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This Article is From Aug 31, 2018

अमृता प्रीतम की जिंदगी में खास रही 31 तारीख, प्रेम के लिए तलाशा खुद का ठीहा

अमृता प्रीतम (Amrita Pritam) ने अपनी लेखनी को कुछ ऐसे ही साधा जैसे वीणा के तार को एक संगीतज्ञ साधता है. उनके शब्द उनकी मन-वीणा से निकले हुए प्रतीत होते हैं जिसने लाखों लोगों को जीवन जीने का सलीका सिखाया, प्रेम के लिए मरना मिटना सिखाया.

अमृता प्रीतम की जिंदगी में खास रही 31 तारीख, प्रेम के लिए तलाशा खुद का ठीहा
आज पंजाबी लेखिका अमृता प्रीतम (Amrita Pritam) की जयंती है
नई दिल्ली: Amrita Pritam Birth Anniversary: सदियों से कवियों लेखकों के प्रति पाठकों में जो अपार आकर्षण पनपता रहा है, वह उन कवियों लेखकों की शब्दों के प्रति अटूट आस्था का ही प्रतिफल है. आज भी अपने विशाल पाठक वर्ग के प्रति कुछ ऐसे लेखक हैं जो सबसे ज्यादा पढ़े और सराहे जाते हैं. पंजाबी कवयित्री और कथाकार अमृता प्रीतम ऐसी ही शख्सियत हैं जिन्हें पढ़ने वालों का एक बड़ा वर्ग है और जिसके लिखे में संवेदना की एक ऐसी सिहरन है जिससे गुजरते हुए लगता है यह जैसे हमारे भीतर की आवाज है, यह हमारा अपना भोगा और बरता हुआ सच है. अमृता प्रीतम ने अपनी लेखनी को कुछ ऐसे ही साधा जैसे वीणा के तार को एक संगीतज्ञ साधता है. उनके शब्द उनकी मन-वीणा से निकले हुए प्रतीत होते हैं जिसने लाखों लोगों को जीवन जीने का सलीका सिखाया, प्रेम के लिए मरना मिटना सिखाया.

इकतीस की तारीख अमृता प्रीतम के जीवन में अहम 
गुजरांवाला पंजाब में आज के ही दिन यानी 31 अगस्त, 1919 में पैदा अमृता प्रीतम का बचपन लाहौर में बीता. सरस्वती की कृपा से उनकी लेखनी किशोर होते होते ही चल पड़ी और अपने जीवनकाल में उन्होंने सौ से ज्यादा कृतियां लिखीं जिनमें कविताएं, कहानियां, उपन्यास, संस्मरण, जीवनी व उनकी अपनी आत्मकथा रसीदी टिकट प्रमुख हैं. पंजाबी की लेखिका होते हुए भी उनकी शोहरत कुछ ऐसी फैली कि आज उनकी पुस्तकें अंग्रेजी और अनेक विदेशी भाषाओं के साथ-साथ अनेक भारतीय भाषाओं में अनूदित हैं. यहां तक कि वे जितनी पंजाबी की लेखिका हैं, उतनी ही हिंदी की भी क्योंकि उनकी लगभग सारी पुस्तकें अब तक हिंदी में आ चुकी हैं. 31 तारीख उनके जीवन की एक अहम तारीख है जिस तारीख को वे पैदा हुईं और इसी तारीख को 31 अक्तूबर 2005 में वे दुनिया से ओझल भी हुईं. 

मिले सभी श्रेष्ठ पुरस्कार
उनके शब्दों की यह ताकत थी कि 1957 में ही उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिला और अनेक अन्य पुरस्कारों सम्मानों के साथ साथ वे 1982 में कागज ते कैनवस के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हुईं. 1969 में उन्हें पद्मश्री एवं 2004 में पद्मभूषण से नवाजा गया. यों तो उनकी सभी कृतियों में ऐसा जादू और चुंबक है कि एक बार उसे पढ़ते हुए बिना खत्म किए छोड़ने का मन नहीं करता. फिर भी उनकी पंजाबी कविता आखां वारिस शाह नूँ,  जो देश के विभाजन के समय पंजाब की घटनाओं पर आधारित थी, को विशेष शोहरत मिली.

प्रेम के लिए तलाशा खुद का ठीहा
अमृता प्रीतम का जीवन बहुत सादा और खुला था. रसीदी टिकट में उन्होंने अपने जीवन की एक एक बारीकियां बयान की हैं जो आज् भी आत्मकथा के क्षेत्र में मील का पत्थर माना जाता है. बच्चन ने लिखा है: मैं छिपाना जानता तो जग मुझे साधू समझता. अमृता प्रीतम ने रसीदी टिकट में अपने जीवन के सारे पन्ने पाठकों के सम्मुख बिखेर दिए हैं कि इनमें जीवन के जो खूबियां-खराबियां तलाशनी हों, उसे तलाश लें. अपने वैवाहिक जीवन से बहुत पहले मुक्ति पाकर उन्होंने प्रेम के लिए अपना खुद का ठीहा तलाश किया और उसका जीवन भर निर्वाह किया. अपने उत्तर जीवन को कलाकार इमरोज के साहचर्य में बिताते हुए उन्होंने अपने इस अनन्य आकर्षण को जीवन भर सहेज कर रखा. वे जीवन भर प्रेम की कहानियां लिखती रहीं जिसे पाकर जीवन गुलजार हो उठता है. कभी दुष्यंत कुमार ने लिखा था: "जियें तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले/ मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए." अमृता प्रीतम ने अपने लिए प्रेम का गलियारा खुद तय किया और उसी में वे जीवन भर चहलकदमी करती रहीं. अमृता प्रीतम: ए लव स्टोरी उनके जिए हुए प्रेम के पलों की अनूठी दास्तान है. उनके उपन्यास पर फिल्म भी बनी हैं और उनके जीवन पर भी फिल्म बनाने के प्रयास चल रहे हैं, पर साहित्य में उन्होंने जो मुकाम हासिल किया है उसके लिए आज भी बड़ी से बड़ी साहित्यिक शख्सियतें तरसती हैं। 

डॉ. ओम निश्चल हिंदी के  सुपरिचित कवि, गीतकार एवं सुधी आलोचक हैं। 

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