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This Article is From Sep 21, 2016

साक्षात्‍कार: आहिस्‍ता आहिस्‍ता प्रमुख भाषा बन गई अंग्रेजी: डॉ. पी. जयरामन

<b>साक्षात्‍कार:</b> आहिस्‍ता आहिस्‍ता प्रमुख भाषा बन गई अंग्रेजी: डॉ. पी. जयरामन
हमारे देश में हिन्‍दी और अंग्रेजी के 'रिश्‍ते' पर जमकर बहस होती है. इसी विषय पर हिन्दी, तमिल और संस्कृत के विद्वान डॉ. पी. जयरामन ने कुछ अहम बातें उठाई. पेश हैं उनकी बातों के मुख्‍य अंश...

याद रखो...
समाज इस समय अंग्रेजी का बोलबाला है और उसे ही महिमामंडित किया जा रहा है लेकिन यदि हम चाहते हैं कि सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी को स्वीकार किया जाये तो लोगों में इसके प्रति भावनात्मक संवेदना लाना बेहद जरूरी है.

अंग्रेजी का महिमामंडन
समाज के लोगों ने अंग्रेजी को महिमामंडित किया है. इसके पीछे सामाजिक संदर्भ से अधिक महत्वपूर्ण यह था कि यह नौकरी की भाषा बन गयी. समस्त कार्यों के लिए अंग्रेजी अनिवार्य बन गयी और इसके बिना कार्य नहीं हो सकता. इस मानसिक स्थिति में लोग ही परिवर्तन लायेंगे.
कार्यालयीन संदर्भ में सरकार की भाषा नीति में कानून के आधार पर अंग्रेजी को स्थान दिया गया था. मगर वर्तमान वक्त में विश्व पटल पर अंग्रेजी के बिना कुछ नहीं हो सकता है.

आहिस्‍ता आहिस्‍ता...
उपयोग के लिए चुनी गयी भाषा आहिस्ता आहिस्ता प्रमुख भाषा बन गयी. ऐसे में हिन्दी के प्रति भावनात्मक संवेदना बेहद जरूरी है और मानसिक स्थिति में परिवर्तन लाये बिना कुछ भी नहीं हो सकता.

बहस छोड़ दो...
देश में मैकाले द्वारा बनायी गयी शिक्षा पद्धति अभी भी चल रही है और इसके लिए हम भी कम दोषी नहीं हैं. देश की एक भाषा होनी चाहिए, जो सारे समाज को स्वीकार हो. इस पर अमल होना चाहिए और इसके लिए एक सामाजिक आंदोलन की जरूरत है. देश को एक सूत्र में जोड़ने वाली भाषा के रूप में हिन्दी का स्थान कोई नहीं ले सकता है. भारतीय संस्कृति, दर्शन, भाषा, साहित्य और कलाओं के प्रचार प्रसार में संलग्न विद्वान ने कहा कि विभिन्न भारतीय भाषाओं में उपलब्ध सामग्री का अधिक से अधिक अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद होना चाहिए. इससे लोगों का मानसिक स्तर बेहतर होगा. उन्होंने कहा कि इसके लिए तीन बातें बेहद जरूरी है कि हम अपनी भाषा की प्रतिष्ठा की स्थापना करें. अपने देश की वस्तुओं को स्वीकार करना सीखें...और सबसे अहम यह है कि हिन्दी बनाम अंग्रेजी की बहस को छोड़ दें.

आखिर क्‍यों...
भारतीय संस्कृति और साहित्य के एकात्मता के लिए निरंतर कार्यरत जयरामन ने कहा कि जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में भारतीय भाषाओं का महत्व और भागीदारी बेहद कम होती है..आखिर क्यों? इसका उत्तर हमें तलाशना होगा...

दरकिनार करो प्रतिद्वंद्विता को
हिन्दी जानने वाले लोगों को आपसी प्रतिद्वंद्विता को दरकिनार करना होगा और हिन्दी को विश्व पटल पर स्थापित करने के लिए प्रयास करना होगा. उन्होंने कहा कि दुनिया में जहां भी हिन्दी सिखाई जाती है ,वहां उसे बड़ी आसानी से स्वीकार कर लिया जाता है. यह इस बात का द्योतक है कि हिन्दी को विश्व में मान्यता दिलाना अधिक कठिन कार्य नहीं है. मगर इससे पहले हमें अपने देश में इस भाषा को वह सम्मान देना होगा जिसकी वह हकदार है.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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