समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान (Azam Khan) का विवादों से पुराना नाता रहा है. एक बार फिर वे अपने बयान की वजह से चर्चा में हैं. इस बार उन्होंने रामपुर से अपनी प्रतिद्वंदी और अपनी बीजेपी की उम्मीदवार जयाप्रदा को लेकर टिप्पणी की है. दरअसल, आजम खान ने एक जनसभा के दौरान जयाप्रदा पर निशाना साधते हुए कहा था, 'जिसको हम ऊंगली पकड़कर रामपुर लाए, आपने 10 साल जिससे अपना प्रतिनिधित्व कराया...उसकी असलियत समझने में आपको 17 बरस लगे, मैं 17 दिन में पहचान गया कि इनके नीचे की अंडरवियर का रंग खाकी है.' हालांकि, उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से जयाप्रदा का नाम नहीं लिया, लेकिन इस बयान के बाद वे विवादों में घिर गए हैं और उनपर मुकदमा दर्ज हो चुका है. एक तरह बीजेपी आजम खान पर हमलावर है, तो दूसरी तरफ जयाप्रदा ने इस मामले में मायावती से मदद की अपील की है.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से सीखा राजनीति का ककहरा
14 अगस्त 1948 को रामपुर के मोहल्ला घायर मीर बाज खान में जन्मे आजम खान (Azam Khan) ने छात्र जीवन में ही राजनीति में कदम रख दिया था. रामपुर के डिग्री कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी चले गए. यहां वकालत की पढ़ाई के दौरान उनकी सियासत में दिलचस्पी जगी और छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए. 1976 में उन्होंने बाकायदा जनता पार्टी का दामन थाम लिया और जिला स्तर की राजनीति से होते हुए प्रदेश की सियासत की सीढ़ियां चढ़ने लगे.
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1980 में जीता पहला चुनाव
सक्रिय राजनीति में उतरने के 5 सालों के अंदर ही आजम खान (Azam Khan Profile) विधानसभा में पहुंच गए. 1980 में उन्होंने रामपुर सीट से जनता पार्टी (सेकुलर) के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज करने में कामयाब रहे. इस बीच जनता पार्टी में बिखराव का सिलसिला जारी रहा, लेकिन आजम खान की जीत का सिलसिला नहीं रुका. 1985 में वह लोकदल के टिकट पर, 1989 में जनता दल के टिकट पर और 1991 में जनता पार्टी के टिकटपर चुनाव जीतते रहे.
1992 में थामा समाजवादी पार्टी का दामन
1992 में जब मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई तो आजम खान इस पार्टी में शामिल हो गए. 1993 में हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में आजम खान (Azam Khan News) सपा के टिकट से चुनाव मैदान में उतर जीत दर्ज करने में सफल रहे. हालांकि 1996 में उन्हें कांग्रेस के अफरोज अली खान से अपने गृह जिले रामपुर में हार का सामना करना पड़ा. इस बीच 1996 से लेकर 2002 तक आजम खान राज्यसभा के सदस्य भी रहे. इस बीच धीरे-धीरे वे समाजवादी पार्टी का 'मुस्लिम चेहरा' बन गए. आजम खान की शख्सियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह अबतक कुल 9 बार विधायक और 5 बार यूपी सरकार में मंत्री रह चुके हैं.
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अमर सिंह से तकरार और पार्टी से निष्कासन
कभी मुलायम सिंह यादव के दाहिने हाथ रहे अमर सिंह (Amar Singh) और आजम खान (Azam Khan) के बीच तकरार जगजाहिर है. दोनों नेता कई मौकों पर एक दूसरे पर टीका-टिप्पणी करते रहे हैं. सपा का साथ छोड़ने के बाद तो अमर सिंह लगातार आजम खान पर हमलावर हैं. हालांकि आजम खान अभी सपा के कद्दावर नेताओं में शुमार हैं, लेकिन 2009 में जयाप्रदा की ही खिलाफत करने के बाद उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था, लेकिन कुछ दिनों बाद ही वे दोबारा पार्टी में आ गए.
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भगवा लहर में भी अपना गढ़ बचाने में रहे सफल
आजम खान की पत्नी का नाम ताज़ीन फातिमा है और उनके दो बेटे हैं. साल 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में जब बीजेपी की लहर चल रही थी, तब भी आजम खान अपना गढ़ बचाने में कामयाब रहे थे. उन्होंने खुद जीत तो हासिल की ही थी, उनके बेटे अब्दुल्ला आजम भी स्वार विधानसभा सीट से जीत दर्ज करने में कामयाब रहे थे. इस बार आजम खान लोकसभा चुनाव के रण में हैं और एक बार फिर चर्चा में हैं.
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