दिल्ली:
अब तक 150 से ज्यादा नाटकों में विविध भूमिकाएं निभा चुके और 25 नाटकों का निर्देशन करने वाले ओडिशा और दिल्ली के जाने-माने रंगकर्मी चितरंजन सतपथि ने नाटक 'घर और बाहर' का मंचन किया. 1916 में गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर के द्वारा लिखे गये प्रसिद्ध उपन्यास 'घरे-बाइरे' पर आधारित इस नाटक को रंगकर्मी डॉ. प्रतिभा अग्रवाल ने लिखा है.
गुरुदेव ने अपने इस उपन्यास के माध्यम से स्वदेशी आंदोलन के नाम पर चल रहे राजनीतिक व आर्थिक स्वार्थ के खेल में लिप्त देश सेवकों के चरित्र का न केवल अत्यंत बारीकी से चित्रण किया है, बल्कि राष्ट्रवाद को भी नैतिकता की कसौटी पर आंकने का हौसला दिखाया है. इस नाटक का मंचन दिल्ली के गोलमार्केट स्थित मुक्तधारा ऑडिटोरियम में किया गया.
घर और बाहर के निर्देशक चितरंजन सतपथि का कहना है, 'स्वदेशी आंदोलन के जरिये राष्ट्रवाद और मानवीय संबंधों को केंद्र में रखकर लिखे गए उपन्यास घरे-बाइरे का मंचन पहाड़ जैसी चुनौती थी. बंगाल का अतिवादी राष्ट्रवाद, स्वदेशी आंदोलन की आड़ में स्वार्थ की पूर्ति और इसके लिए अनेक परिवारों की आहुति दर्शकों को राष्ट्रवाद जैसे विषय पर गंभीरता पर विचार करने के लिए मजबूर करता है.'
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
गुरुदेव ने अपने इस उपन्यास के माध्यम से स्वदेशी आंदोलन के नाम पर चल रहे राजनीतिक व आर्थिक स्वार्थ के खेल में लिप्त देश सेवकों के चरित्र का न केवल अत्यंत बारीकी से चित्रण किया है, बल्कि राष्ट्रवाद को भी नैतिकता की कसौटी पर आंकने का हौसला दिखाया है. इस नाटक का मंचन दिल्ली के गोलमार्केट स्थित मुक्तधारा ऑडिटोरियम में किया गया.
घर और बाहर के निर्देशक चितरंजन सतपथि का कहना है, 'स्वदेशी आंदोलन के जरिये राष्ट्रवाद और मानवीय संबंधों को केंद्र में रखकर लिखे गए उपन्यास घरे-बाइरे का मंचन पहाड़ जैसी चुनौती थी. बंगाल का अतिवादी राष्ट्रवाद, स्वदेशी आंदोलन की आड़ में स्वार्थ की पूर्ति और इसके लिए अनेक परिवारों की आहुति दर्शकों को राष्ट्रवाद जैसे विषय पर गंभीरता पर विचार करने के लिए मजबूर करता है.'
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