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This Article is From Mar 15, 2017

वीरप्पन पर आई एक नई किताब, उसके जन्‍म से मौत तक की पूरी कहानी किताब में शामिल

वीरप्पन पर आई एक नई किताब, उसके जन्‍म से मौत तक की पूरी कहानी किताब में शामिल
नई दिल्‍ली: कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन अपनी खोज में आने वाले तमिलनाडु एसटीएफ के कर्मियों की पहचान सिर्फ उनकी आवाजें सुनकर कर सकता था और उसके इन प्रयासों को विफल करने के लिए एसटीएफ ने शब्दों की बजाय संख्या का उपयोग करने की नीति को अपनाया. वीरप्पन को मारने की योजना बनाने और उसका क्रियान्वयन करने वाले तमिलनाडु विशेष कार्य बल (एसटीएफ) द्वारा चलाए गए अभियान के दौरान अपनाई गई तकनीकों की ऐसी कई दिलचस्प जानकारियां एक नयी किताब में हैं. किताब में वीरप्पन से जुड़ी कई जानकारियां हैं.

विजय कुमार ने लिखी किताब
ऑपरेशन कोकून का नेतृत्व करने वाले के. विजय कुमार द्वारा लिखी किताब 'वीरप्पन: चेजिंग द ब्रिगैंड' में वीरप्पन द्वारा की गई निर्मम हत्याओं और हाई-प्रोफाइल अपहरणों का विस्तृत वर्णन है. इसमें कन्नड़ सुपरस्टार राजकुमार को 108 दिन तक मिली प्रताड़ना भी शामिल है. रूपा द्वारा प्रकाशित इस किताब में वीरप्पन के जीवन से जुड़ी अहम घटनाओं का जिक्र है. इनमें वर्ष 1952 में गोपीनाथम में उसके जन्म से लेकर वर्ष 2004 में पाडी में मुठभेड़ के दौरान उसकी मौत भी शामिल है.

अवाज सुनकर करता था एसटीएफ के जवानों की पहचान
के. विजय कुमार ने कहा कि वीरप्पन के पास एक बेहद सस्ता 'आईकॉम' वायरलेस सेट था. यह लिट्टे और अन्य संगठनों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरण के समान था. इसकी मदद से वह एसटीएफ की बातचीत सुना करता था. उन्होंने लिखा है कि उसके गिरोह के सदस्यों ने आत्मसमर्पण के बाद बताया था कि वह एसटीएफ के जवानों को उनकी आवाज सुनकर पहचानता था.
एसटीएफ ने 'शब्द नहीं, सिर्फ संख्या' वाली तरकीब अपनाई
वीरप्पन को इंस्पेक्टर करूप्पुसामी द्वारा बोली जाने वाली शुद्ध तमिल को सुनकर बहुत आनंद आता था. एक बार जब अचानक आयी बाढ़ में एसटीएफ के एक पुलिस निरीक्षक लगभग बह ही गए थे, तब वीरप्पन बहुत हंसा था. लेकिन जब एसटीएफ की बातें सुन पाने की वीरप्पन की तरकीब को विफल करने के लिए एसटीएफ 'शब्द नहीं, सिर्फ संख्या' वाली तरकीब लेकर आई तो वह भौंचक्का रह गया.

एसटीएफ ने अपनाई ये तरकीब
कुमार ने लिखा है कि 60 वर्ग किलोमीटर के इलाके को छोटे-छोटे वर्गों में बांट लिया गया था और पूरे वर्ग पर एक काल्पनिक घड़ी लगाई गई थी. हम अपनी स्थिति की जानकारी आपस में साझा करने के लिए घड़ी की स्थितियों का इस्तेमाल करते थे. इसके बारे में हमारे दल तो आसानी से समझ जाते थे लेकिन बात सुनने वाले दूसरे लोगों को इसके बारे में समझ नहीं आता था. इन संख्याओं को समझने की कोशिश में वीरप्पन अब लगातार इस बात को लेकर चिंतित रहता था कि एसटीएफ न जाने किस दिशा से हमला बोल दे. (एजेंसियों से इनपुट)

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