पुस्तक समीक्षा : हवा के ताजे झोंके की तरह है 'भीगी रेत'

देश के मौजूदा सियासी माहौल में ये पंक्तियां कितनी मौजू हैं. लेखक और समाजसेवी रवि शर्मा का हालिया काव्य संग्रह 'भीगी रेत' ताजा हवा के झोंके की तरह है.

पुस्तक समीक्षा : हवा के ताजे झोंके की तरह है 'भीगी रेत'

'भीगी रेत' को प्रभात प्रकाशन ने प्रकाशित किया है.

नई दिल्ली :

 

सियासी ग़ुरबत के अब दिन ही ऐसे आए हैं,

चाहे गर्त में हो मुल्क मगर रहनुमा मुस्कुराए हैं.

हमसे कहे हैं जाँ कुर्बान करो वतन के लिए तुम,

खुद की हिफाजत में मगर फौज को सजाए हैं.

देश के मौजूदा सियासी माहौल में ये पंक्तियां कितनी मौजू हैं. लेखक और समाजसेवी रवि शर्मा का हालिया काव्य संग्रह 'भीगी रेत' ताजा हवा के झोंके की तरह है. उत्तर प्रदेश के छोटे से कस्बे से निकलकर आईआईटी पहुंचने वाले रवि शर्मा की कविताओं में गांव की सोंधी मिट्टी की खुशबू तो है ही, इसमें मोहब्बत के रंग हैं, दर्द के अफसाने हैं, जिंदादिली के किस्से हैं, जीवन दर्शन है और नफरती सियासी माहौल पर गंभीर चोट भी है. 

जब से कारोबार यहां मजहब का चला है,

तब से न रुका लाशों का सिलसिला है.

यह सियासी सेकते हैं जिस आग पर रोटियां,

वो आग नहीं पाकीजा गरीब का घर जला है. 

प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित इस काव्य संग्रह में 110  कविताएं हैं और संग्रह की भूमिका बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने लिखी है. वे लिखते हैं, "मानवीय संवेदनाओं में लिपटी ये कविताओं हृदय को छूने वाली हैं. इस संग्रह में जीवन की सभी भावनाओं को अभिव्यक्ति है''. 

किताब : भीगी रेत
प्रकाशन : प्रभात प्रकाशन

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मूल्य : 750 (हार्ड बाउंड)