
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी RSS की स्थापना के 100 साल पूरे हो चुके हैं, इस मौके पर आरएसएस के तमाम कार्यकर्ता देशभर में कार्यक्रम आयोजित कर जश्न मना रहे हैं. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दिल्ली में ऐसे ही एक कार्यक्रम में शामिल हुए, जहां उन्होंने इस मौके पर एक सिक्का भी जारी किया. हर साल दशहरे यानी विजयदशमी के मौके पर आरएसएस अपना स्थापना दिवस मनाता है. आज भले ही ये संगठन काफी बड़ा और मजबूत है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में इसे लेकर कई सवाल खड़े हुए और तीन बार इस संगठन पर प्रतिबंध लगाया गया. आइए जानते हैं कि इसकी वजह क्या थी और कैसे आरएसएस फिर से खड़ा हुआ और आज देशभर में इससे जुड़े लाखों लोग काम कर रहे हैं.
कैसे बना आरएसएस?
आरएसएस की स्थापना 1925 में महाराष्ट्र के नागपुर में हुई थी. केशव बलिराम हेडगेवार ने इस संगठन की स्थापना की थी, जो पहले कांग्रेस में थे, लेकिन गांधी जी के खिलाफत आंदोलन को समर्थन देने के बाद उन्होंने अपना अलग संगठन बनाने का फैसला लिया. ये शुरुआत से ही एक हिंदू राष्ट्रवादी संगठन था. आरएसएस ने शुरुआत से ही पहले जनता दल और बाद में बीजेपी का खुलकर समर्थन किया, लेकिन वो खुद को राजनीति से इतर बताता है. बीजेपी के तमाम बड़े नेता और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं.
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कई बार विवादों में रहा संघ
आरएसएस के गठन के बाद से ही ये कई विवादों में आने लगा, यही वजह है कि आजाद भारत में इस संगठन को तीन बार बैन किया गया. इसके अलावा इसके रजिस्ट्रेशन को लेकर भी लगातार विपक्षी दल सवाल उठाते आए हैं.
- आरएसएस पर पहली बार प्रतिबंध महात्मा गांधी की हत्या के बाद 1948 में लगाया गया. इस दौरान आरएसएस की भूमिका को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए थे.
- जब इंदिरा गांधी ने 1975 में इमरजेंसी लगाई थी तो कई राजनीतिक और गैर राजनीतिक संगठनों पर बैन लगाया गया, जिसमें आरएसएस का नाम भी शामिल था.
- 1992 में जब बाबरी मस्जिद को गिराया गया था, तब आरएसएस से जुड़े कई नेताओं का नाम इसमें सामने आया. इसके बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.
- ये होता है सबसे बड़ा पद
आरएसएस में कई अलग-अलग पदाधिकारी होते हैं. इसमें सबसे बड़ा पद सर संघचालक का होता है, जिस पर पर अभी मोहन भागवत हैं. आरएसएस में महिलाएं शामिल नहीं हो सकती हैं, उनके लिए बाद में एक अलग संगठन बनाया गया, जिसे राष्ट्र सेवा समिति के नाम से जाना जाता है.
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