रवीश कुमार की कविता : फेसबुक

रवीश कुमार की कविता : फेसबुक

दोस्तों के साथ खाने पीने के बाद की तस्वीरें,
आती रहती हैं लगातार.
नीचे चलते-चलते मिलती हैं,
किसी के बेटे के मुंडन की तस्वीरें,
उसके नीचे कोई याद कर रहा होता है,
अपनी माँ को.
किसी का बच्चा खंभों से खेल रहा होता है,
किसी का कुत्ता बिस्तर पर सुस्ता रहा होता है,
कोई चला आया है ऊँची घास के बीच,
अपनी साइकिल लेकर.
किसी ने फूलों की तस्वीर खींच कर,
प्रकृति के प्रति भावुकता बघार दी है.
कोई ग़ुस्सा है मोदी पर,
कोई फ़िदा है मोदी पर,
कोई हँसा है राहुल पर,
कोई लुटा है वादों पर.
इन सब टीका टिप्पणियों से सरकते हुए,
और नीचे आ गए हैं हम,
संता-बंता के चुटकुले बाँट रहा है कोई,
आदमी चुप है, स्माइली हंस रहे हैं,
नापसंद सब है फिर भी लाइक कर रहे हैं.
तभी एक पुरानी तस्वीर आ जाती है,
किसी के स्कूल की,
आह पुरानी यादें, वाह पुरानी यादें,
बन जाता है यादों का यादखाना.
स्मृतियाँ जैसे हों पाखाना,
ठीक उसी के नीचे वेनिस में नाव चलाता हुआ,
हैरान है पानी और नाव से,
फोटो लगाकर बता रहा है खा रहे हैं,
पाव बड़े चाव से.
अभी वेनिस की यात्रा की कल्पना में खोए ही थे,
कि एक दूसरा पोस्ट आ जाता है,
किसी की नई कहानी हुई है प्रकाशित,
सब बताने लगते हैं अद्भुत अप्रकाशित.
हर कोई लीक से हटकर है,
लीक से हटना ही श्रेयस्कर है,
कंपनी या तो होंडा है या कि किर्लोस्कर है,
बीच-बीच में विज्ञापन भी आता है,
साड़ी सलवार, अंडी पैंटी,
स्क्रोल पर स्क्रोल किये जा रहा हूँ,
कोई लीबिया पर तो कोई सीरिया पर,
कोई हिन्दू पर तो कोई मुसलमान पर,
पोस्ट लिख रहा है, लिखा हुआ शेयर कर रहा है.
एक गाँव की तस्वीर दहाड़ने लगती है,
अंतर्राष्ट्रीय होते मन मानस के अभ्यास के बीच,
देखते ही देखा हुआ समझ आगे बढ़ जाते हैं,
पुराने भाषण का टुकड़ा हो,
पुरानी फ़िल्म का टुकड़ा हो.
टुकड़ा ही जीवन है,
टुकड़े में बिखरा है,
पाठक और लेखक.
कोई प्रचार कर रहा है,
कोई विचार कर रहा है,
कोई कहीं गया हुआ है,
कोई कहीं से आया हुआ है,
जन्मदिन और सालगिरह की अनगिनत बधाइयाँ,
सब हज़ार साल जीने की दुआ ले रहे हैं.
दुआएँ भी स्टेटस की तरह फेक हैं,
जैसे किसी हीरो के साथ दिखने वाली लड़की,
हर तस्वीर में फेक है,
हर बड़ी हस्तियों के बीच वो सिर्फ मुस्कुराती है,
मुस्कुराना जैसे मलेरिया जैसी बीमारी है,
फेसबुक वो लकड़ी है,
जिसमें हम घुन की तरह घुस गए हैं,
दीमक की तरह दमक रहे हैं,
अपने अवशेषों की गुफ़ा बना रहे हैं हम,
लोकतंत्र को मज़बूत करने के नाम पर.
फेसबुक पर मौजूद हैं दिन रात,
जैसे,
फ़िल्म देखने के नाम पर सारे,
देख रहे हैं मार्निंग शो की ब्लू फ़िल्म.
लौट कर शाम को बताने की होड़ में,
बताने लायक नहीं रह जाते.
कल्पनाएँ एक सी होती जा रही हैं,
तस्वीरें एक सी होती जा रही है,
स्टेटस भी सबका एक होता जा रहा है,
दुख सुख सब एक से होते जा रहे हैं,
भारत पाक सब एक से होते जा रहे हैं,
मोदी नवाज़ ट्रंप हिलेरी सब एक हैं,
एक होना ही फेक है...


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