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This Article is From Apr 28, 2019

Book Review: एक आईएएस अधिकारी के 38 साल के अनुभवों का दस्तावेज है अनिल स्वरूप की 'नॉट जस्ट ए सिविल सर्वेंट'

सत्ता और तंत्र को बेहद करीब से देखने वाले अनिल स्वरूप ने अपनी किताब 'नॉट जस्ट ए सिविल सर्वेंट' में अपने अनुभव को शेयर करने के साथ ही कई खुलासे भी किए हैं.

Book Review: एक आईएएस अधिकारी के 38 साल के अनुभवों का दस्तावेज है अनिल स्वरूप की 'नॉट जस्ट ए सिविल सर्वेंट'
अनिल स्वरूप की किताब  'नॉट जस्ट ए सिविल सर्वेंट'
नई दिल्ली:

पूर्व आईएएस अनिल स्वरूप (Anil Swarup) ने अपनी किताब  'नॉट जस्ट ए सिविल सर्वेंट' (Not Just A Civil Servant Book) में 38 साल लंबी प्रशासनिक सेवा के दौरान हुए अनुभवों को व्यक्त किया है. सत्ता और तंत्र को बेहद करीब से देखने वाले अनिल स्वरूप ने इस किताब में अपने अनुभव को शेयर करने के साथ ही कई खुलासे भी किए हैं. इस किताब के तीसरे अध्याय में उन्होंने लिखा है- ''वह अयोध्या में मंदिर चाहते थे और शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण आम सहमति की दिशा में काम कर रहे थे. वह पूरी तरह से आक्रामक तेवर के खिलाफ थे जो धार्मिक संगठनों की पहचान थी. उस समय भारत में मोबाइल फोन नहीं हुआ करते थे. दूरदर्शन के अलावा कोई दूसरा न्यूज चैनल नहीं था. टेलीप्रिंटर और लैंडलाइन फोन ही कम्युनिकेशन का साधन थे. लाइव टेलीकास्ट का साधन होने के कारण जमीनी हकीकत का अंदाजा लगाना मुश्किल था. कल्याण सिंह को अयोध्या से रुक-रुक कर जानकारियां मिल रही थी.

यहां तक कि उनकी बात आयोध्या में मौजूद लाल कृष्ण आडवानी से भी हुई थी. वहां स्थिति नियंत्रण में दिखाई दे रही थी. लेकिन फिर खबर आई कि कुछ कार्यसेवकों ने सुरक्षा घेरा तोड़ दिया है और वे पुराने ढांचे के गुम्बदों पर चढ़ गए हैं. ढांचा गिर चुका था. कल्याण सिंह बेहद आहत थे और उनका चेहरा पीला पड़ चुका था. बाबरी मस्जिद के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के पुनर्निर्माण का उनका सपना भी ध्वस्त हो चुका था. वह नहीं चाहते थे कि ऐसा हो और आखिर में जो हुआ उसकी जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने त्यागपत्र दे दिया. आज के दौर में ऐसा मुश्किल है लेकिन ऐसे राजनेता हुआ करते थे जो जिम्मेदारी लेने की हिम्मत रखते थे.''

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अनिल स्वरूप ने बेबाकी से अपनी नौकरी के दौरान के अनुभवों को साझा किया है. उन्होंने अपने शुरुआती दौर से लेकर प्रशासनिक सेवा के आखिरी समय तक को बखूबी प्रस्तुत किया है. अनिल अपने शुरुआती जीवन के बारे में लिखते हैं- ''मेरे पिता जी चाहते थे कि मैं आईएएस बनू. मेरी स्कूली शिक्षा उसी के अनुसार हुई. मैं पहले प्रयास में आईएएस हासिल नहीं कर सका. लेकिन मुझे भारतीय पुलिस सेवा (IPS) मिला जो मेरे पिता के लिए काफी नहीं था. लेकिन दूसरे प्रयास में मुझे IAS मिला.'' अनिल स्वरूप की किताब शुरू से ही पढ़ने में दिलचस्प लगती है. इस किताब में अनिल ने आईएएस बनने के सफर और बनने के बाद के सफर को बखूबी लिखा है. यूनीकॉर्न बुक्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा प्रकाशित इस किताब में अनिल ने आईएएस अधिकारी रहते हुए अपने अनुभवों को साझा किया है.

अनिल स्वरूप कोयला मंत्रालय और केंद्रीय शिक्षा सचिव रह चुके हैं. कोयला सचिव के रूप में उनके कार्यों की सराहना हुई थी. उन्होंने अपनी किताब में शिक्षा माफिया से निपटने की बात भी बताई है. कुल मिलाकर देखा जाए तो अनिल स्वरूप की यह किताब बेहद दिलचस्प है. पहले अध्याय से ही यह किताब पाठक को बांधे रखती हैं. अनिल की यह किताब एक आईएएस अधिकारी की जिम्मेदारियों पर प्रकाश तो डालती ही है साथ ही यह भी बताती है कि एक आईएएस अधिकारी होते हुए आप कई काम कर सकते हैं. जो लोग सत्ता और तंत्र  को समझना चाहते हैं उन्हें यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए. और खास कर आईएएस अधिकारी बनने की तैयारी में लगे युवाओं को.

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किताब : 'नॉट जस्ट ए सिविल सर्वेंट' (Not Just a Civil Servant) ​
लेखक : अनिल स्वरूप 
प्रकाशक :  यूनीकॉर्न बुक्स प्राइवेट लिमिटेड
दाम : 499 रुपये (हार्ड कवर) 

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