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This Article is From Jan 01, 2020

साल 2019: हिंदी साहित्य में इन 10 किताबों का रहा जलवा, रही सबसे ज्यादा लोकप्रिय और चर्चित

इन किताबों के चयन के आधार के बारे में लेखक और संपादक प्रभात रंजन ने कहा, 'इन पुस्तकों के चयन के आधारों में एक आधार लोकप्रियता रही. इसके अलावा इस बात का भी ध्यान रखा गया कि किन किताबों की चर्चा अधिक हुई.

साल 2019: हिंदी साहित्य में इन 10 किताबों का रहा जलवा, रही सबसे ज्यादा लोकप्रिय और चर्चित
प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:

बीते साल 2019 में हिंदी साहित्य में सभी विधाओं की किताबों का प्रकाशन और लोकार्पण हुआ. इनमें कहानी और कविता संग्रहों से लेकर उपन्यास और विमर्श तक की किताबें रही. इन्हीं किताबे में से हमने 10 बेहतरीन किताबों का चयन किया है. इन किताबों के चयन के आधार के बारे में लेखक और संपादक प्रभात रंजन ने कहा, 'इन पुस्तकों के चयन के आधारों में एक आधार लोकप्रियता रही. कुमार विश्वास का कविता संग्रह घोषित रूप से हिंदी की इस साल सबसे अधिक बिकने वाली किताब रही. इसके अलावा इस बात का भी ध्यान रखा कि किन किताबों की चर्चा अधिक हुई. साल भर किन किताबों की सोशल मीडिया पर चर्चा हुई, समीक्षाएं प्रकाशित हुई, लेकिन ज़ाहिर है कि हज़ारों किताबों में कुछ किताबों को ही चुना जा सकता था. इसलिए एक आधार यह भी रहा कि किताबें अलग-अलग विधाओं की हों, जैसे इस साल हिंदी में कम से कम चार जीवनियां ऐसी आई, जो हिंदी के लिए नई बात रही. इसलिए इस विधा को भी रेखांकित किया जाना ज़रूरी था. अनुवाद हिंदी की बहुत लोकप्रिय विधा है इसलिए उसकी उपेक्षा भी नहीं की जा सकती थी. इसी तरह अगर किसी युवा लेखक या लेखिका ने बहुत अलग सा गद्य लिखा इस बात का भी ध्यान रखा गया कि उसको रेखांकित किया जाए.'  चयनित किताबों का क्रम इस प्रकार है:

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1. बोलना ही है

NDTV के सीनियर रवीश कुमार की यह किताब ‘बोलना ही है' इस बात पर विमर्श करती है कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किस-किस रूप में बाधित हुई है. एक आजाद देश में परस्पर संवाद और सार्थक बहस की गुंजाइश कैसे कम हुई है? साथ देश में नफ़रत और असहिष्णुता को कैसे बढ़ावा मिला है? कैसे जनता के चुने हुए प्रतिनिधि, मीडिया और अन्य संस्थान एक मजबूत लोकतंत्र के रूप में हमें विफल कर रहे हैं? इन सभी सवालों के बीच घटटोप अंधेरे से घिरे हमारे लोकतंत्र में यह किताब किसी रोशनी की तरह है जो इन तमाम विपरीत परिस्थितयों से उबरने की राह खोजती है. यह किताब हमारे वर्तमान समय का वह दस्तावेज है जो स्वस्थ लोकतंत्र के हर हिमायती के लिए संग्रहणीय है. देश के हर जागरूक नागरिक को इस किताब को जरूर पढ़ना चाहिए. इसके साथ ही बता दें, हिंदी में आने से पहले ही यह किताब अंग्रेजी, मराठी और कन्नड़ में प्रकाशित हो चुकी है.

लेखक- रवीश कुमार, प्रकाश- राजकमल प्रकाशन

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2. उपन्यास: मल्लिका

अतीत की पृष्ठभूमि पर चला गया वरिष्ठ लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ का यह उपन्यास इस साल आए सभी उपन्यासों में अपना अलग स्थान रखता है. इस उपन्यास की नायिका मल्लिका आधुनिक हिन्दी के निर्माता भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की वह प्रेमिका थी जिसके संबंध में इतिहास और साहित्य मौन है. भारतेन्दु के घर के पास रहने वाली बाल-विधवा, मल्लिका ने भारतेन्दु से हिन्दी पढ़ना-लिखना सीखकर बांग्ला के तीन उपन्यासों का हिन्दी में अनुवाद किया. उन्हीं अनुवादों ने भारतेन्दु को 'उपन्यास' विधा से परिचित करवाया और इसी से प्रेरणा पाकर वे आधुनिक हिन्दी के निर्माता बने. हालांकि इसे भाग्य की विडंबना ही कहा जाएगा कि मल्लिका ने जो उपन्यास स्वयं लिखा, उसका कहीं कोई ज़िक्र तक नहीं मिलता, जबकि उनका वह उपन्यास हिन्दी का प्रथम उपन्यास माने जाने वाले, 'परीक्षागुरु', से पहले का है. इतिहास के धुंधलके से गल्प के सहारे मनीषा कुलश्रेष्ठ ने उसी विस्मृत और उपेक्षित नायिका को खोज निकाला है और उसके जीवन पर यह शानदार उपन्यास रचा है.

लेखिका- मनीषा कुलश्रेष्ठ, प्रकाशक- राजपाल एंड सन्स

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3. अख़्तरी (बेगम अख़्तर पर संपादित पुस्तक)

कवि, सम्पादक और संगीत अध्येता यतीन्द्र मिश्र की संपादित नई किताब 'अख्तरी' एक शानदार किताब है. यह किताब क्यों पढ़ी जानी चाहिए, उसके लिए देखें ये पंक्तियां: 'उन्होंने अपनी ठुमरियों और दादरों में पूरबी लास्य का जो पुट लगाया, उसने दिल टूटने को भी दिलकश बना दिया. सलीम किदवई उनके माथे पर शिकन न होती, ख़ूबसूरत हाथ हारमोनियम पर पानी की तरह चलते, वह आज़ाद पंछी की तरह गातीं. शीला धर ऐसा मालूम होता था, जैसे उन्होंने उस सबको जज़्ब कर लिया हो, जो उनकी ग़ज़लें व्यक्त करती थीं, जैसे वे बड़ी गहराई से उस सबको महसूस करती हों, जो उनके गीतों के शायरों ने अनुभव किया था. प्रकाश वढेरा मैं ग़ज़ल इसलिए कहता हूं, ताकि मैं ग़ज़ल यानी बेगम अख़्तर से नज़दीक हो जाऊं. कैफ़ी आज़ादी वे बेहतरी की तलाश में थीं, वे नफषसत से भरी हुई थीं और वजषदारी की तलबगार थीं. शान्ती हीरानन्द एक यारबाश और शहाना औरत, जिसने अपनी तन्हाई को दोस्त बनाया और दुनिया के फ़रेब से ऊपर उठकर प्रेम और विरह की गुलूकारी की. रीता गांगुली उनकी लय की पकड़ और समय की समझ चकित करती है. समय को पकड़ने की एक सायास कोशिश न लगकर ऐसा आभास होता है, जैसे वो ताल और लयकारी के ऊपर तैर रही हों. अनीश प्रधान वो जो दुगुन-तिगुन के समय आवाज़ लहरा के भारी हो जाती थी, वही तो कमाल का था बेगम अख़्तर में. उस्ताद बिस्मिल्ला खां भारतीय उपशास्त्रीय संगीत गायन में बेगम अख़्तर का योगदान अतुलनीय है. ठुमरी की उन विधाओं की प्रेरणा और विकास के लिए, जिन्हें आज हम ‘अख़्तरी का मुहावरा' या ‘ठुमरी का अख़्तर घराना' कहते हैं. -उषा वासुदेव

संपादक- यतींद्र मिश्र, प्रकाशक- वाणी प्रकाशन

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4.कुली लाइंस

प्रवीण कुमार झा की नई किताब है कुली लाइंस एक बहुत ही दिलचस्प किताब है. इस किताब के बारे में टिप्पणी करते हुए एक पाठक ने लिखा है, हिन्द महासागर के रियूनियन द्वीप की ओर 1826 ई. में मज़दूरों से भरा जहाज़ बढ़ रहा था. यह शुरुआत थी भारत की. जड़ों से लाखों भारतीयों को अलग करने की. क्या एक विशाल साम्राज्य के लालच और हिन्दुस्तानी बिदेसियों के संघर्ष की यह गाथा भुला दी जायेगी? एक सामन्तवादी भारत से अनजान द्वीपों पर गये ये अँगूठा-छाप लोग आख़िर किस तरह जी पायेंगे? उनकी पीढ़ियों से. हिन्दुस्तानियत ख़त्म तो नहीं हो जायेगी? लेखक पुराने आर्काइवों, भिन्न भाषाओं में लिखे रिपोर्ताज़ों और गिरमिट वंशजों से यह तफ़्तीश करने निकलते हैं. उन्हें षड्यन्त्र और यातनाओं के मध्य खड़ा होता एक ऐसा भारत नज़र आने लगता है, जिसमें मुख्य भूमि की वर्तमान समस्याओं के कई सूत्र हैं. मॉरीशस से कनाडा तक की फ़ाइलों में ऐसे कई राज़ दबे हैं, जो ब्रिटिश सरकार पर ग़ैर-अदालती सवाल उठाते हैं. और इस ज़िम्मेदारी का अहसास भी कि दक्षिण अमरीका के एक गाँव में भी वही भोजन पकता है, जो बस्ती के एक गाँव में. ‘ग्रेट इंडियन डायस्पोरा' आख़िर एक परिवार है, यह स्मरण रहे. इस किताब की यही कोशिश है.

लेखक- प्रवीण झा, प्रकाशक- वाणी प्रकाशन

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5. कविता: फिर मेरी याद

'कोई दीवाना कहता है' काव्य संग्रह के प्रकाशन के 12 वर्षों बाद प्रकाशित हुआ ‘फिर मेरी याद' कुमार विश्वास का तीसरा काव्य-संग्रह है. इस संग्रह में गीत, कविता, मुक्तक, क़ता, आज़ाद अशआर- सबकी बहार है.

कवि- कुमार विश्वास, प्रकाशक- राजकमल प्रकाशन

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6. जीवनी: युगों का यात्री

जनकवि बाबा नागार्जुन की के जीवन पर लिखी गई 'युगों का यात्री' वर्तमान समय में जीवनी विद्या की सर्वश्रेष्ठ और सबसे चर्चित किताब है. इसके के बारे में प्रकाश पराशर ने लिखा है, 'युगों का यात्री-नागार्जुन की जीवनी'  430 पृष्ठों की इस किताब में तारानंद वियोगी ने बाबा की जीवनी के बहाने जो कुछ लिखा है, उसमें ठोस तथ्यों की प्रामाणिकता के बावजूद चित्र-भाषा, रंग-भाषा और देह-भाषा के सम्मिश्रण से तैयार एक ऐसी कथा-भाषा रचने का प्रयास है, जो आलोचना के तमाम मानदंडों के आधार पर इतने सफलतम रूप में साकार हुआ है कि क्या कहने! मेरी अपनी ज़ाती राय है कि विष्णु प्रभाकर 'आवारा मसीहा', रामविलास शर्मा 'निराला की साहित्य साधना' और अमृत राय 'कलम का सिपाही' के अतिरिक्त यदि और कुछ न भी लिखते, तो भी वे हिंदी समाज में सदैव अमर होते. हिंदी संसार केवल इसके लिए भी उन्हें याद करता. यह देखकर मुझे आश्चर्य और सुखद अनुभूति दोनों हुई कि तारानंद वियोगी इस किताब में इन पूर्व पुरुषों से होड़ लेते हुए अनेक स्थलों पर उन लोगों से भी बहुत आगे निकल गए हैं... बहोत-बहोत आगे! ग़म-ए-दुनिया ने अगर थोड़ी मोहलत दी, तो नाचीज़ इस किताब पर तफसील से बात करने की ख़्वाहिश रखता है. ये तो फिलहाल एक पाठकीय पूर्वरंग है.

लेखक- तारानंद वियोगी, प्रकाशक- राजकमल प्रकाशन

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7. विमर्श: एक था डॉक्टर एक था संत

'द गॉड ऑफ स्माल थिंग्स' उपन्यास पर बुकर पुरस्कार जीतने वाली इंग्लिश लेखिका अरुंधति रॉय की नई किताब है 'एक था डॉक्टर एक था संत'. यह किताब में महात्मा गांधी और बाबा साहेब अंबेडकर के विचारों की पृष्ठभूमि पर अपनी विस्तार करती है. प्रस्तुत किताब में वर्तमान भारत में असमानता को समझने और उससे निपटने के लिए अरुंधति रॉय ज़ोर दे कर कहती हैं कि हमें राजनैतिक विकास और मोहनदास करमचंद गांधी के प्रभाव- दोनों का ही परीक्षण करना होगा. सोचना होगा कि क्यों भीमराव आंबेडकर द्वारा गांधी की लगभग दैवीय छवि को दी गई प्रबुद्ध चुनौती को भारत के कुलीन वर्ग द्वारा दबा दिया गया. रॉय के विश्लेषण में हम देखते हैं कि न्याय के लिए आंबेडकर की लड़ाई जाति को सुदृढ़ करने वाली नीतियों के पक्ष में व्यवस्थित रूप से दरकिनार कर दी गई, जिसका परिणाम है वर्तमान भारतीय राष्ट्र जो आज ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र है, विश्व स्तर पर शक्तिशाली है, लेकिन आज भी जाति व्यवस्था में आकंठ डूबा हुआ है.

लेखिका- अरुंधति रॉय, प्रकाशक- राजकमल प्रकाशन

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8. काग़ज़ की कश्ती

शायर, गीतकार सुदर्शन फ़ाकिर की ग़ज़लों को बेगम अख़्तर और जगजीत सिंह सहित न जाने कितने ग़ज़ल गायकों ने गाया है, लेकिन उनकी कोई किताब आज तक प्रकाशित नहीं हुई. उनके निधन के 11 साल बाद उनकी सम्पूर्ण ग़ज़लों और गीतों की किताब इस साल आई- काग़ज़ की कश्ती.

लेखक- सुदर्शन फाकिर प्रकाशन- राजपाल एंड संज प्रकाशन 

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9.उपन्यास: अंधेरा कोना

'अंधेरा कोना' युवा लेखक उमाशंकर चौधरी का उपन्यास है. हिंदी में राजनीतिक उपन्यास कम लिखे जाते हैं और यह उस कमी को पूरा करने वाला उपन्यास है. चुनावी राजनीति के बहाने इसमें बिहार की जातीय राजनीति की संरचना को लेखक ने बहुत बारीकी से कथा में गूंथा है. कथा शैली रोचक है.

लेखक-उमाशंकर चौधरी, प्रकाशक- आधार प्रकाशन

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10. कहानी संग्रह: जापानी सराय

जापानी सराय युवा लेखिका अनुकृति उपाध्याय का पहला कहानी संग्रह है. इसकी कहानियों के केंद्र में कोरपोरेट जगत में काम करने वाली महिलाओं का जीवन है, उनके कैरियर की चुनौतियां हैं, स्त्री के स्वतंत्र व्यक्तित्व की कश्मकश है. स्त्री विमर्श के इस पहलू को लेकर हिंदी में कम लिखा गया है. इस लिहाज़ से इन कहानियों में ताज़गी है और देश विदेश के परिवेशों का दौड़ता भागता जीवन है.

लेखक- अनुकृति उपाध्याय, प्रकाशक- राजपाल एंड सन्स
 

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