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Not Just A Civil Servant

'Not Just A Civil Servant' - 1 News Result(s)
  • Book Review: एक आईएएस अधिकारी के 38 साल के अनुभवों का दस्तावेज है अनिल स्वरूप की 'नॉट जस्ट ए सिविल सर्वेंट'

    Book Review: एक आईएएस अधिकारी के 38 साल के अनुभवों का दस्तावेज है अनिल स्वरूप की 'नॉट जस्ट ए सिविल सर्वेंट'

    पूर्व आईएएस अनिल स्वरूप (Anil Swarup) ने अपनी किताब  'नॉट जस्ट ए सिविल सर्वेंट' (Not Just A Civil Servant Book) में 38 साल लंबी प्रशासनिक सेवा के दौरान हुए अनुभवों को व्यक्त किया है. सत्ता और तंत्र को बेहद करीब से देखने वाले अनिल स्वरूप ने इस किताब में अपने अनुभव को शेयर करने के साथ ही कई खुलासे भी किए हैं. इस किताब के तीसरे अध्याय में उन्होंने लिखा है- ''वह अयोध्या में मंदिर चाहते थे और शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण आम सहमति की दिशा में काम कर रहे थे. वह पूरी तरह से आक्रामक तेवर के खिलाफ थे जो धार्मिक संगठनों की पहचान थी. उस समय भारत में मोबाइल फोन नहीं हुआ करते थे. दूरदर्शन के अलावा कोई दूसरा न्यूज चैनल नहीं था. टेलीप्रिंटर और लैंडलाइन फोन ही कम्युनिकेशन का साधन थे. लाइव टेलीकास्ट का साधन होने के कारण जमीनी हकीकत का अंदाजा लगाना मुश्किल था. कल्याण सिंह को अयोध्या से रुक-रुक कर जानकारियां मिल रही थी.

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    Book Review: एक आईएएस अधिकारी के 38 साल के अनुभवों का दस्तावेज है अनिल स्वरूप की 'नॉट जस्ट ए सिविल सर्वेंट'

    पूर्व आईएएस अनिल स्वरूप (Anil Swarup) ने अपनी किताब  'नॉट जस्ट ए सिविल सर्वेंट' (Not Just A Civil Servant Book) में 38 साल लंबी प्रशासनिक सेवा के दौरान हुए अनुभवों को व्यक्त किया है. सत्ता और तंत्र को बेहद करीब से देखने वाले अनिल स्वरूप ने इस किताब में अपने अनुभव को शेयर करने के साथ ही कई खुलासे भी किए हैं. इस किताब के तीसरे अध्याय में उन्होंने लिखा है- ''वह अयोध्या में मंदिर चाहते थे और शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण आम सहमति की दिशा में काम कर रहे थे. वह पूरी तरह से आक्रामक तेवर के खिलाफ थे जो धार्मिक संगठनों की पहचान थी. उस समय भारत में मोबाइल फोन नहीं हुआ करते थे. दूरदर्शन के अलावा कोई दूसरा न्यूज चैनल नहीं था. टेलीप्रिंटर और लैंडलाइन फोन ही कम्युनिकेशन का साधन थे. लाइव टेलीकास्ट का साधन होने के कारण जमीनी हकीकत का अंदाजा लगाना मुश्किल था. कल्याण सिंह को अयोध्या से रुक-रुक कर जानकारियां मिल रही थी.

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