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Prabhat Ranjan

'Prabhat Ranjan' - 3 News Result(s)
  • हिंदी का मुकाबला अंग्रेजी से नहीं, खुद हिंदी से ही है: प्रभात रंजन

    हिंदी का मुकाबला अंग्रेजी से नहीं, खुद हिंदी से ही है: प्रभात रंजन

    आज की हिंदी नई और आत्मविश्वास से भरी हुई दिखाई देती है. पहले अधिकतर लेखक हिंदी विभागों से निकलते थे, आज अलग-अलग पृष्ठभूमियों के लेखक बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं. मुझे यह अधिक उत्साहवर्धक दिखता है कि आज हिंदी किताबों को पढ़ना शर्म की बात नहीं समझी जाती, हिंदी के लेखकों को बहुत जल्दी पहचान मिल जाती है. समाज के अलग अलग तबकों में हिंदी लेखकों को लेकर आकर्षण बढ़ गया है. यह देखकर अच्छा तो लगता ही है. लेकिन एक बात है कि अधिकतर लेखक आज बाज़ार को ध्यान में रखकर लिख रहे हैं, बिक्री के मानकों पर खरा उतरने के लिए लिख रहे हैं.

  • साल 2019: हिंदी साहित्य में इन 10 किताबों का रहा जलवा, रही सबसे ज्यादा लोकप्रिय और चर्चित

    साल 2019: हिंदी साहित्य में इन 10 किताबों का रहा जलवा, रही सबसे ज्यादा लोकप्रिय और चर्चित

    साल भर किन किताबों की सोशल मीडिया पर चर्चा हुई, समीक्षाएं प्रकाशित हुई, लेकिन ज़ाहिर है कि हज़ारों किताबों में कुछ किताबों को ही चुना जा सकता था. इसलिए एक आधार यह भी रहा कि किताबें अलग-अलग विधाओं की हों, जैसे इस साल हिंदी में कम से कम चार जीवनियां ऐसी आई, जो हिंदी के लिए नई बात रही. इसलिए इस विधा को भी रेखांकित किया जाना ज़रूरी था.

  • जब सुप्रीम कोर्ट में परंपराओं को दरकिनार कर हुई चीफ जस्टिस की नियुक्ति, ये हैं 2 मामले

    जब सुप्रीम कोर्ट में परंपराओं को दरकिनार कर हुई चीफ जस्टिस की नियुक्ति, ये हैं 2 मामले

    CJI पर राष्ट्रपति ही अंतिम निर्णय लेते हैं. वर्ष 1950 में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना के बाद से अब तक देश में इसी प्रक्रिया के तहत CJI की नियुक्ति होती रही है, लेकिन दो बार ऐसे मौके भी आए जब वरिष्ठता क्रम और परंपराओं को दरकिनार कर CJI की नियुक्ति की गई. दोनों ही बार इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं. 

'Prabhat Ranjan' - 3 News Result(s)
  • हिंदी का मुकाबला अंग्रेजी से नहीं, खुद हिंदी से ही है: प्रभात रंजन

    हिंदी का मुकाबला अंग्रेजी से नहीं, खुद हिंदी से ही है: प्रभात रंजन

    आज की हिंदी नई और आत्मविश्वास से भरी हुई दिखाई देती है. पहले अधिकतर लेखक हिंदी विभागों से निकलते थे, आज अलग-अलग पृष्ठभूमियों के लेखक बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं. मुझे यह अधिक उत्साहवर्धक दिखता है कि आज हिंदी किताबों को पढ़ना शर्म की बात नहीं समझी जाती, हिंदी के लेखकों को बहुत जल्दी पहचान मिल जाती है. समाज के अलग अलग तबकों में हिंदी लेखकों को लेकर आकर्षण बढ़ गया है. यह देखकर अच्छा तो लगता ही है. लेकिन एक बात है कि अधिकतर लेखक आज बाज़ार को ध्यान में रखकर लिख रहे हैं, बिक्री के मानकों पर खरा उतरने के लिए लिख रहे हैं.

  • साल 2019: हिंदी साहित्य में इन 10 किताबों का रहा जलवा, रही सबसे ज्यादा लोकप्रिय और चर्चित

    साल 2019: हिंदी साहित्य में इन 10 किताबों का रहा जलवा, रही सबसे ज्यादा लोकप्रिय और चर्चित

    साल भर किन किताबों की सोशल मीडिया पर चर्चा हुई, समीक्षाएं प्रकाशित हुई, लेकिन ज़ाहिर है कि हज़ारों किताबों में कुछ किताबों को ही चुना जा सकता था. इसलिए एक आधार यह भी रहा कि किताबें अलग-अलग विधाओं की हों, जैसे इस साल हिंदी में कम से कम चार जीवनियां ऐसी आई, जो हिंदी के लिए नई बात रही. इसलिए इस विधा को भी रेखांकित किया जाना ज़रूरी था.

  • जब सुप्रीम कोर्ट में परंपराओं को दरकिनार कर हुई चीफ जस्टिस की नियुक्ति, ये हैं 2 मामले

    जब सुप्रीम कोर्ट में परंपराओं को दरकिनार कर हुई चीफ जस्टिस की नियुक्ति, ये हैं 2 मामले

    CJI पर राष्ट्रपति ही अंतिम निर्णय लेते हैं. वर्ष 1950 में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना के बाद से अब तक देश में इसी प्रक्रिया के तहत CJI की नियुक्ति होती रही है, लेकिन दो बार ऐसे मौके भी आए जब वरिष्ठता क्रम और परंपराओं को दरकिनार कर CJI की नियुक्ति की गई. दोनों ही बार इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं.