारनपुर को चुना है. बता दें कि 2014 तक यह इलाका मायावती (Mayawati) का माना जाता था. बसपा (BSP) को बीते चार चुनाव में इस संसदीय क्षेत्र में दो बार जीत मिली थी. लेकिन 2014 में मोदी लहर की वजह से उन्हें यह सीट गवानी पड़ी. सहारनपुर की कुल आबादी में से 42 फीसदी जनसंख्या मुसलमानों की है. जबकि 22 फीसदी लोग दलित हैं.
अखिलेश-मायावती के गठबंधन की पहली परीक्षा पश्चिमी यूपी में होने वाली है. इस गठबंधन का नारा है कि एक भी वोट ना बटने देंगे, एक भी वोट ना घटने देंगे.
मायावती (Mayawati) के समर्थक मुख्य रूप से जाटव दलित मतदाता हैं, जो राज्य में रहने वाले कुल दलितों की आबादी की आधी है. 2017 में सहारनपुर के एक गांव में ऊपरी जाति और दलितों के बीच दिल दहलाने वाली घटना हुई़. जिसकी वजह से कुछ समय बाद इलाके में दंगे भी भड़के. यह पूरा इलाका अगले कई सप्ताह तक इन दंगों की आंच में झुलसता रहा. इन दंगों में दो लोगों की मौत हुई. मरने वालों में एक दलित और दूसरा ठाकुर था. दंगे को दौरान दलितों द्वारा एक जुलूस को रोके जाने के खिलाफ आरोपियों ने 50 से ज्यादा दलितों के घरों को आग के हवाले भी किया था.
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उस दौरान भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद (Chandrashekhar Ravan) को दंगों का मुख्य आरोपी बताया गया था. तीन महीनें बाद यूपी पुलिस ने आजाद को हिमाचल प्रदेश से गिरफ्तार किया. यूपी सरकार ने आजाद पर राष्ट्र की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने को लेकर कई गंभीर आरोप लगाए थे. हालांकि बाद में सरकार ने उन सभी आरोपों को वापस भी ले लिया था. आजाद को उनकी गिरफ्तारी के 16 महीनें बाद जेल से रिहा कर दिया गया था.
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साहरनपुर हिंसा और उसके बाद आजाद कि गिरफ्तारी के बाद आजाद की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए यूपी की पूर्व सीएम मायावती घबरा गईं. उन्हें लगने लगा था कि यह युवा अब एक नए दलित नेता के तौर पर उभर रहा है. आजाद ने 2015 में भीम आर्मी (Bhim Army) की स्थापना की. भीम आर्मी की स्थापना के बाद उनका शुरुआती मकसद निचली जाति के बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाना था. हालांकि इसके साथ-साथ यह संगठन दलितों की आवाज उठाने और दलितों के अधिकार के लिए लड़ने की तैयारी में भी था. इसी दौरान गुजरात के ऊना में दलित युवाओं को मृत गाय ले जाने की वजह पिटाई की घटना सामने आई. और भीम आर्मी इस घटना को पूर जोर विरोध भी किया.
भीम आर्मी चुनाव में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए पूरी तरह तैयार है.
सितंबर महीने तक 'रावण' जेल से रिहा हो चुका था और उसका सियासी कद बढ़ चुका था. खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में, जहां से सपा-बसपा गठबंधन के तहत मायावती की पार्टी की करीब आधी सीटें आती हैं. मायावती अपनी उम्र से आधे चंद्रशेखर को लेकर हमेशा से आशंकित रही हैं. मायावती आरोप लगाती रही हैं कि चंद्रशेखर बीजेपी का एजेंट है जोकि आरएसएस की विचारधारा से प्रेरित है. वो कहती रहीं हैं कि अगर चंद्रशेखर को दलितों के प्रति वाकई में चिंता है तो वह भीम आर्मी की स्थापना करने के बजाय बसपा में शामिल होते.
वहीं चंद्रशेखर (Chandrashekhar Ravan) ने एनडीटीवी से कहा कि मोदी और योगी शासन के दौरान मुझे 16 महीने तक जेल में रखा गया, मेरे ऊपर 43 झूठे मुकदमे करा दिए गए. चंद्रशेखर ने सवाल किया कि कैसे मैं उस पार्टी का एजेंट हो सकता हूं जो मुझे खत्म करने की कोशिश कर रही है. प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात पर मायावती की नाराजगी को लेकर चंद्रशेखर ने एक रैली में कहा कि मैं उनका बहुत सम्मान करता हूं और कभी ऐसा काम नहीं करूंगा जिससे दलित वर्ग को नुकसान हो. लेकिन उन्हें मुझ पर विश्वास करना होगा.
प्रियंका गांधी ने हाल ही में मेरठ के अस्पताल में चंद्रशेखर रावण से मुलाकात की थी.
प्रियंका गांधी और चंद्रशेखर की मुलाकात एक अस्पताल में हुई थी. आजाद को एक राजनीतिक जुलूस के दौरान हिरासत में लिया गया था. जहां उन्होंने अपने स्वास्थ्य बिगड़ने की बात कही, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया. कांग्रेस ने यह दिखाने की कोशिश की, अखिलेश यादव और मायावती के गठबंधन से बाहर होने के बाद उनके पास एक और करिश्माई दलित नेता है. आजाद भी यह दिखाना चाहते थे कि वह कोई मामूली खिलाड़ी नहीं हैं.
सहारनपुर स्थित एक विश्वविद्यालय के प्रोफसर खालिद अनिस अंसारी कहते हैं कि पिछले 2 सालों में चंद्रशेखर की पॉपुलैरिटी दलित युवाओं और मुस्लिमों के बीच तेजी से बढ़ी है जिसे उत्तर प्रदेश के शीर्ष राजनीतिक दल नजरअंदाज नहीं कर पाए हैं. शायद इसी वजह से कांग्रेस चंद्रशेखर से मुलाकात के लिए पहुंची थी.
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एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने एनडीटीवी से बातचीत में बताया कि यह मुलाकात भविष्य के लिए एक निवेश की तरह है. उन्होंने कहा कि पार्टी को 2022 में होने वाले उत्तर विधानसभा चुनाव में नए ताजे चेहरों की तलाश है.
इन चुनावों के लिए बीसएपी और एसपी द्वारा किए गए एतिहासिक गठबंधन में शामिल होने संभावनाएं खत्म होने के बाद कांग्रेस दलित नेताओं को अपने सियासी दायरे में लाने की कोशिश कर रही है. इसी कड़ी में पिछले दिनों सावित्रीबाई फुले को कांग्रेस में शामिल किया गया. बीएसपी के कई बड़े नेता इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं क्योंकि उनकी सीटें अखिलेश यादव के हिस्से में चली गई है.
विपक्ष के समर्थन से चंद्रशेखर वाराणसी में पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहते हैं.
मायावती-अखिलेश यादव ने गठबंधन में कांग्रेस को शामिल करने को लेकर पहले ही सभी तरह की अटकलों को खारिज कर दिया है. उनका मानना है कि मौजूदा समय में कांग्रेस का राज्य में कोई आधार नहीं है और अगर वह इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को अपने साथ लेते हैं तो इससे बीजेपी के खिलाफ उनकी लड़ाई कमजोर पड़ेगी. कुछ समय पहले ही भीम आर्मी में शामिल हुए मनोज गौतम का मानना है कि अगर चंद्रेशेखर और कांग्रेस के बीच पश्चिमी यूपी में किसी तरह की बात बनती है तो इसका खामियाजा बीएसपी-सपा गठबंधन को भुगतना होगा. उन्होंने बताया कि वह पहले बसपा के लिए मतदान करते रहे हैं. गौतम अप्रैल में होने वाली बड़ी रैली में शामिल होंगे. उनका मानना है कि आजाद को आखिरकार मायावती का समर्थन करना चाहिए.
गौतम ने एनडीटीवी से कहा कि चंद्रशेखर ने कुछ दिन पहले वाराणसी से पीएम मोदी के खिलाफ लड़ने की घोषणा करने के साथ यह तो साफ कर दिया है कि उनका मकसद क्या है. यह हम सभी को पता है कि पीएम नरेंद्र मोदी दलितों के दुश्मन हैं. बीजेपी के शासन के दौरान दलितों का उत्पीड़न बंद नहीं होगा, जब तक कि उसे रोका नहीं जाता. अगर बसपा-सपा गठबंधन और कांग्रेस का उद्देश्य एक ही है तो उन्हें मेरा समर्थन करना चाहिए. उन्होंने कहा कि अपने इरादे साफ करने के बाद चंद्रशेखर ने मायावती को पांच बार फोन किया था लेकिन उनकी तरफ से एक बार भी जवाब नहीं मिला.
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कुछ समय पहले ही आजाद ने कहा था कि वह सक्रिय राजनीति में आने के साथ-साथ समाजित कार्यकर्ता के तौर पर भी काम करते रहेंगे. उन्होंने एनडीटीवी से कहा कि आजाद का ऐसा कहने के पीछे दो कारण हैं.एक तो बीजेपी नेता का वह बयान है जिसमें उन्होंने इशारा किया था कि उनकी पार्टी संविधान को बदलने की तैयारी में है और दूसरी वजह, बीजेपी द्वारा दलितों के साथ किए जा रहे अत्याचार हैं. गौतम ने कहा कि इस साल फरवरी में पीएम मोदी ने वाराणसी के संत रविदास मंदिर का दौरा किया था. मैं भी उस दौरान वहां मौजूद भीड़ में शामिल था. मैंने देखा कि पीएम की सुरक्षा में लगे लोगों ने किस तरह से हमारे धर्मगुरुओं को अपमानित किया. पीएम बाहरी थे लेकिन हम भक्त हैं जिन्हें अपने ही मंदिर में छोटे होने का एहसास कराया गया.
मायावती चंद्रशेखर पर बीजेपी का एजेंट होने का आरोप लगाती रही हैं.
आजाद पीएम मोदी को एक कड़ी टक्कर देंगे या विपक्ष उनके साथ खड़ा होगा, इसे लेकर पश्चिमी यूपी में मौजूद भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं को कोई उम्मीद नहीं है. लेकिन इसके बावजूद भी वह आजाद के इस बड़े फैसले के लिए उन्हें अपना पूरा समर्थन दे रहे हैं.
एक कॉलेज छात्र ने कहा कि ऊंची जाति के लोग हमारे नेताओं के साथ शुरू से ही बर्बरता पूर्ण व्यहार करते रहे हैं. यह वही लोग हैं जिनका सभी राजनीतिक पार्टियों में दखल होता है. सत्ता ने मायावती जी को भी भ्रष्ट बना दिया है. अब उनमें और दूसरों में कोई फर्क नहीं रह गया है. चंद्रशेखर नई उम्मीद की तरह है.
आजाद ने कहा कि बीजेपी ने 2014 के आम चुनाव में देश में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित 84 में से 66 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इनमें यीपू के कुल 17 सीटें भी शामिल हैं. कुल मिलाकर मैं उसी उम्मीदवार को समर्थन दूंगा जो बीजेपी को हरा पाए. चाहे वह कांग्रेस का हो या फिर बीएसपी-एसपी गठबंधन का.
VIDEO: चंद्रशेखर आजाद से प्रियंका गांधी ने की मुलाकात.
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