नई दिल्ली:
इस वर्ष उर्दू के लिए साहित्य अकादमी का प्रतिष्ठित पुरस्कार निजाम सिद्दीकी को उनकी समालोचना 'माबाद-ए-जादीदियत से नए अहद की तखलीकियत तक' के लिए दिया जाएगा. उनको यह पुरस्कार 22 फरवरी 2017 को दिया जाएगा. उर्दू में लिखी अपनी किताब के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले इलाहाबाद के 69 वर्षीय निजाम सिद्दीकी साहित्य जगत के लिए एक जाना-माना नाम हैं. उनको इससे पहले 2013 में साहित्य अकादमी का 'ट्रांसलेशन अवॉर्ड' मिल चुका है. NDTV से बात करते हुए निजाम सिद्दीकी ने बताया कि वो उर्दू के अलावा हिन्दी, अरबी, फ्रेंच, इंग्लिश और फारसी में भी किताबें लिख चुके हैं. पेश है निजाम सिद्दीकी से खास बातचीत के कुछ अंश-
अपनी किताब 'माबाद-ए-जादीदियत से नए अहद की तखलीकियत तक' के बारे में बताइए.
मेरी किताब 'माबाद-ए-जादीदियत से नए अहद की तखलीकियत तक' एक समालोचना है, जो करीब पांच साल पहले आई थी. इसको हिंदी में समझने के लिए 'उत्तर आधुनिकता से नए युग के सृजन धर्मिता तक' कह सकते हैं. ये प्रगतिवादी से बहुत आगे की चीज है. नई युग की सृजन धर्मिता भारतीय साहित्य के लिए नया आयाम है.
आपकी किताब को साहित्य पुरस्कार मिलने में काफी समय लग गया?
मेरी किताब ही नहीं, मेरे पूरे काम को समझने में लोगों को काफी समय लग गया. पहले मैं कहानियां, उपन्यास और ड्रामे लिखा करता था, लेकिन मेरी रचनाओं को किसी ने नहीं समझा. इन सबसे परेशान होकर मैंने आलोचना की तरफ रुख किया और मुझे विरोध का भी सामना करना, लेकिन मैं आलोचना लिखता रहा.
क्या आपको लगता है कि साहित्य जगत आपकी रचनाओं को नहीं समझ सका?
यह तो नहीं कह सकता, लेकिन कुछ साहित्यकार अभी सृजन धर्मिता में काफी पीछे हैं, इसलिए वे मुझे नहीं समझ पाते. जबकि, दुनिया तेजी से आधुनिकता की ओर आगे निकल रही है. सिर्फ कुछ साहित्यकारों ने ही मेरी रचनाओं को समझा और सराहा.
अब तक आपने कितनी किताबें लिखी हैं?
अब तक मेरी पांच उपन्यास, दो ड्रामा और समालोचना की तीन किताबें बाजार में आ चुकीं हैं. 'माबाद-ए-जादीदियत से नए अहद की तखलीकियत तक' समालोचना पर मेरी तीसरी किताब है. यह लीक से अलग हटकर सब्जेक्ट पर लिखी गयी है. मेरी चौथी किताब 'नए अहद की तखलीकियत का तीसरा इन्कलाब' कुछ समय में बाजार में आ जाएगी.
अपने परिवार और अपनी शिक्षा-दीक्षा के बारे में बताइए.
मैं इलाहाबाद में अपनी बहन और भांजी के साथ रहता हूं. मेरी शुरुआती पढ़ाई इलाहाबाद में ही हुई और फिर कानपुर विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन और पेास्ट ग्रेजुएशन किया. इसके बाद फ्रांस गया और फ्रेंच में एमए किया. मेरे चाचा अरबी और फारसी के विद्वान थे, उनसे दोनों भाषाओं का ज्ञान लिया.
अपनी किताब 'माबाद-ए-जादीदियत से नए अहद की तखलीकियत तक' के बारे में बताइए.
मेरी किताब 'माबाद-ए-जादीदियत से नए अहद की तखलीकियत तक' एक समालोचना है, जो करीब पांच साल पहले आई थी. इसको हिंदी में समझने के लिए 'उत्तर आधुनिकता से नए युग के सृजन धर्मिता तक' कह सकते हैं. ये प्रगतिवादी से बहुत आगे की चीज है. नई युग की सृजन धर्मिता भारतीय साहित्य के लिए नया आयाम है.
आपकी किताब को साहित्य पुरस्कार मिलने में काफी समय लग गया?
मेरी किताब ही नहीं, मेरे पूरे काम को समझने में लोगों को काफी समय लग गया. पहले मैं कहानियां, उपन्यास और ड्रामे लिखा करता था, लेकिन मेरी रचनाओं को किसी ने नहीं समझा. इन सबसे परेशान होकर मैंने आलोचना की तरफ रुख किया और मुझे विरोध का भी सामना करना, लेकिन मैं आलोचना लिखता रहा.
क्या आपको लगता है कि साहित्य जगत आपकी रचनाओं को नहीं समझ सका?
यह तो नहीं कह सकता, लेकिन कुछ साहित्यकार अभी सृजन धर्मिता में काफी पीछे हैं, इसलिए वे मुझे नहीं समझ पाते. जबकि, दुनिया तेजी से आधुनिकता की ओर आगे निकल रही है. सिर्फ कुछ साहित्यकारों ने ही मेरी रचनाओं को समझा और सराहा.
अब तक आपने कितनी किताबें लिखी हैं?
अब तक मेरी पांच उपन्यास, दो ड्रामा और समालोचना की तीन किताबें बाजार में आ चुकीं हैं. 'माबाद-ए-जादीदियत से नए अहद की तखलीकियत तक' समालोचना पर मेरी तीसरी किताब है. यह लीक से अलग हटकर सब्जेक्ट पर लिखी गयी है. मेरी चौथी किताब 'नए अहद की तखलीकियत का तीसरा इन्कलाब' कुछ समय में बाजार में आ जाएगी.
अपने परिवार और अपनी शिक्षा-दीक्षा के बारे में बताइए.
मैं इलाहाबाद में अपनी बहन और भांजी के साथ रहता हूं. मेरी शुरुआती पढ़ाई इलाहाबाद में ही हुई और फिर कानपुर विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन और पेास्ट ग्रेजुएशन किया. इसके बाद फ्रांस गया और फ्रेंच में एमए किया. मेरे चाचा अरबी और फारसी के विद्वान थे, उनसे दोनों भाषाओं का ज्ञान लिया.
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