JNUSU Election: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) फिलहाल छात्र संघ चुनाव को लेकर चर्चा में है. यहां एक बार फिर लेफ्ट दलों और एबीवीपी के बीच टक्कर है. एक जमाने में लेफ्ट का गढ़ कहे जाने वाले जेएनयू के छात्र संघ चुनावों में अब एबीवीपी जैसे संगठनों का भी खूब बोलबाला रहता है, यही वजह है कि इस बार भी दोनों तरफ से कांटे की टक्कर बताई जा रही है. जेएनयू एक ऐसी यूनिवर्सिटी है जो अक्सर चर्चा में रहती है, कभी देश की टॉप यूनिवर्सिटी बनकर तो कभी किसी विवाद को लेकर इस यूनिवर्सिटी की चर्चा होती रहती है. आज हम आपको जेएनयू में हुए उस कांड के बारे में बताएंगे, जब करीब दो महीने तक कैंपस को बंद करना पड़ा था.
सरकार की नीतियों के खिलाफ मोर्चा
जेएनयू भारत की टॉप यूनिवर्सिटीज की लिस्ट में ऊपर के पायदान पर आती है, लेकिन यहां पढ़ने वाले छात्रों को उनके मुखर विचारों के लिए भी जाना जाता है. यहां छात्र पढ़ाई के अलावा देश में होने वाली तमाम राजनीतिक और आंतरिक घटनाओं को लेकर खुलकर चर्चा करते हैं और जरूरत पड़ने पर उनके खिलाफ आवाज भी उठाते हैं. ये सब पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के दौर से चला आ रहा है.
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1983 में क्यों बंद करना पड़ा कैंपस?
जेएनयू में पिछले कई दशकों में पुलिस को कई बार दाखिल होना पड़ा. साल 1983 में भी कुछ ऐसा ही हुआ था. यहां अचानक दंगे जैसे हालात बन गए थे, जिसके चलते कैंपस में भारी संख्या में पुलिसबल और सीआरपीएफ के जवान तैनात किए गए. एक छात्र के हॉस्टल ट्रांसफर का मामला इतना ज्यादा बढ़ गया था कि छात्रों ने यूनिवर्सिटी प्रशासन के अधिकारियों को कई घंटे तक बंधक बना लिया. आखिरकार लाठीचार्ज हुआ और कई छात्रों को गिरफ्तार किया गया. मामले ने तूल पकड़ा तो छात्रों ने आगजनी शुरू कर दी और टीचर्ज के घरों को टारगेट किया गया.
हालात काबू से बाहर होते देख यूनिवर्सिटी कैंपस को पूरी तरह बंद कर दिया गया और धारा 144 लगाई गई. इसके अलावा सभी छात्रों को यूनिवर्सिटी कैंपस छोड़ने का आदेश जारी हुआ. करीब दो महीने तक यूनिवर्सिटी में तनाव का माहौल बना रहा और आखिरकार स्थिति सामान्य हुई.
इमरजेंसी के दौरान इंदिरा को चुनौती
जेएनयू में वामपंथी विचारधारा वाले छात्र नेताओं ने इमरजेंसी के दौर में भी सरकार के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी थी. इस दौरान कई छात्र नेताओं को गिरफ्तार किया गया. इतना ही नहीं इमरजेंसी के बाद जब इंदिरा चुनाव हारीं तो जेएनयू छात्रों का एक दल उनके पास गया और उन्हें पढ़कर बताया कि उनके लगाए आपातकाल के दौरान क्या-क्या चीजें गलत हुईं. इस दल में सीताराम येचुरी भी शामिल थे.
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