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This Article is From Apr 20, 2019

पीएम मोदी के गृहराज्य में सौराष्ट्र क्यों बन गया है BJP के लिए चुनौती?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सप्ताह की शुरुआत में जब अपने गृह राज्य गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र (सुरेंद्रनगर) में एक रैली को संबोधित कर रहे थे, तो जनसभा में सिर्फ किसान मौजूद नहीं थे, लेकिन इस रैली में पीएम के संबोधन से साफ जाहिर था कि वे किसानों को अपने पाले में लाना चाहते हैं.

पीएम मोदी के गृहराज्य में सौराष्ट्र क्यों बन गया है BJP के लिए चुनौती?
बीजेपी सौराष्ट्र में पैठ बनाने की पुरजोर कोशिश कर रही है.
नई दिल्ली:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सप्ताह की शुरुआत में जब अपने गृह राज्य गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र (सुरेंद्रनगर) में एक रैली को संबोधित कर रहे थे, तो जनसभा में सिर्फ किसान मौजूद नहीं थे, लेकिन इस रैली में पीएम के संबोधन से साफ जाहिर था कि वे किसानों को अपने पाले में लाना चाहते हैं. रैली में पीएम ने कहा, 'सभी किसानों को सालाना 6,000 रुपये मिलेंगे'. इससे पहले हाल ही में पीएम ने बुजुर्गों के लिए पेंशन प्रोग्राम के वादे के साथ-साथ पीएम किसान योजना को भी अपग्रेड करने का ऐलान किया था और सभी किसानों को इसके दायरे में लाने की बात कही थी. अभी इस योजना के तहत 2 हेक्टेयर से कम जमीन वाले किसानों को सीधे आर्थिक मदद मुहैया कराई जाती है.  सुरेंद्रनगर के बाहरी इलाके में रहने वाले सुरेश मकवाना जीरा उत्पादक किसान हैं और अपने 8 एकड़ जमीन पर जीरा की खेती करते हैं. पिछले साल गुजरात में साल 1901 के बाद सबसे खराब मानसून रहा था और सुरेंद्रनगर जिले को भी सूखा प्रभावित घोषित किया गया था. सुरेश मकवाना कहते हैं, 'मेरी फसल चौपट हो गई थी, लेकिन बीमा कंपनी ने 3,0000 रुपये का क्लेम भी ठुकरा दिया. 

pelusamgकर्ज के बोझ से देशभर के किसान परेशान हैं.

आपको बता दें कि इस साल की शुरुआत से ही सूखाग्रस्त सौराष्ट्र और उत्तरी गुजरात के तमाम इलाकों के करीब 15 लाख किसान लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. उनका कहना है कि फसल बीमा के तहत या तो उनके क्लेम को खारिज कर दिया जा रहा है या इसकी अनदेखी की जा रही है. इस क्षेत्र में यही सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा भी है. गुजरात के इस इलाके में राज्य की 26 में से 7 लोकसभा सीटें आती हैं और मंगलवार को इन सातों सीटों पर मतदान होना है. सुरेंद्रनगर में अपनी रैली के दौरान पीएम मोदी ने कहा था, 'अगर कांग्रेस केंद्र की सत्ता में आती है तो वह गुजरात की अनदेखी करेगी'. 2014 में पीएम मोदी को वोट देने वाले 60 वर्षीय किसान सुरेश मकवाना प्रधानमंत्री के दावे पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि, 'बीजेपी अभी हमारे साथ जो कर रही है, यह उससे कहां अलग होगा'. 

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गौर करने वाली बात यह है कि 2017 में गुजरात के विधानसभा चुनावों के दौरान भी पीएम मोदी ने कांग्रेस पर करारा हमला किया था और करीबन ऐसे ही आरोप लगाए थे, लेकिन करीब 2 दशकों से राज्य के सत्ता से बाहर कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में काफी फायदा हुआ था. खासकर सौराष्ट्र क्षेत्र में कांग्रेस ने 54 में से 30 सीटों पर कब्जा जमाया था, जो पिछली बार के मुकाबले दोगुना था. आपको बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने शहरी क्षेत्र की 85 फीसद सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन ग्रामीण इलाकों की 37 प्रतिशत सीट पर ही पार्टी को सफलता मिल पाई थी. सुरेंद्रनगर से कांग्रेस की उम्मीदवार सोमा पटेल कहती हैं कि, 'विधानसभा चुनाव के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में बीजेपी का प्रदर्शन किसानों की नाराजगी का सूचक था, जो पिछले एक साल में और बढ़ा है'. 

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हालांकि सुरेंद्रनगर से बीजेपी के प्रत्याशी डॉ. महेंद्र मुंजपारा कहते हैं कि, '2017 के चुनाव में खासकर सौराष्ट्र क्षेत्र में पार्टी को हार्दिक पटेल की वजह से थोड़ा नुकसान उठाना पड़ा था. हार्दिक की वजह से खासकर पटेल और पाटीदार समुदाय के युवा वोटर बीजेपी से छिटक गए थे.  वह दावा करते हैं हार्दिक पटेल ने खासकर पटेल समुदाय के युवाओं को फुसलाया था. कहते हैं, 'आरक्षण का मुद्दा बेहद संवेदनशील बन गया था और इसके बूते हार्दिक पटेल युवाओं को एकजुट करने में कामयाब रहे थे, लेकिन पीएम मोदी द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 फीसद आरक्षण देने के फैसले के बाद यह मामला खत्म हो गया है और अब पटेल समुदाय हमारे साथ है'. आपको बता दें कि गुजरात में पटेल समुदाय की आबादी 14 फीसद है और खासकर सौराष्ट्र में उनकी संख्या सबसे ज्यादा है. 
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हाल ही में कांग्रेस ज्वाइन करने वाले 25 वर्षीय हार्दिक पटेल सौराष्ट्र में पूरा जोर लगा रहे हैं. एक दिन पहले ही सुरेंद्रनगर में उन्हें एक शख़्स ने पाटीदार आंदोलन के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए थप्पड़ जड़ दिया था. एनडीटीवी से बातचीत में हार्दिक पटेल कहते हैं, 'आरक्षण अब बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है, लेकिन पहले भी यह मुद्दा नौकरियों से जुड़ा था. यह समस्या अभी भी दूर नहीं हुई है, बल्कि और गहरा गई है. पाटीदार समुदाय के लोग, खासकर किसान परिवार से आने ऐसे युवा,  जिन्हें खेती-किसानी में  कोई भविष्य नहीं दिखता, इस मुद्दे पर आंदोलित हैं'.  वहीं, बीजेपी लगातार पाटीदार समुदाय को अपने साथ जोड़ने और सौराष्ट्र में पैर जमाने की कोशिश कर रही है. इसी कड़ी में पिछले साल पाटीदार ग्लोबल बिजनेस समिट का भी आयोजन किया था. इस समिट में सीएम विजय रुपाणी ने साल 2026 तक पाटीदार समुदाय के 10 लाख युवाओं को नौकरी का वादा किया था. वहीं, इसी साल मार्च में पीएम मोदी लेउवा पटेल और कड़वा पटेल समुदाय के दो मंदिरों के भूमि पूजन समारोह में भी शामिल हुए थे. 

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हालांकि बीजेपी इसके साथ-साथ उन ओबीसी मतदाताओं को भी अपने पाले में लाने की पुरजोर कोशिश कर रही है, जो पारंपरिक रूप से कांग्रेस के साथ रहे हैं. इसी क्रम में बीजेपी सौराष्ट्र क्षेत्र से आने वाले विपक्ष के 5 नेताओं को तोड़ने में कामयाब रही, इनमें से 4 नेता ओबीसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं.  सौराष्ट्र के अमरेली जिले के एक बीजेपी नेता एनडीटीवी से कहते हैं, 'हम राजनीति में जीतने के लिए आए हैं और अगर इस कदम से महत्वपूर्ण वोट बैंक तक हमारी पहुंच बनती है तो जरूर आगे बढ़ना चाहिए'. आपको बता दें कि बीजेपी में शामिल होने वाले नेताओं में से एक कुवरजी बावलिया को पार्टी में शामिल होने के कुछ घंटो के अंदर ही मंत्री बना दिया गया था. हाल ही में कुवरजी बावलिया का एक वीडियो भी सामने आया था, जिसमें पानी की शिकायत करने पर वे राजकोट के नजदीक एक गांव की महिलाओं से कह रहे हैं कि उन्हें भारी संख्या में वोट न देने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.
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गुजरात के इस हिस्से में किसानों के मुद्दे को लेकर सरकार के प्रति काफी नाराजगी है. 2014 में भारी बहुमत से जीतने वाले पीएम मोदी ने किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया है. हालांकि, कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक पीएम मोदी के कार्यकाल के तीन वर्षों में गुजरात के 40 लाख किसान परिवारों में से करीब 43 प्रतिशत गरीबी के बोझ से दबे थे. आरएसएस से जुड़े भारतीय किसान संघ के अध्यक्ष जेके पटेल किसानों का समर्थन करते हुए कहते हैं कि, 'अकेले सुरेंद्रनगर में सिर्फ 30 फीसद किसानों को बीमे का क्लेम मिला, जबकि बीमा कंपनियां मोटा मुनाफा कमा रही हैं'. सौराष्ट्र ही क्यों, पूरे देश में किसान कर्ज और फसलों की गिरती कीमत से परेशान हैं. 

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सौराष्ट्र में तो सूखे की वजह से हालत और खराब है, लेकिन बीमा कंपनियों के लिए यह कोई मुद्दा नहीं है. साल 2016 में छोटे किसानों को प्राकृतिक आपदा की स्थिति में मदद के उद्देश्य से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत की गई थी. योजना के तहत किसान प्रीमियम का सिर्फ 2 प्रतिशत भुगतान करते हैं. बाकी रकम केंद्र और राज्य वहन करते हैं, लेकिन गुजरात में बीमा कंपनियों की अलग कहानी है. विधानसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक, साल 2017-18 में बीमा कंपनियों को प्रीमियम के रूप में करीब 7,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था. हालांकि उन्होंने करीब 2,300 करोड़ के क्लेम का ही भुगतान किया. किसानों की नाराजगी के बीच सौराष्ट्र क्षेत्र में मंगलवार को मतदान होगा और तय हो जाएगा कि आखिर इस क्षेत्र के मतदाता किसके साथ खड़े हैं. 

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